
बीआर गवई, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया.
भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस भूषण रामचंद्र गवई ने लंदन स्थित Gray’s Inn में आयोजित एक कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में भाग लिया. इस अवसर पर उन्होंने “द लिविंग डॉक्यूमेंट: 75 ईयर्स ऑफ द कॉन्स्टिट्यूशन ऑफ इंडिया एंड द एंड्योरिंग रिलेवंस ऑफ डॉ. आंबेडकर” विषय पर अपना संबोधन दिया.
यह आयोजन भारतीय संविधान के 75 वर्ष पूरे होने और डॉ. बी.आर. आंबेडकर की स्थायी प्रासंगिकता को समर्पित था. कार्यक्रम में भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, भारत के उच्चायुक्त विक्रम दोरईस्वामी, लेडी जस्टिस आर्डेन और लेडी जस्टिस एंड्रयूज सहित कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे.
डॉ. आंबेडकर की विरासत पर CJI का भावुक संबोधन
जस्टिस बी.आर. गवई ने अपने संबोधन में Gray’s Inn के ऐतिहासिक महत्व को रेखांकित किया, जहां डॉ. बी.आर. आंबेडकर ने अपनी कानूनी शिक्षा प्राप्त की थी. उन्होंने कहा कि इस स्थान पर खड़े होना उनके लिए भावुक क्षण है, क्योंकि यहीं से डॉ. बी.आर. आंबेडकर ने भारतीय संविधान को आकार देने वाली बौद्धिक नींव रखी.
जस्टिस बी.आर. गवई ने बताया कि उनके पिता आर.एस. गवई ने डॉ. बी.आर. आंबेडकर के साथ मिलकर सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष किया था. उन्होंने व्यक्तिगत रूप से डॉ. बी.आर. आंबेडकर के जीवन और शिक्षाओं से प्रेरणा ली, जिसने उन्हें वंचित समुदायों से होने के बावजूद देश के सर्वोच्च पद तक पहुंचने में मदद की.
भारतीय संविधान के 75 वर्ष और आंबेडकर का योगदान
जस्टिस बी.आर. गवई ने भारतीय संविधान के 75 वर्षों की यात्रा पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि डॉ. बी.आर. आंबेडकर की दूरदर्शिता ने संविधान को समय की कसौटी पर खरा उतरने में सक्षम बनाया. डॉ. बी.आर. आंबेडकर ने संविधान सभा में अपने पहले भाषण में ही मूलभूत अधिकारों के साथ प्रभावी उपायों की आवश्यकता पर जोर दिया था, जिसके परिणामस्वरूप अनुच्छेद 32 को संविधान का “हृदय और आत्मा” माना गया.
जस्टिस बी.आर. गवई ने बताया कि डॉ. बी.आर. आंबेडकर ने नीति निर्देशक सिद्धांतों को सामाजिक और आर्थिक न्याय की आधारशिला बनाया, जिसे उन्होंने “पोस्ट-डेटेड चेक” कहा, लेकिन यह भी विश्वास जताया कि भारत एक दिन इन चेक को भुनाने में सक्षम होगा.
सामाजिक और आर्थिक न्याय की दिशा में अच्छी प्रगति
जस्टिस बी.आर. गवई ने संविधान के तीन मूल सिद्धांतों—स्वतंत्रता, समता और बंधुत्व—के महत्व पर जोर दिया, जिन्हें डॉ. बी.आर. आंबेडकर ने एक त्रिमूर्ति के रूप में देखा. उन्होंने चेतावनी दी कि सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र के बिना राजनीतिक लोकतंत्र अधूरा है. पिछले 75 वर्षों में भारत ने इस दिशा में उल्लेखनीय प्रगति की है. जमींदारी उन्मूलन, किरायेदारी संरक्षण अधिनियम और श्रमिक कल्याण कानूनों ने भूमिहीनों और मजदूरों को सशक्त बनाया. अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार को व्यापक अर्थ दिया गया, जिसमें शिक्षा, स्वच्छ पर्यावरण, गरिमा और गोपनीयता जैसे अधिकार शामिल किए गए.
महिला सशक्तिकरण और समावेशिता पर जोर
जस्टिस बी.आर. गवई ने डॉ. बी.आर. आंबेडकर के लैंगिक समानता के दृष्टिकोण की सराहना की. उन्होंने हाल के निर्णयों, जैसे सेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने वाले फैसले, का उल्लेख किया. 2024 के गणतंत्र दिवस परेड में सभी महिला दस्तों की भागीदारी और सियाचिन से लेकर समुद्र तक महिला अधिकारियों की उपस्थिति को उन्होंने गर्व का विषय बताया.
जस्टिस बी.आर. गवई ने यह भी उल्लेख किया कि वर्तमान में भारत के तीन संवैधानिक प्रमुख—राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मुख्य न्यायाधीश—वंचित समुदायों से हैं, जो भारतीय संविधान की समावेशी शक्ति को दर्शाता है.
आंबेडकर की प्रेरणा और भविष्य की चुनौतियां
जस्टिस बी.आर. गवई ने संविधान को एक जीवंत दस्तावेज बताया, जैसा कि डॉ. बी.आर. आंबेडकर ने कल्पना की थी. उन्होंने कहा कि यह दस्तावेज बदलते समय के साथ अनुकूलन करने में सक्षम है. मुख्य न्यायाधीश ने भारत के संसद, कार्यपालिका और न्यायपालिका से सामाजिक और आर्थिक न्याय के संवैधानिक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए निरंतर प्रयास करने का आह्वान किया. उन्होंने Gray’s Inn को डॉ. बी.आर. आंबेडकर के सम्मान में उनके चित्र और एक विंग को समर्पित करने के लिए धन्यवाद दिया. बता दें कि Gray’s Inn लंदन में चार इन्स ऑफ़ कोर्ट (बैरिस्टर और जजों के लिए पेशेवर संघ) में से एक है.
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