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सितवे बंदरगाह: पूर्वोत्तर को जोड़ना ही नहीं, चीन को भी काउंटर करने की रणनीति

सोनोवाल ने बताया कि सितवे बंदरगाह के परिचालन से चिकन नेक कॉरिडोर के मुकाबले माल ढुलाई की लागत में 50 फीसदी का खर्च कम होगा.

Sittwe Port Myanmar

फोटो- सोशल मीडिया

रणनीतिक तौर पर बेहद महत्वपूर्ण म्यांमार स्थित भारत का सितवे बंदरगाह का परिचालन शुरू हो गया. पिछले हफ्ते केंद्रीय मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने कोलकाता से 5 दिन पहले कोलकाता से रवाना जहाज को बंदरगाह पर रिसीव किया था. इस मौके पर सोनोवाल ने कहा था, “यह म्यांमार और भारत के साथ-साथ दोनों देशों के लोगों के बीच व्यापक स्तर पर व्यापार को मजबूती देगा और एक्ट ईस्ट नीति के तहत पूर्वोत्तर के राज्यों के विकास को गति देने में सहयोगी बनेगा.”

केंद्रीय मंत्री सोनोवाल ने कहा कि मुझे विश्वास है कि सितवे बंदरगाह दक्षिण-पश्चिम एशिया के लिए बतौर द्वार काम करेगा, जहां से विकास और उन्नति की शुरुआत होगी. गौरतलब है कि यह परियोजना 484 मिलियन डॉलर वाली कलादान मल्टीमॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट (KMTTP) का हिस्सा है और इसका निर्माण भारत के द्वारा जारी अनुदान से हुआ है.

इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य पूर्वोत्तर भारत में बेहतर कनेक्टिविटी के लिए वैकल्पिक रूट को तैयार करना है. बंदरगाह एक अंतर्देशीय जलमार्ग के माध्यम से म्यांमार में पलेटवा से और सड़क माध्यम से मिजोरम में पलेटवा से ज़ोरिनपुई से जुड़ता है. अभी तक पूर्वोत्तर के राज्यों में परिहवन के लिए सिलीगुड़ी मार्ग जिसे चिकन नेक कॉरिडोर के नाम से जाना जाता है, वही एक मात्र विकल्प था.

केंद्र सरकार के मुताबिक पूर्वोत्तर और भारत के दूसरे हिस्सों में व्यापार और वाणिज्य के लिहाज से यह रूट काफी किफायती है. सोनोवाल ने बताया कि सितवे बंदरगाह के परिचालन से चिकन नेक कॉरिडोर के मुकाबले माल ढुलाई की लागत में 50 फीसदी का खर्च कम होगा. उन्होंने बताया, “कोलकाता से अगरतला की दूरी 1600 किलोमीटर है और इसे पूरे करने में ट्रंकों को 4 दिन लग जाते हैं. अब सितवे से चिट्टेगांग और चिट्टेगांग से सरभूमि और सरभूमि से अगरतला की दूरी महज 2 दिनों में तय की जा सकेगी. इससे लागत और समय दोनों की बचत होगी.”

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