
Nepal Hindu Rashtra Protest: रविवार को नेपाल के पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह (Gyanendra Shah) का काठमांडू में हजारों समर्थकों ने भव्य स्वागत किया. इस दौरान, राजशाही की बहाली और नेपाल को फिर से हिंदू राष्ट्र घोषित करने की मांग उठाई गई, जिससे देश की राजनीति में हलचल मच गई है. इस प्रदर्शन को लेकर नेपाल के प्रधानमंत्री और सत्ताधारी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी, CPN-UML) के नेता के.पी. शर्मा ओली ने ‘बाहरी शक्तियों’ के हाथ होने का आरोप लगाया.
अंग्रेज़ी समाचार पत्र ‘द काठमांडू पोस्ट’ के अनुसार, ओली ने कहा कि नेपाल को विदेशी नेताओं की तस्वीरों के सहारे किसी रैली की जरूरत नहीं होनी चाहिए. उन्होंने इन प्रदर्शनों को ‘अलोकतांत्रिक’ और ‘व्यवस्था-विरोधी’ करार दिया और कहा कि सरकार ऐसी गतिविधियों के लिए समय नहीं निकाल सकती.
नेपाल में बढ़ती राजशाही समर्थक भावनाएं
वर्तमान में नेपाल की सत्ता में CPN-UML और नेपाली कांग्रेस गठबंधन सरकार चला रही हैं. लेकिन रविवार को जब पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह पोखरा से काठमांडू लौटे, तो उनके स्वागत के लिए हजारों की भीड़ एयरपोर्ट पर उमड़ पड़ी. जनता ने ‘राजमहल खाली करो, राजा आओ, देश बचाओ’ और ‘नेपाल को हिंदू राष्ट्र बनाओ’ जैसे नारे लगाए.
पूर्व राजा के पक्ष में उमड़े जनसैलाब को देखते हुए नेपाल की प्रमुख कम्युनिस्ट पार्टियां सतर्क हो गई हैं. विपक्षी पार्टी सीपीएन (माओवादी सेंटर) ने राजशाही समर्थन की इस लहर को देखते हुए अपने ‘जागृति अभियान’ को रोक दिया और नेताओं को काठमांडू लौटने के निर्देश दिए.
सीपीएन (माओवादी सेंटर) की बैठक में यह निष्कर्ष निकला कि वर्तमान सरकार की विफलता के कारण जनता में असंतोष बढ़ रहा है, और यही असंतोष राजशाही की मांग को बल दे रहा है. पार्टी के उपाध्यक्ष और प्रवक्ता अग्नि प्रसाद सपकोटा ने कहा कि सरकार की असफलता के कारण ‘प्रतिगामी ताकतें’ सक्रिय हो गई हैं.
कम्युनिस्ट पार्टियों की प्रतिक्रिया
कम्युनिस्ट पार्टियों ने इस विरोध प्रदर्शन के जवाब में एक मजबूत रणनीति अपनाने की योजना बनाई है. पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ के नेतृत्व वाली सीपीएन (माओवादी सेंटर) और अन्य वाम दलों ने 6 अप्रैल को एक बड़ी रैली निकालने की योजना बनाई है. यह वही तारीख है जब 1990 में नेपाल में बहुदलीय लोकतंत्र की स्थापना के लिए पहला जन आंदोलन हुआ था.
इस मुद्दे पर प्रचंड ने CPN-Unified Socialist पार्टी के प्रमुख माधव कुमार नेपाल से मुलाकात की. इसके बाद उन्होंने कहा कि सरकार को जनता की नाखुशी को गंभीरता से लेना चाहिए, लेकिन राजशाही समर्थकों से डरने की कोई जरूरत नहीं है. माधव कुमार नेपाल ने कहा कि वर्तमान स्थिति प्रधानमंत्री ओली सरकार की अक्षमता और खराब प्रशासन का परिणाम है. उन्होंने सभी गणतंत्र समर्थक ताकतों को एकजुट होकर इसका सामना करने की अपील की.
राजनीतिक विश्लेषकों की राय
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि नेपाल में राजशाही समर्थक लहर केवल वर्तमान सरकार की असफलताओं का नतीजा है. विश्लेषक गेजा शर्मा वागले ने कहा, “यह प्रदर्शन सरकार और राजनीतिक दलों की सामूहिक विफलता का परिणाम है. राजनीतिक नेतृत्व को आत्मनिरीक्षण करना चाहिए और अपनी नीतियों में सुधार करना चाहिए.”
नेपाल में राजशाही की वापसी और हिंदू राष्ट्र की बहाली की मांग से उत्पन्न स्थिति से स्पष्ट है कि राजनीतिक दलों को जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे. अन्यथा, यह आंदोलन और अधिक प्रभावशाली रूप ले सकता है.
-भारत एक्सप्रेस
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