कोरोना के कारण अस्पतालों में स्थिति हुई भयावह
‘परिस्थितियों वश ऐसा हुआ.’ एक साइंस जर्नलिस्ट एड यंग ने द अटलांटिक के अगस्त अंक के लिए लिखा था. कल्पना कीजिए कि आप समुद्र के बीच में हैं, एक छोटी नाव में हैं और बहुत दूर हैं. यह शांतिपूर्ण दिन है, समुद्र की लहरें और हवा आपके साथी हैं. चारों तरफ शांत और सुखद वातावरण है. फिर पलक झपकते ही एक बहुत बड़ा तूफान आकर आपकी नाव को पलट देता है और जैसे ही आप पानी में गिरते हैं, आप खुद को किसी तरह शांत और संयमित बनाए रखने की कोशिश करते हैं.
आपको एक नाव का जीवन रक्षक बेड़ा नजर आता है, जो अभी भी तैर रहा है और यह आपके लिए उम्मीद की आखिरी किरण है. खुद को संभालने और सांस लेने के बाद आपको इस बात का एहसास होता है कि यह बेड़ा अभी आपकी जान बचा रहा है और यही एकमात्र साधन है जिसके कारण आप जिंदा हैं. आपको यह बात जल्द ही समझ आ जाती है कि इससे आप बहुत देर तक सुरक्षित नहीं रह सकते हैं और आपको जल्द से जल्द पानी से बाहर निकलना होगा.
जो लोग ये सोचते थे कि महामारी खत्म हो गई है, मैं आपको बता दूं, वास्तव में ऐसा नहीं है. महामारी वह आपके उस नासमझ पड़ोसी की तरह है जो आपके जीवन और दिन-प्रतिदिन के काम में लगातार दखल देता रहता है. दिसंबर 2022 के मध्य में चीन में कोरोना के मामलों के बढ़ने से जुड़ी खबरें आने लगी थीं.
मैंने हाल ही में एक इंस्टाग्राम पोस्ट देखी जिसमें कहा गया है कि ऐसी घटनाएं ‘स्कैम’ हैं और महज चीनी प्रचार है क्योंकि यह सब फीफा विश्व कप के बाद हो रहा था. किसी ने तब कुछ नहीं कहा जब स्टेडियम, थिएटर और रेस्तरां में भारी भीड़ देखने को मिलती थी. क्या यह वास्तव में सच है? इसका अंदाजा आंकड़ों और इवेंट के टाइमलाइन को देखकर लगाया जा सकता है.
जीरो कोविड नीति के खिलाफ शुरू हुआ प्रदर्शन
वायरस के प्रारंभिक प्रसार को रोकने के लिए शी जिनपिंग की सरकार ने जीरो कोविड पॉलिसी के रूप में एक कठोर नीति लागू की, जिसमें असिम्प्टोटिक मरीजों के आइसोलेशन के साथ क्वारंटाइन के जरिए वायरस का ट्रांसमिशन और लॉकडाउन शामिल था. हालांकि यह नीति शुरुआत में वायरस प्रसार को रोकने में सफल रही होगी लेकिन बाद में लोग इससे तंग नजर आने लगे. धीरे-धीरे शहरों में चीन सरकार विरोधी प्रदर्शन शुरू हो गया और यहां तक कि शी जिनपिंग के इस्तीफे की मांग भी जोर पकड़ने लगी. अक्टूबर में, चीन के झांगझू शहर में आईफोन बनाने वाली कंपनी फॉक्सकॉन द्वारा चलाए जा रहे कारखाने में कोविड-19 के मामले सामने आए.
इसके बाद प्लांट बंद हो गया और कई लोग भाग गए, जिसके बाद कारखाने में वर्कर्स की भर्ती के लिए कहा गया। नए भर्ती किए गए कर्मचारियों को बोनस और बेहतर वेतन देने का वादा किया गया था। हालांकि, इन शर्तों को पूरा नहीं किया गया और कर्मचारियों ने फॉक्सकॉन पर उन्हें कम भुगतान करने और कोविड-संक्रमित श्रमिकों को अलग नहीं करने का आरोप लगाया. नतीजा यह हुआ कि यहां भी विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया.
नवंबर के मध्य में, खासकर 15 नवंबर 2022 को, दक्षिणी चीन के शहर ग्वांगझू के लोगों ने कोविड प्रतिबंधों को तोड़ दिया और शहर में कोविड के मामलों में इजाफा होने के बाद लागू किए गए सख्त लॉकडाउन के खिलाफ विरोध शुरू कर दिया. 24 नवंबर, 2022 को उरुमकी शहर के एक अपार्टमेंट में एक भीषण आग लग गई, जिसने 10 लोगों की जान ले ली. कई स्थानीय लोगों ने बताया है कि डेटा किया गया है दबा दिया गया और अधिक लोग मारे गए.
उन्होंने यह भी दावा किया कि लोगों की आवाजाही पर कोरोना प्रतिबंध एक और पहलू था जिसने मरने वालों की संख्या को बदतर किया. विडंबना यह है कि यह खबर जंगल की आग की तरह फैल गई और 25 नवंबर को असंख्य लोग सड़कों पर उतर आए, पहले उरुमकी में और फिर बीजिंग और शंघाई जैसे शहरों में भी लोग सड़कों पर उतर आए. स्थानीय लोगों ने यहां तक कहा कि इन विरोध प्रदर्शनों ने 1989 के तियानमेन स्क्वायर विरोध प्रदर्शनों की याद दिला दी.
विरोध के बाद नियमों में दी गई ढील
इन विरोध प्रदर्शनों के कारण अंततः कोविड-प्रतिबंधों में ढील दी गई, नागरिकों को वह मिला जो वे चाहते थे. 5 दिसंबर के बाद जीवन उनके लिए ‘सामान्य’ होने की तरफ बढ़ने लगा. यह विरोधाभासी भी लगा कि कि चीन की जीरो-कोविड नीति की सफलता ही अब उनकी कमजोरी है. सीसीपी ने 2020 के अंत से बड़े पैमाने पर टीकाकरण कार्यक्रम को बढ़ावा दिया है. 19 दिसंबर, 2022 को देश में 15 दिनों में मौत की पहली रिपोर्ट दर्ज की गई, साथ ही मामलों की संख्या में तेज उछाल आया.
“जीरो-कोविड” नीति में आंशिक ढील दिए जाने के बाद ही इसे रिपोर्ट किया गया. अमेरिकी वैज्ञानिक एरिक फीग्ल-डिंग ने ट्वीट किया कि “चीन में अस्पतालों की व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई है जब से प्रतिबंध हटा है’. उन्होंने यह भी कहा कि चीन के 60% से अधिक और दुनिया की लगभग 10% आबादी अगले 90 दिनों में संक्रमित होगी. चीन इस वक्त उस दौर से गुजर रहा है जो भारत ने मार्च-अप्रैल 2021 में सामना किया था. ये वो दौर है जिसे हम याद नहीं करना चाहते हैं. डर- एक ऐसी चीज है जो वायरस से भी तेजी से फैलती है. वह स्थिति वाकई भयावह थी. अस्पताल भरे हुए थे, कर्मचारियों की कमी और जरूरी उपकरणों का अभाव था. लोग डरे हुए, घबराए हुए और इस बात से आशंकित थे कि कहीं वायरस उन्हें अपनी चपेट में न ले ले.
हांगकांग और साउथ कोरिया में भी ऐसा ही हुआ. उन्होंने भी बेहद कठोर नीतियां लागू कीं लेकिन ओमिक्रॉन वेरिएंट ने हजारों लोगों को संक्रमित किया और सैकड़ों लोगों की जान ले ली. तब इस्तेमाल में लाई जाने वाली चीनी वैक्सीन- Sinovac and Sinopharm की प्रभावकारिता को लेकर सवाल उठने लगे थे. हालांकि, वैश्विक मानकों के अनुसार चीन की टीकाकरण दर काफी अधिक है. स्पष्ट रूप से ‘कम प्रभावी’ घरेलू टीकों का उत्पादन, ’80 और उससे अधिक’ आयु वर्ग में वैक्सिनेटेड नागरिकों का कम प्रतिशत और औसत व्यक्ति की अंतिम खुराक के बाद से एक निश्चित समय अंतराल, चीन के लोगों में हर्ड इम्यूनिटी लगभग न के बराबर है.
1.55 मिलियन मौतों का अनुमान
ये तथ्य एक बड़ा झटका भी साबित हुए हैं. चीनी सरकार अब इस वायरस की घातकता को कम करके आंक रही है. चीनी वैज्ञानिक प्रयोगात्मक रूप से कई आरएनए वैक्सीन पर काम कर रहे हैं. सितंबर में इंडोनेशिया में एक की मंजूरी के बावजूद अभी भी चीनी बाजारों तक पहुंचने में कम से कम 6 महीने लगेंगे. बीएमजे के अनुसार, चीन में कोविड-प्रतिबंधों में ढील के बाद विनाशकारी लहर में लगभग 1.55 मिलियन मौतों की का अनुमान जताया गया है.
दवाओं और पीपीई (पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट) का स्टॉक अब तक के उच्चतम स्तर पर होगा. एक ऑनलाइन रिटेल दिग्गज JD.com के अनुसार, फेस मास्क की बिक्री दिसंबर 2022 की शुरुआत में 2021 की तुलना में 682% अधिक थी. इसके अलावा, खांसी-सर्दी और बुखार के लिए दवाओं की बिक्री 18 गुना बढ़ गई.
Lianhua Qingwen एक पारंपरिक चीनी दवा है और कथित तौर पर Covid-19 के इलाज में मदद की है, इसकी मांग बहुत अधिक है. इस बीच, चीन से भारत में वायरस का संचरण पहले ही शुरू हो चुका है. भारत में ऑमिक्रॉन वैरिएंट के BF.7 स्ट्रेन का पता चल चुका है और भारत सरकार ने इसके रोकथाम के उपायों को लागू करना शुरू कर दिया है. राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को नए वेरिएंट का पता लगाने के लिए जीनोम सीक्वेंसिंग लैब में कोविड-19 पॉजिटिव मामलों के नमूने भेजने का निर्देश दे दिया गया है.
भारत में विदेश से आने वालों की रैंडम टेस्टिंग शुरू
23 दिसंबर, 2022 को उड्डयन मंत्रालय ने एक आदेश जारी किया जिसमें एयरपोर्ट संचालकों को विदेश से भारत आने वालों में से 2% की रैंडम जांच करने का निर्देश दिया गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोविड को लेकर मेडिकल इंतजामों की समीक्षा शुरू कर दी है और उन्होंने टेस्टिंग बढ़ाने पर जोर दिया है. दूसरी ओर, भारतीय अस्पताल भी एक और संभावित प्रकोप से लड़ने की तैयारी कर रहे हैं.
पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, देश भर के अस्पतालों में 27 दिसंबर को एक मॉक ड्रिल की जाएगी. ऑक्सीजन प्लांट, वेंटिलेटर, मेडिकल और सर्जिकल स्टाफ, लॉजिस्टिक्स के साथ-साथ कोविड डेडिकेटेड सुविधाओं पर ध्यान दिया जा रहा है. अंत में, मैं यह कहना चाहूंगी कि निस्संदेह चीन में कोविड-19 फिर आतंक मचा रहा है. हालांकि, सवाल उठता है- क्या भारत में भी ऐसा ही होगा? इतिहास खुद को दोहराने के लिए बदनाम रहा है. यह हम पर निर्भर है कि हम ऐसा न होने दें. मार्च और अप्रैल में जो कुछ हुआ उसकी पुनरावृत्ति हम नहीं कर सकते हैं. हमें और अधिक तैयार और सतर्क रहने आवश्यकता है. हमारे लिए ऐसा करने का यह सही समय है. अभी नहीं तो कभी नहीं? हम नहीं तो कौन?
-भारत एक्सप्रेस