ISRO Journey
ISRO Journey: भारत का चंद्रयान अब चांद के साउथ पोल पर पहुंच चुका है. शाम 6:04 बजे विक्रम लैंडर के सफल लैंड करते ही भारत ने इतिहास रच दिया. भारत कई मायनों में दुनिया से बहुत आगे निकल गया है. लेकिन ISRO के इस मून मिशन की शुरुआत आसान नहीं थी. इसरो के सामने कम लागत में मिशन को अंजाम देने की चुनौती हमेशा से रही है. साल 1963 में जब अंतरिक्ष मिशन को लॉन्च किया गया था तो साइकिल से उसे लॉन्चिंग पैड तक ले जाना पड़ा था. दुनिया उस वक्त हंस रही थी. आज भारत की कामयाबी पर दुनिया भर से शुभकामनाएं दी जा रही हैं.
थुम्बा से शुरू हुई थी भारत की अंतरिक्ष यात्रा
बता दें कि भारत की अंतरिक्ष यात्रा 21 नवंबर, 1963 को तिरुवनंतपुरम के पास थुम्बा से अमेरिकी नाइकी अपाचे साउंडिंग रॉकेट के प्रक्षेपण के साथ शुरू हुई थी. खास बात ये थी कि रॉकेट को प्रक्षेपण स्थल पर बैलगाड़ी पर ले जाया गया. इसके बाद रॉकेट साइकिल से लाया गया था. जानकारी के मुताबिक, नाइकी अपाचे का वजन 715 किलोग्राम था. लॉन्च के बाद यह रॉकेट 30 किलोग्राम पेलोड के साथ 207 किमी की ऊंचाई तक पहुंचा.
बीच के दशकों में, भारतीय रॉकेटरी चमकती रही. भारत ने ताबड़तोड़ कई रॉकेट लॉन्च किए. भारत ने सफलताओं का जश्न मनाया और विफलताओं से सीखा. इस दौरान भारत के भंडार में एसएलवी -3 एस, एएसएलवी, और पीएसएलवी और जीएसएलवी जैसे रॉकेट जुड़ते गए.
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अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत ने दुनिया को किया आश्चर्यचकित
धीरे-धीरे भारत ने दुनिया को अंतरिक्ष क्षेत्र में आश्चर्यचकित कर दिया. भारत ने चंद्र मिशन (2008) और मंगल ग्रह (2013 में लॉन्च) किया. चंद्रयान-1 अंतरिक्ष यान को चंद्रमा की कक्षा में स्थापित करना इसरो के इंजीनियरों के लिए बहुत आसान लग रहा था, लेकिन यह सफल नहीं हो सका. हालांकि, मंगल ऑर्बिटर मिशन मंगलयान सफल रहा. आज मंगल के बारे में इसरो के पास जितना डेटा है उतना किसी के पास नहीं है.
यदि आज भारत एक आत्मनिर्भर और विश्व स्तरीय अंतरिक्ष यात्रा करने वाला राष्ट्र है, तो थुम्बा में उस पहले प्रक्षेपण को कौन भूल सकता है. नाइकी अपाचे रॉकेट के लिए अमेरिका ने मदद की थी.
-भारत एक्सप्रेस
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