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CJI चंद्रचूड़: राम मंदिर, नोएडा ट्विन टावर समेत इन ऐतिहासिक मामलों में दे चुके हैं जजमेंट

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ बने 50वें CJI

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ ने बुधवार को भारत के मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India) के तौर पर शपथ ग्रहण की. ये शपथ उनको राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति भवन में दिलाई. जस्टिस चंद्रचूड़ ने देश के 50वें CJI जस्टिस के रूप में शपथ ली है. इनका कार्यकाल 10 नवंबर 2024 तक दो साल के लिए रहने वाला है.

जस्टिस चंद्रचूड़ जूडिशल सिस्टम के कई ऐतिहासिक फैसलों में शामिल रहे हैं.  खास बात ये कि भारत में ये पहली बार हुआ जब कोई पिता और पुत्र, दोनों ही देश के प्रधान न्यायाधीश बने हों. बता दें कि जस्टिस चंद्रचूड़ के पिता जस्टिस यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ भी भारत के CJI रह चुके हैं.

पिता वाई.वी. चंद्रचूड़ के फैसले को भी बदला 

कानून और न्याय प्रणाली की अलग समझ की वजह से जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ ने दो बार अपने पिता यानि पूर्व CJI जस्टिस वाई.वी. चंद्रचूड़ के फैसलों को भी पलटा था. डी.वाई. चंद्रचूड़ ने एडल्ट्री और प्राइवेसी से जुड़े पुराने जजमेंट, जिसमें उनके पिता भी शामिल थे, उसे बदल दिया था. उन्होंने कहा था कि पुराने फैसलों का मूल्यांकन आज के संदर्भ में करने की जरूरत है.

24 हफ्ते तक गर्भपात की अनुमति  

जस्टिस चंद्रचूड़ अपने ऐतिहासिक फैसलों को लेकर काफी चर्चा में रहे हैं. सबसे ज्यादा उनके जिस फैसले की चर्चा हुई वो था अविवाहित महिलाओं को 20 से 24 हफ्ते के गर्भ को गिराने की अनुमति देना. इस फैसले में उन्होंने ये भी कहा कि अगर पति ने जबरन संबंध बना कर पत्नी को गर्भवती किया है, तो उसे भी 24 हफ्ते तक गर्भपात का अधिकार होगा. इस तरह गर्भपात के मामले ने ही सही, कानून में पहली बार वैवाहिक बलात्कार यानी मैरिटल रेप को मान्यता मिली.

सुपरटेक ट्विन टावर 

नोएडा एक्सप्रेस पर अवैध तरीके से बनाई गई सुपर टेक ट्विन टावर को गिराने वाले फैसले में वह भी शामिल थे. अवैध तरीके से बनाई गई इस गगनचुंबी इमारत के गिराने का वीडियो दुनिया भर में चर्चा का विषय रहा. इसके अलावा सोशल मीडिया पर पोस्ट करने पर पत्रकार मोहम्मद जुबैर को तुरंत जमानत पर रिहा करने के आदेश भी उनकी तरफ से दिया गया था.

अयोध्या और सबरीमाला मामला 

जस्टिस चंद्रचूड़ कई संविधान पीठों का हिस्सा भी रहे हैं. अयोध्या का ऐतिहासिक फैसला हो चाहे निजता के अधिकार और समलैंगिता को अपराध यानी IPC की धारा 377 से बाहर करना, सबरीमाला मंदिर में महिलाओं का प्रवेश, और लिविंग विल जैसे बड़े जजमेंट में जस्टिस चंद्रचूड़ भी शामिल रहे. जिनकी हमेशा चर्चा होती रही है.

चंद्रचूड़ ने अपने फैसले कभी भी किसी दूसरे साथी जजों को देखते हुए नहीं लिए. अगर उनको कभी भी अपनी साथी जजों का फैसला सही नहीं लगा तो उन्होंने ऐसे में असहमति खुलकर जताई है. ‘आधार’ के प्रसिद्ध फैसले में, जस्टिस चंद्रचूड़ ने बहुमत से असहमति जताते हुए कहा था कि आधार को असंवैधानिक रूप से धन विधेयक के रूप में पारित किया गया था और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन था.

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता समेत तमाम मौलिक अधिकारों को लेकर जस्टिस चंद्रचूड़ हमेशा सजग रहे हैं. उन्होंने राजनीतिक और वैचारिक रूप से अलग-अलग किनारे  पर खड़े लोगों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर एक जैसा आदेश दिया. उनका कहना था कि सिर्फ अपने विचार व्यक्त करने के लिए किसी को जेल में डाल देना सही नहीं है. ऐसे तो उन्होंने तमाम बड़े फैसले लिए हैं लेकिन कुछ ऐसे फैसले उनके द्वारा लिए गए जो ऐतिहासिक बन गए.



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