सुप्रीम कोर्ट. (फाइल फोटो)
Bilkis Bano Case: बिलकिस बानो मामले में रिहा किए गए आरोपियों के खिलाफ दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट आज (8 जनवरी) सुनवाई कर रहा है. जिसमें जस्टिस नागरत्ना ने टिप्पणी करते हुए कहा कि सजा इसलिए दी जाती है कि भविष्य में अपराध रुके. दोषियों को सुधरने का मौका भी दिया जाता है, लेकिन इस दौरान पीड़िता की तकलीफ का एहसास होना भी जरूरी है.
“हमने कानून के हर पहलू से इस मामले को जांचा-परखा है”
जस्टिस नागरत्ना ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि “हमने कानून के हर पहलू से इस मामले को जांचा-परखा है. पीड़िता की याचिका को हमने सुनवाई योग्य माना है. इसी मामले में जो जनहित याचिकाएं दायर की गई हैं, हम उनपर सुनवाई योग्य होने या फिर न होने को लेकर टिप्पणी नहीं कर रहे हैं.”
तथ्यों को छुपाकर हासिल किया था रिहाई का आदेश
जस्टिस नागरत्ना ने आगे कहा कि “जिस कोर्ट में मुकदमा चला था, रिहाई पर फैसले से पहले गुजरात सरकार को उसकी राय लेनी चाहिए थी. जिस राज्य में आरोपियों को सजा मिली थी, उसी राज्य को रिहाई पर भी फैसला लेना चाहिए था. सजा महाराष्ट्र में मिली, इसलिए इसी आधार पर ये रिहाई का आदेश रद्द हो जाता है.” 13 मई 2022 को जिस आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को रिहाई पर विचार करने के लिए कहा था, वह तथ्यों को छुपाकर हासिल किया था.”
11 दिनों तक इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की थी
बता दें कि इससे पहले 11 दिनों तक इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की थी. सुनवाई के दौरान केंद्र और गुजरात सरकार ने दोषियों की सजा माफी से जुड़े मूल रिकॉर्ड को पेश किया था. गुजरात सरकार ने दोषियों की रिहाई को जायज ठहराते हुए कहा था कि इन लोगों ने सुधारात्मक सिद्धांत का पालन किया है.
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अधिकार सिर्फ चुनिंदा रूप से नहीं दिया जाना चाहिए
वहीं मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा था कि क्या दोषियों के पास माफी मांगने का मौलिक अधिकार है. इसके साथ ही इस बात पर भी जोर दिया था कि ये अधिकार सिर्फ चुनिंदा रूप से नहीं दिया जाना चाहिए.
-भारत एक्सप्रेस
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