दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि आपराधिक मामले में आरोप तय करने को चुनौती देने वाली पुनरीक्षण याचिका में शिकायतकर्ता की सुनवाई के अधिकार का मतलब यह नहीं कि उन्हें इस तरह की याचिका में पक्षकार बनने का भी अधिकार है. उसने कहा कि आपराधिक मुकदमा चलाने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की होती है, लेकिन पीड़ित को न्याय दिलाने एवं सरकार की जिम्मेवारी को लेकर संतुलन बनाना होगा.
शिकायतकर्ता को सुनवाई का अधिकार देते वक्त अदालत को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि ऐसी कार्यवाही लड़ाई में न बदल जाए. न्यायमूर्ति नवीन चावला ने कहा कि पीड़ित को अदालती कार्यवाही में भाग लेने का अधिकार है और वह महत्वपूर्ण भी है, लेकिन उसका पक्ष सुनने का मतलब यह नहीं हो जाता कि उसे पक्षकार बनाया जाए.
कोर्ट ने कहा कि, ऐसी स्थिति भी पैदा न हो कि पीड़ित सरकारी वकील का जगह ले ले. पीड़ित सरकारी वकील को सहयोग कर सकता है. कानून में उसे पक्षकार बनाने का प्रावधान नहीं है. न्यायमूर्ति ने उक्त टिप्पणी एक सत्र न्यायालय के उस फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर की, जिसमें आरोपी की पुनरीक्षण याचिका में पीड़ित को पक्षकार बनाने से इनकार कर दिया गया था.
न्यायमूर्ति उसके साथ ही सत्र अदालत के फैसले को बरकरार रखा. कोर्ट ने कहा कि अब कानून इतना विकसित हो चुका है कि आपराधिक कार्यवाही में पीड़ित के सुनवाई के अधिकार से इनकार नहीं किया जा सकता है. यदि पीड़ित आपराधिक कार्यवाही में भाग लेना चाहता है और उसकी सुनवाई होनी है, तो सुनवाई के लिए अदालत के दरवाजे उसके लिए बंद नहीं किए जा सकते. पीड़ित को भी न्याय मिलने एवं आरोपी को सजा दिलाने का उसी तरह अधिकार है जैसे सरकार का दायित्व है. वैसे पीड़ित को अपना पक्ष रखने के लिए उचित अवसर दिया जाना चाहिए.
ये भी पढ़ें- पुराने एवं मरम्मत किए हुए हार्ड डिस्क ड्राइव को बेचे जाने को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट ने जारी किए दिशा निर्देश
-भारत एक्सप्रेस
इस तरह की अन्य खबरें पढ़ने के लिए भारत एक्सप्रेस न्यूज़ ऐप डाउनलोड करें.