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व्यवसायी सतीश बाबू सना और प्रदीप कोनेरू की याचिका दिल्ली हाईकोर्ट में खारिज, खंडपीठ ने माना— दोनों ने धन शोधन का अपराध किया

दिल्ली हाई कोर्ट ने व्यवसायी सतीश बाबू सना और प्रदीप कोनेरू की याचिका को खारिज कर दिया. उनकी याचिका में उनके और मांस निर्यातक मोइन कुरैशी से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले को रद्द करने की मांग की गई थी.

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दिल्ली हाईकोर्ट

Delhi News: व्यवसायी सतीश बाबू सना और प्रदीप कोनेरू द्वारा दायर उस याचिका को दिल्ली हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया जिसमें कथित तौर पर उनके और मांस निर्यातक मोइन कुरैशी से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले को रद्द करने की मांग की गई थी.

न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और नीना बंसल कृष्णा की खंडपीठ ने सीबीआई मामले को चुनौती देने वाली कोनेरू द्वारा दायर याचिका को भी खारिज कर दिया. कोर्ट ने प्रथमदृष्टया पाया कि सना और कोनेरू दोनों ने धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) की धारा 3 के अनुसार धन शोधन का अपराध किया है. कोर्ट ने कहा इस प्रकार, सतीश बाबू सना और प्रदीप कोनेरू ने प्रथमदृष्टया पीएमएलए, 2002 की धारा 3 में परिभाषित धन शोधन का अपराध किया है जिसमें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शामिल होकर, जानबूझकर सहायता करके जानबूझकर एक पक्षकार बनकर और वास्तव में अपराध की आय से जुड़ी सभी या किसी भी प्रक्रिया या गतिविधि में शामिल होकर जिसमें इसे छिपाना, कब्जा करना, अधिग्रहण करना या उपयोग करना और इसे बेदाग संपत्ति के रूप में पेश करना या दावा करना शामिल है.

कोर्ट ने कहा कि भले ही इन दोनों आरोपियों को सीबीआई मामले में गवाह के रूप में पेश किया गया था लेकिन उन्हें धन शोधन मामले में आरोपी बनाया जा सकता है. कोर्ट ने अंततः कहा- विजय मदनलाल चौधरी (सुप्रा) में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय तथा इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि याचिकाकर्ता मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में शामिल हैं हम पाते हैं कि उनके विरुद्ध पीएमएलए के तहत कार्यवाही सही ढंग से शुरू की गई है. याचिकाकर्ताओं ने अपने समन को चुनौती दी है, जो हमारे विचार में मनी ट्रेल की जड़ों को उजागर करने के लिए उचित और उचित है.

याचिकाकर्ताओं द्वारा उठाए गए कथनों में कोई योग्यता न पाते हुए, इन याचिकाओं और लंबित आवेदनों को तदनुसार खारिज किया जाता है.” हालांकि न्यायालय ने कहा कि दोनों आरोपियों को दी गई बलपूर्वक कार्रवाई से अंतरिम संरक्षण अगले दो सप्ताह तक जारी रहेगा. सना और कोनेरू दोनों ने तर्क दिया कि उन्हें ईडी और सीबीआई द्वारा गवाह के रूप में नामित किया गया था. उन्होंने यह भी घोषित करने की मांग की कि धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) की धारा 50 (2) असंवैधानिक है. धारा 50(2) ईडी को पीएमएलए के तहत किसी भी व्यक्ति को बुलाने का अधिकार देती है, जिसकी उपस्थिति चाहे सबूत देने के लिए या किसी जांच या कार्यवाही के दौरान कोई रिकॉर्ड पेश करने के लिए आवश्यक समझी जाती है.

कोनेरू के खिलाफ आरोप है कि उन्होंने सीबीआई की हैदराबाद इकाई द्वारा जांच की गई एम्मार मामले में आरोपी अपने दो पारिवारिक सदस्यों के पक्ष में पक्षपात करने के लिए कुरैशी को पैसे दिए थे. आरोप लगाया गया था कि पूर्व सीबीआई निदेशक एपी सिंह पक्षपात के आदान-प्रदान में शामिल थे. अक्टूबर 2018 में, सना ने मनोज प्रसाद और सोमेश प्रसाद के खिलाफ सीबीआई में एक लिखित शिकायत दर्ज कराई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि वे एक उच्च पदस्थ सीबीआई अधिकारी के नाम पर उससे पैसे वसूल रहे थे, यह वादा करते हुए कि वे उसकी मदद करेंगे.

इस शिकायत के आधार पर सीबीआई ने प्रसाद बंधुओं के साथ-साथ उस मामले में जांच अधिकारी देवेंद्र कुमार और राकेश अस्थाना, जो उस समय सीबीआई के विशेष निदेशक थे, के खिलाफ मामला दर्ज किया. इस एफआईआर के कारण देश की प्रमुख जांच एजेंसी के भीतर एक जंग छिड़ गई. जबकि अस्थाना के खिलाफ आरोप लगाए गए थे कि सीबीआई द्वारा सना को और अधिक परेशान करने से बचाने के लिए 5 करोड़ रुपये की राशि पर सहमति बनी थी. अस्थाना ने आरोप लगाया कि सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा ने उन्हें गिरफ्तारी से राहत दिलाने के लिए 2 करोड़ रुपये की रिश्वत ली थी. सरकार ने वर्मा और उनके डिप्टी अस्थाना दोनों को सीबीआई से हटा दिया था. बाद में अस्थाना दिल्ली पुलिस के कमिश्नर बन गए जबकि वर्मा ने सेवा से इस्तीफा दे दिया.

— भारत एक्सप्रेस



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