प्रतीकात्मक तस्वीर.
दिल्ली हाईकोर्ट अतिक्रमण के मामले में सुनवाई के दौरान रेवड़ी संस्कृति पर कड़ी टिप्पणी की. उसने कहा कि नेता दिल्ली के विकास के लिए न तो कोई पैसा इकट्ठा कर रहे हैं और न ही खर्च कर रहे हैं. नेता केवल मुफ्त चीजों पर खर्च कर रहे हैं. उससे कोई बुनियादी ढांचा नहीं बनने वाला है. इससे सिविक प्रशासन ध्वस्त हो गया है और राजनीतिक वर्ग नारे बेचने में व्यस्त हैं.
मुख्य न्यायाधीश मनमोहन एवं न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की पीठ ने उक्त टिप्पणी करते हुए दिल्ली वासियों के जरूरत के अनुसार बुनियादी ढ़ांचा नहीं बनाने पर अधिकारियों को फटकार लगाई. पीठ ने कहा कि राजधानी बीते सालों से सूखे, बाढ़ और गंभीर प्रदूषण गुजर रहा है.
पहले सूखे की स्थिति थी और फिर बाढ़ आई और लोगों की जान चली गई. इसके बाद अब दिल्ली प्रदूषण और एक्यूआइ के स्तर से जूझ रही है. इसके लिए ठोस प्रबंधन की जरूरत है. हमें फैसला करना होगा कि क्या शहर 3.3 करोड़ लोगों को समायोजित कर सकता है या नहीं. क्या हमारे पास इतने लोगों के लिए बुनियादी ढांचा है या नहीं.
पीठ ने सुनवाई 29 नवंबर के लिए स्थगित करते हुए कहा कि प्रशासन अपने कर्तव्यों का पालन नहीं कर रहा है. इससे पूरा बोझ न्यायपालिका पर आ गया है. नालियों और अनाधिकृत निर्माणों की देखभाल करना न्यायपालिका का काम नहीं हैं,लेकिन उनके काम नहीं करने की वजह से हमे इसी काम के लिए आधा दिन बैठना पड़ता है. उसने यह बात बेदखली नोटिस को चुनौती देने वाली जंगपुरा के जेजे क्लस्टर मद्रासी कैंप के लोगों की याचिका पर सुनवाई करते हुए कही.
-भारत एक्सप्रेस
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