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जिमखाना के सरकारी निदेशक खेल रहे हैं नूरा-कुश्ती

कंपनी अधिनियम की बात करें तो धारा 8 के उप नियम तीन से पांच में साफ़ तौर पर लिखा है कि क्लब के किसी भी सदस्य को वेतन या मानदेय का भुगतान नहीं किया जा सकता.

gymkhana club

दिल्ली जिमखाना

दिल्ली जिमखाना के सरकारी नुमाइंदों खुद ऐसे कारगुज़ारियों में लिप्त हो गए हैं, जिनकी जांच के लिए एनसीएलटी ने उन्हें यहां नियुक्त किया था. मामला फर्ज़ी दस्तावेज़ों से जिमखाना की सदस्यता लेने के आरोपी जतिंद्र पाल सिंह का है. जिसने क्लब के सचिव पद पर नियुक्ति के बाद यह काम निःशुल्क काम करने के लिए क्लब को पत्र लिखा था. लेकिन अब उसी जतिंद्र पाल सिंह ने करीब तीन लाख रुपए का बक़ाया वेतन लेने के लिए क्लब को पत्र लिखा है. ख़ास बात यह है कि इस मामले में क़ानूनी मशविरा लेने के लिए क्लब ने साढ़े तीन लाख रुपए ख़र्च कर दिए हैं.

यह है पूरा मामला

जिमखाना क्लब ऐसी कुश्ती का प्रायोजक बन गया है जिसका परिणाम पहले से तय होता है. एनसीएलएटी के आदेश पर निलंबन से पूर्व क्लब की पुरानी कमेटी ने 15 अक्तूबर 2020 को क्लब के सदस्य जतिन्द्र पाल सिंह को सचिव नियुक्त किया था. तब सिंह ने क्लब के तत्कालीन अध्यक्ष डीआर सोनी का आभार व्यक्त करते हुए पत्र लिखकर कहा था कि वह यह कार्य बिना वेतन के करेगा, क्योंकि वह पांच साल तक क्लब की कमेटी में रह चुका है.

मगर पाठक ने दे दिया वेतन

जुलाई 2021 में क्लब में प्रशासक नियुक्त हुए ओम पाठक ने जतिन्द्र पाल सिंह को सचिव पद पर कार्य करने के लिए करीब 2.82 प्रतिमाओं की वेतन देने का फ़ैसला लिया था. तब उनके तकनीकि और वित्तीय सलाहकार ने नियमों का हवाला देकर इसे अनुचित ठहराया था. परिणाम यह हुआ कि दोनों को अपने पद से इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर कर दिया गया. तब उन्होंने ओम पाठक पर गंभीर आरोप भी लगाए थे. लेकिन कंपनी कार्य मंत्रालय के अधिकारी आँख कान बंद करके बैठे रहे. यही वजह रही कि पाठक ने 2 अगस्त 2021 को जतिन्द्र पाल सिंह को दिसंबर 2020 से वेतन देने का आदेश दे दिया और उसे करीब 33 लाख रुपए की भुगतान भी कर दिया गया.

क्या कहता है क़ानून

कंपनी अधिनियम की बात करें तो धारा 8 के उप नियम तीन से पांच में साफ़ तौर पर लिखा है कि क्लब के किसी भी सदस्य को वेतन या मानदेय का भुगतान नहीं किया जा सकता. कंपनी सचिव सबीना वर्मा ने 2021 में ऑडिटर विपिन अग्रवाल से बात कर ही स्पष्ट कर दिया था कि यदि ऐसा किया जाता है तो धारा 447 के तहत ऐसा करने वाले के खिलाफ धोखाधड़ी के तहत मुकदमा दर्ज हो सकती है. इतना ही नहीं कंपनी पर 10 लाख से एक करोड़ रुपए तक जुर्माना लगाने के साथ ही ऐसा निर्णय करने वाले निदेशक या पदासीन अधिकारी पर 25 हज़ार रुपए से लेकर 25 लाख रुपए तक जुर्माना लगाया जा सकता है.

जतिन्द्र ने मांगे बक़ाया तीन लाख

हैरानी की बात है कि डेविस कप घोटाले के बावजूद जतिन्द्र पाल सिंह ने क़्लब को फिर से पत्र लिखकर मार्च 2022 और अप्रैल के तीन दिनों के बक़ाया करीब तीन लाख रुपए का भुगतान करने के लिए कहा है. यह भी उल्लेखनीय है कि जतिन्दर पाल सिंह पर फ़र्ज़ी दस्तावेज़ों से क्लब की सदस्यता लेने और अपनी सदस्यता संबंधी दस्तावेज नष्ट करने की आरोप बीते साल से लग रहे हैं. हैरानी की बात है कि इस मामले की जाँच क़राने का दम भरने वाले क्लब समिति के अध्यक्ष मलय सिंहा ने अभी तक इस बारे में की गई कार्रवाई की जानकारी भी नहीं दी है.

वेतन से ज़्यादा क़ानूनी सलाह पर किए ख़र्च

क्लब समिति के कामकाज के तरीक़े का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकती है कि क्लब ने जतिन्दर पाल सिंह के बक़ाया तीन लाख रुपए के भुगतान संबंधी मांग पर क़ानूनी सलाह लेने पर ही तीन लाख रुपए ख़र्च कर दिए. क्लब सदस्यों का आरोप है कि क्लब समिति का एक निदेशक अपनी चहेते लॉ फ़र्मों को फ़ायदा पहंचाने के लिए क्लब का पैसा उड़ाने में लगा है. ऑडिटर ने भी दिसंबर की आमसभा में क़ानूनी लड़ाई में एक करोड़ रुपए से ज़्यादा ख़र्च करने पर आपत्ति लगाई थी.



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