हसनपुर रियासत में होली खेलते लोग
आशुतोष मिश्रा
Sultanpur News: होली का त्योहार हो और हिंदुस्तान की गंगा-जमुनी तहजीब का जिक्र न हो. भला ऐसा कैसे हो सकता है. इसी तहजीब की परम्परा को सदियों बाद भी आज भी यूपी के सुल्तानपुर में स्थित पृथ्वीराज चौहान के वंशज राजा हसनपुर के महल में देखने को मिलता है. यहां आज भी हिंदू-मुस्लिम साथ मिलकर होली का त्योहार मनाते हैं और साथ मिलकर होली खेलते हैं. बताते हैं कि पृथ्वीराज के वंशज में मुस्लिम धर्म ग्रहण कर लिया था, लेकिन कभी रंगों से नाता नही तोड़ा.
मुस्लिम घरों में बनती है गुझिया
बताते हैं कि भले ही पृथ्वीराज के वंशज ने मुस्लिम धर्म अपना लिया हो, लेकिन आज भी हिंदुओं का गुलाल उनके पुरातन महल से ही उड़ता है. गंगा जमुनी तहजीब की अनूठी मिसाल यह अबीर और गुलाल की होली अवध की आज भी शान बन मुस्लिम घराने हिंदुओं के लिए गुजिया बनाते हैं और अबीर गुलाल तैयार करते हैं.
सुल्तान जिला मुख्यालय से सात किलोमीटर दूर है हसनपुर रियासत
जानकारी के मुताबिक, सुल्तानपुर जिला मुख्यालय से लगभग 7 किलोमीटर की दूरी पर हसनपुर रियासत स्थित है. यह वही रियासत है जो अंग्रेजों से लोहा लेने में और भारत को आजादी दिलाने में अग्रिम पंक्ति पर लड़ाई के मैदान में खड़ी रही थी. पृथ्वीराज चौहान के वंशज राजा त्रिलोकचंद के समय में इस परिवार ने मुस्लिम धर्म ग्रहण कर लिया था. इसके बाद कई राजा हुए लेकिन इन्होंने हिंदुओं के अबीर गुलाल से नाता जोड़ कर रखा. वर्तमान राजा कहे जाने वाले मसूद अली खान पुत्र रजा अली खान 50 साल से इस गंगा जमुनी तहजीब को कायम किए हुए हैं.
बड़े नांद में घोला जाता है रंग
आज भी बड़े नांद में जो सीमेंट का बना हुआ है रंग घोला जाता है. राजा मसूद अली खान हिंदुओं पर रंग डालते हैं, अबीर लगाते हैं और उनके साथ होली का त्यौहार मनाते हैं. उन्हीं के घर से पकवान बनते हैं, जो हिंदू टोली और मुस्लिम टोली के बीच बांटे जाते हैं और गीत-संगीत के कार्यक्रम के साथ रंग बरसे होली का त्यौहार चलता रहता है. अवध क्षेत्र की पहचान यहां आज भी बनी हुई है. जहां से गंगा जमुनी तहजीब निकलकर हिंदू और मुस्लिम परिवार के हर घरों तक पहुंचती है और उन्हें सामाजिक समरसता का संदेश देती है.
देखें क्या कहा राजा हसनपुर मसूद अली खान ने
इस परम्परा को लेकर राजा हसनपुर मसूद अली खान कहते हैं कि, हसनपुर रियासत में होली हम लोग मिलजुलकर मनाते रहे हैं. यह अवध की शान है और हमारी पहचान है. हमारे यहां होली की शुरुआत हवन पूजन से होती है. हम वहां जाते हैं जहां से जुलूस निकलता है और पूरे क्षेत्र में भ्रमण करते हैं. हिंदू और मुस्लिम बस्तियों में भी जाते हैं. होली की शुरुआत हिरण्यकश्यप के कार्यकाल से मानी जाती है, जहां पिता-पुत्र में झगड़ा हुआ था और होलिका ने प्रहलाद को जलाने का प्रयास किया था तभी से होली मनाई जा रही है.
-भारत एक्सप्रेस
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