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बड़े अजब-गजब रहे हैं अंग्रेजों और मुगलों के शौक, जानें गर्मी के दिनों में कहां से मंगवाते थे बर्फ, कहां से आई कुल्फी?

बर्फ को पिघलने से रोकने के लिए सॉल्टपीटर (पोटैशियम नाइट्रेट) छिड़का जाता था. 1833 में दिल्ली में बर्फ अमेरिका से आई थी, लेकिन अंग्रेजों को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी थी.

Ice story

सांकेतिक फोटो-सोशल मीडिया

Ice Story: गर्मी हो और बर्फ या फिर ठंडा पानी न हो तो लगता है कि प्यास बुझी ही नहीं. अब तो खैर घर-घर में फ्रिज है और लोग गर्मी के दिनों में जमकर बर्फ और आइसक्रीम का सेवन करते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि जब फ्रिज या इस जैसी ही बर्फ जमाने वाली कोई मशीन नहीं थी तो अंग्रेज अफसर और राजा-महाराजा, मुगल कहां से बर्फ मंगाते थे.

आपको ये जानकर थोड़ी हैरानी जरूर होगी क्योंकि अंग्रेजों के जमाने में बर्फ बड़े पैमाने पर विदेशों से समुद्री जहाजों से आता था और पहाड़ों से बर्फ के टुकड़े मंगवाए जाते थे.

बादशाह हुमायूं ने शुरू किया था बर्फ का आयात कराना

जानकारों की मानें तो मुगल बादशाह हुमायूं ने साल 1500 में कश्मीर से बर्फ को तोड़कर उसकी सिल्लियों का आयात कराना भारत में शुरू किया था और तो और मुगल राजा फलों के रस को जमाने के लिए बर्फ से लदे पहाड़ों की ओर भेजते थे और फिर वहां उन रसों को जमाकर शर्बत बनाया जाता था. कहा जाता है कि इसी शर्बत का इस्तेमाल गर्मियों में इलाज के लिए भी किया जाता था.

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नहीं पिघलती थी बर्फ

बता दें कि उस वक्त बर्फ को पिघलने से रोकने के लिए सॉल्टपीटर (पोटैशियम नाइट्रेट) छिड़का जाता था. भारत में कुल्फी भी मुगल काल से ही बननी शुरू हुई. इतिहासकार बताते हैं कि अकबर के शासन काल में हिमालय से हाथी, घोड़ों और सिपाहियों की सहायता बर्फ लाई जाती थी. तो वहीं एक जानकारी ये भी मिलती है कि 1833 में दिल्ली में बर्फ अमेरिका से आई थी, लेकिन इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी थी.

इसके बाद अंग्रेजों ने दिल्ली में ही बर्फ जमाने के लिए कोशिश शुरू की. इसके लिए एक तरकीब निकाली गई और फिर दिल्ली गेट से तुर्कमान गेट तक खंदकें खोदकर उनमें नमक मिला पानी भर कर टाट और भूसे की मदद से सर्दियों में बर्फ की पपड़ी तैयार की जाने लगी थी. तब बर्फ को विशेष गड्ढों की मदद से गर्मियों तक सुरक्षित रखा जाता था.

जानें कैसे हुई मशीन का आविष्कार

अगर इतिहास के पन्ने पलटे जाएं तो मालूम होता है कि जेम्स हैरिसन ने 1851 में पहली बर्फ बनाने की मशीन का आविष्कार कर सबको चौंका दिया था. उन्होंने मशीन बनाने के लिए ईथर वाष्प संपीड़न का उपयोग किया था. हैरिसन की मशीन रोज 3,000 किलोग्राम बर्फ बना सकती थी. 1855 में हैरिसन को ईथर वाष्प-संपीड़न प्रशीतन प्रणाली के लिए पेटेंट प्रदान किया गया था. हालांकि उस दौर में बर्फ बनाने वाली कुछ और मशीनों का निर्माण हुआ, लेकिन वे अधिक दिनों तक चल नहीं सकीं.

जानें भारत में कैसे आई बर्फ

इतिहासकार बताते हैं कि बिल ट्यूडर ने जमाई गई बर्फ को बेचने का काम किया था. वह एक धनी अमेरिकी परिवार से नाता रखते थे. शुरू में उनको इस बिजनेस में बहुत सफलता नहीं मिली, लेकिन सैमुअल ऑस्टिन उनके सबसे बड़े ग्राहक बने. वह एक व्यापारी थे और वह अक्सर भारत आते रहते थे.

माना जाता है कि 1808 में बेंजामिन रोबक ने मद्रास में बर्फ बनाने का प्रयास किया था, लेकिन इस बारे में कोई पुष्ट जानकारी नहीं मिलती है. तो वहीं ऑस्टिन के लिए जरूर कहा जाता है कि जब उनको पता चला कि अंग्रेज गर्मी से भारत में परेशान होते तो यहां पर उनको बर्फ बेचने में फायदा दिखाई दिया. इसी के बाद उन्होंने ट्यूडर के साथ साझेदारी कर ली और अपने जहाजों पर बर्फ लादकर कोलकाता की ओर भेज दिया.

1833 में पहली बार कोलकाता उतरी थी बर्फ की खेप

इतिहासकार बताते हैं कि 12 मई 1833 को ट्यूडर आइस कंपनी की 100 टन बर्फ की पहली खेप कोलकाता में उतरी थी. उस वक्त कोलकाता में बहुत गर्मी पड़ रही थी. तब भारत में तीन पेंस प्रति पाउंड (2 पेंस में 2.12 रुपये होते हैं) बर्फ बेची गई थी और इसे अन्य बर्फ बेचने वाले व्यापारियों की तुलना में बहुत सस्ती थी. इसी वजह से भारत में ट्यूडर के बर्फ का बिजनेस खूब फला-फूला. कहा जाता है कि उसने 20 वर्षों तक इस बिजनेस को किया. इससे उसने 2 मिलियन डॉलर (16 करोड़ रुपये) से अधिक का मुनाफा कमाया.

1844 में हुआ एयर कंडीशनर का आविष्कार

इतिहासकार बताते हैं कि डॉ. जॉन गोरी ने 1844 में एयर कंडीशनर का आविष्कार किया था. इसी के बाद बर्फ बनाने वाली मशीन का भी आविष्कार किया. इससे ट्यूडर आइस कंपनी के साथ ही पूरे बर्फ उद्योग पर भारी असर पड़ा. इसके बाद रेफ्रिजरेटर का आविष्कार 1913 में हुआ और बर्फ के बिजनेस को भारी क्षति पहुंची क्योंकि इसके बाद धीरे-धीरे फ्रिज लोगों के घर तक पहुंच गई और घरों में ही आसानी से बर्फ जमाया जाने लगा.

-भारत एक्सप्रेस



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