क्या सभी निजी अस्पतालों में मेडिक्लेम के नाम पर ग़ैर ज़रूरी खर्चे कराए जाते हैं? क्या सभी अस्पताल मरीज़ों को कमाई का ज़रिया मानते हैं? जिस तरह पांचों उंगलियां बराबर नहीं होतीं उसी तरह हर क्षेत्र में आपको अपवाद भी मिलेंगे। आज एशिया के सबसे बड़े निजी अस्पताल की बात करेंगे जहां हर मरीज़ का पूरे सेवा भाव से ही उपचार किया जाता है।
पिछले सप्ताह दिल्ली से सटे फ़रीदाबाद स्थित एक नवनिर्मित सेवा भाव से चलता एशिया का सबसे बड़ा अस्पताल अस्पताल में जाना हुआ। जैसे ही अस्पताल के मेन गेट से प्रवेश किया तो 2016 का वो दृश्य याद आया जब इस अस्पताल की नींव रखे जाने का मैं साक्षी बना था। तब के बाद अब जब इस अस्पताल में गया तो ऐसा लगा ही नहीं कि मैं भारत के किसी अस्पताल में हूं। 135 एकड़ के विशाल परिसर में आपको भरपूर हरियाली, साफ़ सुथरे बगीचे, व्यवस्थित सेवाएं और मार्गदर्शक बोर्ड दिखाई देंगे।
2,600 बिस्तरों की क्षमता वाले इस अस्पताल में जैसे ही आप प्रवेश करेंगे, तो चाहे सुरक्षा कर्मी हो या अस्पताल का कोई अन्य स्टाफ़ वो आपको ‘ॐ नमः शिवाय’ कह कर स्वागत करते हैं। चमचमाते हुए फ़र्श और पूरी तरह व्यवस्थित अस्पताल के मुख्य कक्ष में घुसते ही आपको यह बिलकुल भी महसूस नहीं होगा कि आप एक अस्पताल में आए हैं। देश के महंगे से महंगे निजी अस्पताल में भी आपको मरीज़ों और उनके तीमारदारों का शोर सुनाई देगा। परंतु अमृता अस्पताल की पार्किंग में खड़ी गाड़ियों की संख्या को देख अगर आप यह सोचें कि अस्पताल में काफ़ी भीड़ होने की संभावना है, तो आप ग़लत होंगे। इतने बड़े और सुनियोजित अस्पताल में आपको कहीं भी भीड़ नहीं दिखाई देगी।
दुनिया भर में करोड़ों लोगों को गले लगा कर आशीर्वाद देने वाली भारत की आध्यात्मिक शख़्सियत माता अमृतानंदमयी मां जिन्हें सब ‘अम्मा’ कह कर पुकारते हैं, के माता अमृतानंदमयी मठ द्वारा संचालित यह इस संस्था द्वारा चलाए जाने वाला देश का दूसरा बड़ा अस्पताल है।
एक परिवार कितना विकसित होता है और कैसे एक ख़ुशहाल और मज़बूत परिवार के रूप में उभरकर आता है यह निर्भर करता है उस घर के ‘मुखिया’ पर। यदि घर का मुखिया अनुशासित हो, तो परिवार भी अनुशासन में रहता है। इस बात का जीता-जागता उदाहरण है ‘अम्मा’ का परिवार। ‘अम्मा’ के अस्पतालों में सभी को इस बात पर विशेष ध्यान देने को कहा जाता है कि मरीज़ों का सेवा भाव से ही इलाज किया जाए। किसी को भी अमीर या ग़रीब समझ कर किसी भी तरह का फ़र्क़ न किया जाए।
अन्य महंगे निजी अस्पतालों की तुलना में जब भी कोई मरीज़ यहाँ पहली बार आता है तो उसे अपना पंजीकरण कराने के लिए मात्र 50 रुपये ही देने होते हैं जो कि आजीवन पंजीकरण शुल्क है। यहीं किसी भी डॉक्टर को दिखाने के लिए ओपीडी चार्ज मात्र 400 रुपये है। आज की महंगाई के दौर में दिल्ली जैसे महानगर में यदि आप किसी भी मामूली से क्लिनिक में जाएं तो डॉक्टर को दिखाने की फ़ीस 500 से 1000 तक होती है। वहीं अगर आप किसी बड़े निजी अस्पताल में जाएं तो ओपीडी चार्ज के नाम पर आपकी जेब से क़रीब 2000 रुपये ख़र्च हो जाएंगे।
मैंने जब अमृता अस्पताल के आईसीयू वार्ड में कदम रखा तो यह देख कर चौंक गया कि इस वार्ड में न तो अन्य अस्पतालों की तरह एक ख़ास तरह के केमिकल की गंध आ रही थी और न ही मरीज़ों के साथ जुड़ी हुई मशीनों की तेज़ बीप सुनाई दे रही थी। आईसीयू वार्ड में जो एक विशेष बात देखी वह थी मरीज़ों को इन्फेक्शन से बचाने का एक नया तरीक़ा। इस वार्ड में सेंसर द्वारा स्वचालित कांच के दरवाज़े हैं जो बिना छुए खुलते हैं। इन दरवाज़ों के सेंसर एक विशेष स्थान पर लगे हैं जिससे कि मरीज़ तक केवल डॉक्टर या नर्स की अनुमति से ही प्रवेश किया जा सकता है। देश भर में किसी भी आईसीयू वार्ड में ऐसा पहली बार हुआ है। हर बेड पर लगे मरीज़ का रिकॉर्ड दर्ज करने वाले पारंपरिक तख़्तों की जगह एक कंप्यूटर स्क्रीन ने ले ली है जिस पर मरीज़ का पूरा रिकॉर्ड अस्पताल के सर्वर पर दर्ज होता है। अस्पताल के प्रशासनिक अधिकारी किसी भी समय पर किसी भी वार्ड में औचक निरीक्षण करने आते रहते हैं। इससे अस्पताल में साफ़-सफ़ाई और व्यवस्था बनी रहती है। अन्य महँगे निजी अस्पतालों की तुलना में यहां पर प्राइवेट कमरा केवल 5500 प्रतिदिन पर मिल जाता है।
अस्पताल के संचालन में लगे हुए सभी वरिष्ठ अधिकारी यहाँ सेवा भाव से कार्य करते हैं। ये सभी व्यक्ति विभिन्न क्षेत्रों से आए हुए अनुभवी लोग हैं जो ‘अम्मा’ के प्रति समर्पित हैं। ये सभी अस्पताल की व्यवस्था बनाए रखने के लिए सभी को प्रेरित करते हैं। बातों-बातों में वरिष्ठ अधिकारियों ने मुझे बताया कि कुछ अन्य निजी अस्पतालों की तुलना में हम अमृता अस्पताल के सभी डॉक्टरों को यह बात स्पष्ट रूप से कहते हैं कि इस अस्पताल में किसी भी डॉक्टर के पास किसी भी तरह का कोई ‘टारगेट’ नहीं है। उन्हें केवल मरीज़ को सही और ज़रूरी उपचार ही देना है। अम्मा के अस्पतालों में केवल सेवा भाव से ही इलाज किया जाता हैऔर इस बात को सुनिश्चित किया जाता है कि उपचार के बाद यहाँ से जाते हुए मरीज़ और उसका परिवार हँसता हुआ जाए। देश के सभी अस्पतालों को अम्मा से प्रेरणा लेनी चाहिए।