प्रतीकात्मक तस्वीर
हिंदुस्तान में शायद ही कोई शख्स होगा जिसकी बेकरारी एक कप चाय के लिए न पैदा होती हो. तनाव हो या थकान… इसकी पहली और कारगर दवा चाय ही होती है. किसी के घर जाना हो या नए संबंध बनाने हो, एक करारी चाय और मामला सेट. आप बाहर किसी को कॉफी पर मिलने के लिए बुला सकते हैं. लेकिन, घर पर तो चाय ही पिलानी पड़ती है. लिहाजा, चाय की सामाजिक स्वीकार्यता एक दम घरेलू है. यही वजह है चाय के शौकीनों ने इसे कमिटमेंट से जोड़ा जबकि कॉफी को फ्लर्ट से. कॉफी हाउस प्रोफेशनल हो सकता है, लेकिन चाय प्रोफेशनल के साथ-साथ काफी पर्सनल भी हो सकता है.
लेकिन, क्या आप जानते हैं कि चाय की शुरुआत कैसे हुई. दरअसल इसकी कहानी भी काफी दिलचस्प है. हम यहां आपको ‘सेंट एंटमंड कॉलेज’ के जियोग्राफी डिपार्टमेंट के पूर्व हेड पराग रंजन दत्ता के एक लेख के जरिए इसकी जानकारी देंगे. उन्होंने मेघायलय मॉनिटर में एक लेख लिखा है, जिसमें चाय की यात्रा का जिक्र है. बकौल पराग रंजन दत्ता-
चाय का उपयोग मूल रूप से दवा के तौर पर किया जाता था. बाद में धीरे-धीरे यह बतौर पेय प्रचलन में आया. किंवदंतियों की मानें तो, लगभग 2737 ईसा पूर्व चीनी सम्राट शेन वुंग एक पेड़ के नीचे बैठे थे और उनका नौकर उनके लिए पीने का पानी उबाल रहा था. इसी दौरान नियति के तहत कुछ पत्ते उड़े और पानी में उबलते हुए पानी में पड़ गए. चीनी बादशाह जो खुद एक जड़ी-बूटी का विशेषज्ञ था, उसने उबले हुए पानी और पेड़ से गिरे पत्तों के इस मिश्रण और ज्यादा उबाला और फिर अद्भूत तथा थकान मिटाने वाला पेय तैयार था.
हान राजवंश के दौरान चीन में चाय को दवा के रूप में इस्तेमाल किया जाता था. ऐसा माना जाता है कि टेंग राजवंश के दौरान, इस सुगंधित पेय को सामाजिक अवसरों पर पिया जाता था.16वीं सदी में पुर्तगाली व्यापारी चीन में चाय के संपर्क में आए और इसका नाम “चा” रखा.
चाय का यूरोप में सबसे पहले परिचय डच ने कराया. जहां से अंग्रेज, फ्रेंच, इटैलियन और स्पैनिश की विशेष पसंद बनी. अंग्रेजों ने इसे “टी” (TEA) नाम दिया. सभी उपोष्णकटिबंधीय फसल पौधों में सबसे कठिन चाय, एक फूल वाले पौधे ‘थेएसी’ (Theaceae) के परिवार से संबंधित है. इसमें झाड़ियाँ और पेड़ शामिल हैं. कैमेलिया साइनेंसिस या थिएसी परिवार से संबंधित चाय मूल रूप से चीन की है. कैमेलिया साइनेंसिस सदाबहार झाड़ी की एक प्रजाति है. इसकी पत्तियों और कलियों का उपयोग लोकप्रिय सुगन्धित पेय, चाय बनाने के लिए किया जाता है.
विभिन्न अध्ययनों से पता चला है कि यह किसी की प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा दे सकता है और हृदय रोग को रोक सकता है. भारत में चाय की शुरुआत अंग्रेजों ने की थी और यह चीनियों के बाजार में एकाधिकार का मुकाबला करने के लिए किया गया.
असम में चाय की शुरुआत
चाय की शुरुआत असम घाटी से होती है. जब यह घाटी अंग्रेजों के संपर्क में आई तब अहोम राजा गौरनाथ सिंहा ने मेरिया विद्रोह को कुचलने के लिए लॉर्ड कार्नावालिस से मदद मांगी. इसके बाद से अंग्रेजों की दिलचस्पी असम में पैदा हुई. इस दौरान रॉबर्ट ब्रूस ने साल 1823 में ब्रह्मपुत्र घाटी में जंगली चाय के पौधों की खोज की. बड़े पत्तों वाली कैमेलिया साइनेंसिस असमिका किस्म ऊपरी असम के गर्म और नम जलवायु में प्रचुर मात्रा में बढ़ती है. भारत के नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर में स्कॉटिश हथियार डीलर रॉबर्ट ब्रूस ने असम में चाय बागान की शुरुआत की.
हालाँकि, चाय को लोकप्रिय बनाने का श्रेय पूर्वी भारत को दिया जाता है, लेकिन यह मणिराम दत्ता बरुआ थे, जिन्हें मणिराम दीवान के नाम से जाना जाता था. उन्होंने अंग्रेजों के जरिए चाय की शुरुआत की. मनीराम दीवान एक असमिया रईस थे और असम में चाय बागान स्थापित करने वाले पहले लोगों में से एक थे.
गौरतलब है कि उध्र स्कॉटिश नागरिक ब्रूस अहोम राजा रुद्रनाथ सिंहा के एजेंट बन गए थे. वह अरुणाचल की सिंगफोस चाय उगा रहे थे. हालांकि, इसकी जानकारी बाहरी दुनिया को नहीं थी. लेकिन, बाद में ब्रूस ने ही यूरोप समेत बाहरी दुनिया को असम की चाय से परिचित कराया. दुर्भाग्य से 1824 में ब्रूस की मृत्यु हो गई. लेकिन, 1837 में अंग्रेजों ने ऊपरी असम में पहला चाय बागान स्थापित किया. असम चाय कंपनी ने 1840 में चाय का अपना व्यावसायिक उत्पादन शुरू किया. दुनिया की सबसे पुरानी चाय कंपनियों में से एक “डंकन टी” की स्थापना लगभग 150 साल पहले दो डंकन ब्रदर्स, वाल्टर और विलियम द्वारा की गई थी.
असम टी के 200 साल
असम चाय या कैमेलिया साइनेंसिस असमिका के 200 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में, असम सरकार ने देश भर के प्रमुख शहरों में रोड शो आयोजित करने की विस्तृत योजना तैयार की है. राज्य सरकार इस ऐतिहासिक आयोजन को भव्य तरीके से मनाएगी.