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फिर विवादों में कनाडा के पीएम ट्रूडो, अब स्वस्तिक को लेकर उगला जहर

जस्टिन ट्रुडो का विवादों से पुराना नाता रहा है। जून महीने में कनाडा में एक रैली निकाली गई, जिसमें भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या को न्यायोचित ठहरने की कोशिश की गई।

कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रुडो

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने एक बार फिर नया बयान देकर विवाद खड़ा कर दिया है। जस्टिन ट्रूडो का ताजा बयान भारत विरोधी माना जा रहा है। उन्होंने सोशल साइट एक्स पर लिखा है कि जब हम घृणित भाषा और कल्पना देखते या सुनते हैं, तो हमें इसकी निंदा करनी चाहिए। पार्लियामेंट हिल पर किसी व्यक्ति की ओर से स्वस्तिक का प्रदर्शन अस्वीकार्य है। कनाडा के लोगों को शांतिपूर्वक इकट्ठा होने का अधिकार है, लेकिन हम यहूदी विरोधी भावना, इस्लामोफोबिया या किसी भी प्रकार की नफरत को बर्दाश्त नहीं कर सकते। जस्टिन ट्रुडो ने ‘स्वस्तिक’ को नाजियों के निशान ‘हेकेनक्रेज’ से जोड़ कर देखा है।

जबकि 28 फरवरी 2022 को कनाडा के सांसद चंद्र आर्य ने पार्लियामेंट में नाजियों के निशान ‘हकेनक्रेज’ की तुलना हिन्दू धर्म के ‘स्वस्तिक’ से नहीं करने की अपील की थी। उन्होंने कहा था कि हिन्दुओं के धार्मिक और पवित्र चिह्न स्वस्तिक और नाजियों के घृणा भरे निशान, जिसे जर्मनी में ‘हकेनक्रेज यानी Hakenkreuz’ और अंग्रेजी में ‘हूक्ड क्रॉस’ कहा जाता है, इन दोनों के बीच के अंतर को समझना चाहिए। प्राचीन भारतीय भाषा संस्कृत में स्वस्तिक का अर्थ होता है, जो अच्छा सौभाग्य लेकर आए और कल्याण करे। ये एक प्राचीन और काफी पवित्र प्रतीक चिह्न है।

हालांकि लगता है कि बयान देते वक्त जस्टिन ट्रूडो भारत के पवित्र चिह्न स्वस्तिक और ‘हकेनक्रेज’ के बीच अंतर करना भूल गए या उन्हें दोनों निशानों के अंतर की जानकारी ही नहीं है। जस्टिन ट्रुडो को हम ही समझा देते हैं, दोनों निशान के बीच का अंतर। सबसे पहला अंतर तो ये है कि स्वस्तिक एकदम सीधा होता है, जबकि हकेनक्रेज टेढ़ा। दूसरा अंतर स्वस्तिक की लकीर के आखिरी छोर से छोटी-छोटी टेढ़ी लाइन बनाई जाती है, जबकि हकेनक्रेज में ऐसी कोई लाइन नहीं होती। तीसरी बात ये कि स्वस्तिक में हर खाने में छोटी-छोटी बिंदी लगाई जाती है, जबकि हकेनक्रेज एकदम खाली होता है। चौथा अंतर ये है कि स्वस्तिक की लाइन पतली होती है, जबकि हेकेनक्रेज की लाइन मोटी होती है। ऐसे में दोनों निशान एक से कैसे माने जाएंगे? उनकी संसद के ही एक सदस्य सदन में स्वस्तिक और हकेनक्रेज के अंतर को समझा चुके हैं।

अब स्वस्तिक को लेकर जस्टिन ट्रूडो का बयान ऐसे वक्त में आया है, जब भारत और कनाडा के रिश्तों में पहले से ही कड़वाहट चल रही है। इसी साल 18 जून को खालिस्तान समर्थक आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की कनाडा के सर्रे में गोली मार कर हत्या कर दी गई थी। जिसको लेकर 19 सितंबर को कनाडा की संसद में पीएम जस्टिन ट्रूडो ने कहा था कि पिछले कुछ हफ्तों से कनाडा की सुरक्षा एजेंसियां कनाडा के नागरिक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या और भारत सरकार के कनेक्शन के आरोपों की जांच कर रही है। कनाडा कानून का पालन करने वाला देश है। हमारी पहली प्राथमिकता है कि सुरक्षा एजेंसियां और कानून लागू करने वाली एजेंसियां कनाडा के सभी नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करें।

ट्रूडो के आरोपों पर भारत सरकार ने सबूत की मांग की। लेकिन ट्रुडो सरकार की ओर से कोई सबूत पेश नहीं किया जा सका। ट्रूडो ने हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत सरकार को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की। शायद ये जस्टिन ट्रूडो के लिए अपना वोट बैंक सुरक्षित रखने की मजबूरी हो। ट्रूडो अपने देश के सिख समुदाय को खुश करने का प्रयास करते ज्यादा दिखे। ट्रूडो के लिए सिख समुदाय एक बड़ा वोट बैंक है। उनकी सरकार में चार मंत्री सिख समुदाय से आते हैं और एक सिख सियासी दल के समर्थन से ट्रूडो की सरकार टिकी हुई है। ट्रूडो के कदम से लगता है कि वो कनाडा की राजनीति को खालिस्तानी आतंकवादियों के प्रति नरम रूख और भारत को कठघरे में खड़ा करके ही साधना चाहते हैं।

जस्टिन ट्रुडो का विवादों से पुराना नाता रहा है। जून महीने में कनाडा में एक रैली निकाली गई, जिसमें भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या को न्यायोचित ठहरने की कोशिश की गई। भारत सरकार ने जब इसका विरोध किया, तो कनाडाई सरकार का जवाब लीपापोती करने जैसा था। जांच अधिकारी ने इस घटना को आपत्तिजनक मानने से इनकार कर दिया था।

2018 में कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो भारत के दौरे पर थे। उन्होंने खासतौर पर अमृतसर के स्वर्ण मंदिर का दौरा किया। ट्रूडो की यात्रा के मौके पर उनके साथ जसपाल अटवाल भी थे। अटवाल पर पंजाब सरकार के एक मंत्री की हत्या का आरोप है। इस बात की जानकारी मिलने पर भारत सरकार ने ट्रूडो की यात्रा को ज्यादा अहमियत नहीं दी और बहुत ही ठंडा रूख दिखाया।

भारत अलग-अलग मौके पर खालिस्तानी आतंकियों के लिए कनाडा के पनाहगाह बनने का मामला उठाता रहा है, लेकिन ट्रूडो सरकार ने सहयोग ना करके हमेशा इस मामले पर आंखें बंद कर ली है। स्वस्तिक की बात हो या फिर निज्जर की हत्या का, ये कोई पहला मौका नहीं है, जब भारत और कनाडा के बीच तनातनी हुई हो। दोनों के बीच कड़वाहट का इतिहास करीब 50 साल पुराना है। भारत और कनाडा के बीच तनाव 1974 में ही शुरू हो गया था। अब स्वस्तिक पर ट्रूडो के बयान को भारत किस रूप में देखते है। ये आनेवाले दिनों में ही साफ हो पाएगा।



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