दिल्ली जिमखाना
एमसीए से मनोनीत जिमखाना क्लब के सचिव रहे जेपी सिंह पर फर्जी दस्तावेजों से क्लब की सदस्यता लेने के आरोपों ने हड़कंप मचा दिया है. मामले में सेना से रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल और पूर्व प्रशासकों के साथ इसी साल क्लब के सचिव बने पूर्व नौकरशाह आशीष वर्मा तक की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं. इस गोरखधंधे का खुलासा करने वाले सेवानिवृत्त कर्नल आशीष खन्ना की मानें तो जल्द ही वह ऐसी सनसनीखेज जानकारी सार्वजनिक करने वाले हैं, जिसमें प्रधानमंत्री आवास की सुरक्षा में की गई कोताही भी शामिल है.
वित्तीय अनियमितताओं और भ्रष्टाचार की कालिख से रंगे जिमखाना क्लब में फर्जी दस्तावेजों से दी गई सदस्यता के आरोपों ने एक बार फिर क्लब प्रबंधन को कठघरे में खड़ा कर दिया है. हैरानी की बात है कि महज 37 साल की उम्र में क्लब की सदस्यता लेने वाला आरोपी, जिमखाना क्लब में निदेशक और सचिव तक रह चुका है. मामले का खुलासा होने के साथ ही एमसीए से नियुक्त निदेशक मंडल का कामकाज भी सवालों के घेरे में आ गया है. क्योंकि अपनी नियुक्ति के साथ ही इन निदेशकों ने क्लब सदस्यों के दस्तावेजों की जांच कराने का दावा किया था.
कर्नल खन्ना के किया है खुलासा
जिमखाना में भाई-भतीजावाद, वित्तीय अनियमितता और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ रहे सेना मैडल से नवजीत रिटायर्ड कर्नल आशीष खन्ना (सेना मैडल) ने इस मामले का खुलासा किया है. खास बात यह है कि इस लड़ाई में सरकार का साथ दे रहे कर्नल खन्ना, एमसीए से उपकृत ऐसे पूर्व नौकरशाहों के निशाने पर आ गए हैं, जो आज भी जिमखाना की गड़बड़ियों को दबाने की चेष्टा कर रहे हैं. कर्नल खन्ना का आरोप है कि 09 फरवरी 1987 को जतिंदर पाल सिंह नाम के व्यक्ति ने खुद को सरकारी सेवा में कार्यरत बताकर क्लब की सदस्यता ली थी. हैरानी की बात है कि जिस क्लब में सदस्यता के लिए 30 वर्ष से अधिक की वेटिंग हो, वहां 37 वर्ष से भी कम उम्र वाले व्यक्ति को सदस्यता कैसे दे दी गई?
पिता का नाम ही फर्जी
सदस्यता क्रमांक पी-3441 के तहत सदस्यता लेने वाले जतिंदर पाल सिंह ने आवेदन सम्बन्धी दस्तावेजों में खुद के पिता का नाम विंग कमांडर हरनाम सिंह दर्ज किया था. कर्नल खन्ना ने इसकी पुष्टि के लिए कई दस्तावेज भी जुटाए हैं. वह कहते हैं कि जतिंदर पाल सिंह के पिता का वास्तविक नाम वरयाम सिंह है. जानकार हैरानी होती है कि फर्जी दस्तावेजों के दम पर सदस्यता लेने वाले जतिंदर पाल सिंह क्लब में पांच साल तक निदेशक भी रह चुके हैं. साल 2020 में उन्हें क्लब का सचिव और सीईओ भी नियुक्त कर दिया गया. इतना ही नहीं उनकी नियुक्ति पर एमसीए ने भी मुहर लगा दी थी.
बड़े लोगों की भूमिका संदिग्ध
क्लब सचिव पद पर जतिंदर पाल सिंह की नियुक्ति किसी और ने नहीं बल्कि रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जरनल डीआर सोनी ने की थी. फरवरी 2021 में जब कर्नल खन्ना के बयानों के आधार पर एनसीएलएटी ने जिमखाना का प्रबंधन सरकार को सौंप दिया तो एमसीए ने यहां प्रशासक तो नियुक्त किया, लेकिन जतिंदर पाल सिंह को नहीं हटाया गया. जबकि उनके खिलाफ भी भ्रष्टाचार के आरोप लगे हुए थे. इसके बाद क्लब में एक के बाद एक तीन प्रशासक नियुक्त हुए. लेकिन एमसीए में अपने रुतबे और रसूख के कारण जतिंदर पाल सिंह को ना तो विनोद यादव ने पद से हटाया और ना ही ओम पाठक ने. इतना ही नहीं क्लब का सदस्य होने के बावजूद नियमों को दरकिनार कर पूर्व प्रशासक ओम पाठक ने तो उन्हें अवैध तरीके से वेतन के तौर पर करीब 33 लाख रुपए का भुगतान भी कर दिया था.
पूर्व सचिव की भूमिका पर सवाल
अप्रैल में जब एनसीएलटी ने तत्कालीन प्रशासक ओम पाठक और सचिव जेपी सिंह को यहां से हटाया तो क्लब में सचिव का पद संभालने वाले पूर्व आईआरएस आशीष वर्मा ने क्लब सदस्यों के दस्तावेजों की जांच कराने का दावा किया था. आरोप है कि जतिंदर पाल सिंह की सदस्यता में हुए फर्जीवाड़े को जानबूझकर छिपा कर रखा गया. सेवानिवृत्त कर्नल खन्ना कहते हैं कि इस मामले में क्लब में पदाधिकारी रहे कई लोग सीधे तौर शामिल हैं. इस बारे में वह अप्रैल से ही क्लब प्रबंधन को कई जानकारी दे चुके हैं.
सदस्यता से जुड़े दस्तावेज किए नष्ट
क्लब सूत्रों की मानें तो सर्वोच्च न्यायालय के सितम्बर 2021 के आदेशों की अवमानना कर क्लब के हजारों सदस्यों के मूल दस्तावेजों को षड्यंत्र के तहत नष्ट कर दिया गया है. इनमे जतिंदर पाल सिंह के सदस्यता आवेदन से जुड़े वह दस्तावेज भी शामिल हैं जिन्हे फर्जी तरीके से तैयार किया गया था. फर्जी दस्तावेजों से हासिल सदस्यता और अन्य आरोपों के बारे में क्लब प्रबंध समिति के अध्यक्ष मलय सिन्हा कहते हैं कि दस्तावेजों को देखने के बाद ही वह इस बारे में कुछ भी बता पाएंगे, वहीं जतिंदर पाल सिंह ने खुद पर लग रहे आरोपों के बारे में ना तो रविवार को की गई ईमेल का कोई उत्तर नहीं दिया और ना ही सोमवार को की गई फोन काल का कोई जवाब दिया.