अखिलेश यादव व जयंत चौधरी
Lok Sabha Elections 2024: विपक्षी एकजुटता के मंच पर कौन सचमुच है और कौन नहीं है, यह तो चुनाव के ऐन पहले ही साफ हो पाएगा. एक चेहरा जरूर झटका देता दिखाई दे रहा है. सबसे पहले नीतीश कुमार ने पटना में मंच को सजाने का प्रयास किया. इस पहली बैठक में जयंत चौधरी (Jayant Chaudhary) का नहीं पहुंचना कई सवालों को खड़ा कर रहा था. हालांकि इन सवालों को उन्होंने बेंगलुरु की बैठक में पहुंचकर विराम दे दिया. इसके बाद लगने लगा कि अब वह विपक्षी एकजुटता के साथ हैं. हालांकि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि उत्तर प्रदेश में नए समीकरणों की सुगबुगाहट लगातार दिखाई पड़ रही है. इस सब के बीच में दिल्ली सेवा बिल पर जंयत चौधरी का वोट नहीं डालना, कई सवालों को खड़ा कर गया है.
क्या जयंत चौधरी विपक्षी एकजुटता के मंच इंडिया को झटका देने जा रहे हैं? क्या बीजेपी और उनके साथ आने की अटकलें सिर्फ अफवाह ना होकर ठोस आधार भी रखती है? क्या उत्तर प्रदेश के आगामी चुनाव में बीजेपी कुछ नए समीकरणों के साथ उतरने जा रही है? बिना आग के धुआं नहीं उठता है. ऐसे ही जयंत चौधरी को लेकर जो भी कुछ कहा जा रहा है वह निराधार तो नहीं है. जयंत चौधरी की अपनी सियासत है. उन्होंने कभी किसी पार्टी से परहेज नहीं किया है. बिल्कुल अपने पिता के अंदाज में वह भी राजनीति करते दिखाई दे रहे हैं.यह बात अलग है कि अखिलेश यादव और उनकी मित्रता की मिसाल हाल के दिनों में दी गई.
मायावती-जयंत के रूख पर नजरें
उत्तर प्रदेश के 2022 के विधानसभा चुनाव में दोनों ने मिलकर प्रदर्शन भी ठीक किया, लेकिन लोकसभा चुनाव के समीकरण बिल्कुल अलग हैं. यह लगभग तय माना जा रहा है कि समाजवादी पार्टी और कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़ेंगे. ऐसे में मायावती और जयंत चौधरी का रूख़ किस तरफ रहेगा, इस पर सभी की नजर है. बीजेपी भी जानती है कि विपक्षी एकजुटता के इस मंच से निपटने के लिए उसे अपने एकजुटता के मंच को मजबूत करना होगा, यानी कि एनडीए के कुनबे को। बेंगलुरु में एक तरफ जहां इंडिया की बैठक चल रही थी, तो ठीक इसी दिन एनडीए ने संख्या में इससे ज्यादा दलों को इकट्ठा कर अपनी बैठक बुलाई. सांकेतिक तौर पर यह दिखाने का प्रयास भी किया गया कि विपक्ष से ज्यादा दल हमारे साथ जुट रहे हैं.
बहुत स्पष्ट तौर पर आम आदमी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस इन तीनों के समीकरण से विपक्षी एकजुटता का यह मंच मजबूत दिखाई पड़ता है. हालांकि इसमें बिहार के महागठबंधन के दल में लालू, नीतीश कुमार है या महाराष्ट्र के महा विकास आघाडी के घटक दल जिनमें आधी अधूरी एनसीपी और शिवसेना बची है, को भी महत्वपूर्ण माना जा सकता है. फिर भी ममता बनर्जी, केजरीवाल और कांग्रेस इन तीनों के मिले-जुले समीकरण से ही 2024 में विपक्षी एकजुटता मजबूत हो सकती है. जयंत चौधरी के मन में क्या चल रहा है, कहना बड़ा मुश्किल है, लेकिन दिल्ली सेवा बिल पर वह अकेले नहीं थे जो वोटिंग से बाहर रहे.
क्या आम आदमी पार्टी है असल वजह?
समाजवादी पार्टी के समर्थन से राज्यसभा पहुंचे और कांग्रेस के पूर्व दिग्गज कपिल सिब्बल ने भी वोट नहीं डाला. इसी तरह एचडी देवगौड़ा साहब ने भी वोट नहीं डाला. इससे यह स्पष्ट है कि कुछ चेहरे विपक्षी एकजुटता के साथ तो हो सकते हैं लेकिन शायद आम आदमी पार्टी से परहेज करना चाह रहे हों. सबसे बड़े मतभेद कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच में थे. जिसे कांग्रेस ने भुला दिया, लेकिन अब भी विपक्षी एकजुटता का यह ताना-बाना इतना आसान नहीं दिखाई पड़ता है. आने वाले दिनों में देखना दिलचस्प होगा कौन बना रहता है, कौन छोड़ता है या कौन नया जुड़ता है.
-भारत एक्सप्रेस