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दिल्ली एम्स का कायाकल्प

देश भर में स्वास्थ्य सेवाओं की कमियों को लेकर हमेशा सवाल उठाए जाते हैं। सरकारें आती-जाती रहती हैं और वे दावा करती हैं कि देश में स्वास्थ्य सेवाएँ बेहतर बनाएँगी।

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देश भर में स्वास्थ्य सेवाओं की कमियों को लेकर हमेशा सवाल उठाए जाते हैं। सरकारें आती-जाती रहती हैं और वे दावा करती हैं कि देश में स्वास्थ्य सेवाएँ बेहतर बनाएँगी। पर अधिकतर राज्यों में स्वास्थ्य सेवाओं का हाल बेहाल है। स्वास्थ्य मंत्रालयों के पास इन सब के लिये बड़ा बजट भी होता है। परंतु इस दिशा में उस गति से कार्य नहीं होते जिस गति से होने चाहिये। ज़्यादातर पैसा भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है। इसलिए देश भर से मरीज़ इलाज के लिए दिल्ली के एम्स का रुख़ करते हैं। इसी कारण यहाँ पर मरीज़ों की भीड़ लगी रहती है। परंतु आज जिस अनुभव को आपके साथ साझा कर रहा हूँ, वो आपको अच्छा लगेगा।

कुछ दिन पहले दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) जाना हुआ। चूँकि मेरा नाता एम्स के साथ सन् 1991 से है इसलिए वहाँ के चप्पे-चप्पे से वाक़िफ़ हूँ। परंतु जैसे ही मुझे पता चला कि एम्स की न्यू राजकुमारी अमृत कौर ओपीडी में जाना है तो उत्सुकता जागी कि ये कब बनी? मेरे ज़हन में तो पुरानी ओपीडी की वही बिल्डिंग थी जहां मरीज़ और उनके तीमारदारों की लंबी-लंबी क़तारें होती हैं। लिफ्ट के बाहर भी ऐसा ही हाल होता था। ओपीडी में डॉक्टर के कमरों के बाहर घुटन भरे माहौल में जाने से जी घबराता था। यदि किसी को व्हील चेयर या स्ट्रेचर चाहिए तो वहाँ पर काफ़ी संघर्ष करना पड़ता था। उसके बाद भी सही से चलने वाली व्हील चेयर मिले तो आपकी क़िस्मत अच्छी है। निर्धारित समय पर यदि डॉक्टर अपने कक्ष में मिल जाएँ तो सोने पे सुहागा। यही हाल जाँच विभाग का भी था, मशीनें तो थी पर वो सही से चलें इसकी गारंटी नहीं। एमआरआई जैसी जाँचों के लिए आपका नंबर कब आएगा ये भगवान भी नहीं बता सकते।

इन सब पुरानी यादों को दिमाग़ में रखते हुए, काफ़ी हिम्मत करके, कई वर्षों बाद एम्स गया। परंतु वहाँ का बदला हुआ स्वरूप देख कर ऐसा लगा ही नहीं कि ये वही एम्स है। मेन बिल्डिंग में घुसते ही जगह-जगह न्यू राजकुमारी अमृत कौर ओपीडी के दिशा निर्देशक बोर्ड लगे थे। जैसे ही हम अपने गंतव्य पर पहुँचे वहाँ पर भीड़ को नियंत्रित और निर्देशित करते हुए मेगामाइक से लैस गार्ड दिखाई दिये। ओपीडी की बिल्डिंग में साफ़ सुथरे निर्देशक बोर्ड लगे थे। व्हील चेयर इत्यादि के लिए अलग जगह थी, जहां पर अच्छी ख़ासी मात्रा में व्हील चेयर और स्ट्रेचर दिखाई दिये। लिफ्ट के पास भी भीड़ काफ़ी व्यवस्थित दिखाई दी। पूरी बिल्डिंग के वातानुकूलित होने के कारण किसी भी तरह की घुटन का एहसास नहीं हुआ। संबंधित विभाग की ओपीडी पर पहुँचते ही वहाँ पर इंतज़ार कर रहे मरीज़ों के बैठने की भी उचित व्यवस्था थी। डॉक्टर को सहयोग करते हुए गार्ड भी मरीज़ों से काफ़ी मधुरता से पेश आ रहे थे। डॉक्टर के कक्ष में भी काफ़ी साफ़ सफ़ाई दिखाई दी और आधुनिक मशीनें भी सुचारू रूप से चलती नज़र आईं।

2020 में शुरू हुई इस न्यू राजकुमारी अमृत कौर ओपीडी में अभी कुछ ही डिपार्टमेंट ही चालू किए गये हैं। सायकायट्री, ऑर्थोपेडिक, मेडिसिन, जीरिएट्रिक मेडिसिन, स्किन, इंडोक्रोनोलॉजी, ईएनटी, मातृ एवं शिशु, सर्जरी, बर्न व प्लास्टिक  सर्जरी विभाग, आदि शामिल हैं। उल्लेखनीय है कि इन नई बिल्डिंगों के खंडों की योजना 2010 में शुरू हुई थी। 2013 में एम्स के तत्कालीन निदेशक डॉ. (प्रो.) एम सी मिश्रा, के कार्यकाल में ये खंड बन कर तैयार हो गये थे। लंबे इंतजार के बाद जनता के लिए इसे 2020 में खोला गया। 570 कमरों वाले इस नए ओपीडी ब्लॉक में हर मंजिल पर करीब 500 लोगों के बैठने की सुविधा है। इस नई ओपीडी बिल्डिंग की खास बात यह है कि दिव्यांग मरीजों के लिए बेहतर व्यवस्था की गई है। स्वचालित सीढ़ियों से लिफ्ट पर ज़्यादा भार नहीं पड़ता और भीड़ नियंत्रण में भी काफ़ी सुविधा रहती है। इसी तरह एम्स के कैंपस में प्रवेश और निकासी की व्यवस्था भी काफ़ी सुचारु है। पार्किंग की कोई समस्या न हो इसलिए भूमिगत पार्किंग में भी कई तल बनाए गये हैं।

कुल मिलाकर देखा जाए तो एम्स की न्यू राजकुमारी अमृत कौर ओपीडी में जा कर एक बेहद ही अच्छा अनुभव हुआ। देश के स्वास्थ्य मंत्रालय के पास अच्छा ख़ासा बजट है। यदि सही दिशा में और सही ढंग से इस बजट को इस्तेमाल किया जाए तो वो दिन दूर नहीं जब पूरे देश में दिल्ली के एम्स जैसे कई अस्पताल खुल जाएँगे। देश भर के दूर दराज़ इलाक़ों से आने वालों को इलाज के लिए दिल्ली न आ कर अपने नज़दीकी एम्स में ही जाना होगा। सरकार को भी चाहिए कि देश भर में अधिक से अधिक मात्रा में दिल्ली एम्स जैसे आधुनिक सुविधाओं वाले अस्पताल खोले जाएँ जहां मरीज़ों को कम ख़र्च में बेहतर से बेहतर इलाज मिले। ज़ाहिर सी बात है कि यदि जनता के कर का पैसा ईमानदारी और पारदर्शिता से जनता के विकास पर लगेगा तो हर चुनावों से पहले सरकार के पास भी जनता को बताने के लिए ठोस आँकड़े होंगे। चुनावी वादों को सुन-सुन कर थक चुकी जनता को सरकार पर विश्वास तभी होगा जब जनता के विकास के लिए ज़मीनी स्तर पर कुछ ठोस नज़र भी आएगा।

*लेखक दिल्ली स्थित कालचक्र समाचार ब्यूरो के प्रबंधकीय संपादक हैं

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