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रियुमोटाइड आर्थराइटिस: इलाज संभव है?

यह एक क़िस्म का गठिया रोग है। ये क्यों, किसे और कब होता है इसका कोई स्पष्ट कारण पता नहीं हैं। पर चिंता की बात यह है कि ये काफ़ी लोगों को होने लगा है।

प्रतीकात्मक तस्वीर

सोशल मीडिया के दुरुपयोग के मामले अक्सर सामने आते रहते हैं। पिछले तीन वर्षों से फ़ेसबुक पर एक विज्ञापन चल रहा है जिसमें दावा किया जाता है कि, “चर्चित पत्रकार विनीत नारायण के घुटनों के दर्द का सफल इलाज।” विज्ञापन देने वाले ने मेरे घुटनों के दर्द की कहानी बता कर अपनी दवा और इलाज का प्रमोशन किया है। मैं कितना चर्चित हूँ या गुमनाम हूँ यह विषय नहीं है। पर इस हिन्दी विज्ञापन के कारण आए दिन हिन्दी भाषी राज्यों के मेरे परिचितों के फ़ोन मुझे आते रहते हैं जो यह जानना चाहते हैं कि क्या वाक़ई इस इलाज से मेरे घुटने ठीक हो गये? मेरा जवाब सुन कर उन्हें धक्का लगता है क्योंकि वे इस विज्ञापन पर यक़ीन कर बैठे थे और कुछ ने तो इलाज भी शुरू कर दिया था। मेरा उनको जवाब होता है कि मैं ख़ुद हैरान हूँ इस विज्ञापन से। क्योंकि मैंने ऐसी किसी व्यक्ति से अपना इलाज कभी नहीं कराया। ये नितांत झूठा विज्ञापन है। अगर मुझे उस व्यक्ति का पता मिल जाए तो मैं उसके विरुद्ध क़ानूनी करवाई अवश्य करूँगा।

ये सही है कि पिछले तीन वर्षों से मुझे घुटनों में दर्द की शिकायत है। जो कभी बढ़ जाता है तो कभी ग़ायब हो जाता है। ऐसा दर्द शरीर के अन्य जोड़ो में भी कभी-कभी होता रहता है। यह दर्द घुटनों के कार्टिलेज के घिसने वाला दर्द नहीं है, जो प्रायः हमारी उम्र के लोगों को हो जाता है। इस बीमारी का नाम है ‘रियुमोटाइड आर्थराइटिस’ जिसे आयुर्वेद में आमवात रोग कहते हैं। यह एक क़िस्म का गठिया रोग है। ये क्यों, किसे और कब होता है इसका कोई स्पष्ट कारण पता नहीं हैं। पर चिंता की बात यह है कि ये काफ़ी लोगों को होने लगा है। यहाँ तक कि किशोरों में भी अब यह रोग काफ़ी पाया जाने लगा है। इसमें अक्सर जोड़ो में सूजन आ जाती है। जो दो दिन से लेकर दस दिन तक चलती है और भयंकर पीड़ा देती है। रात में यह दर्द और बढ़ जाता है। कभी-कभी सारी रात जाग कर काटनी पड़ती है।

मरता क्या न करता। इस रोग के शिकार दर-दर भटकते हैं। अगर आप यूट्यूब पर जाएँ तो रियुमोटाइड आर्थराइटिस का इलाज बताने वाले दर्जनों शो मिल जाएँगे, जो प्राकृतिक चिकित्सा, होम्योपैथी, आयुर्वेद और एलोपैथी में इसका अचूक इलाज होने का दावा करते हैं।

ये लेख मैं अपनी राम कहानी बताने के लिए नहीं लिख रहा बल्कि अपना अनुभव साझा करने के लिए लिख रहा हूँ जिससे, जिन्हें ये रोग है उन्हें कुछ दिशा मिल सके। पारंपरिक रूप से मेरा एलोपैथी में विश्वास नहीं रहा है। हालाँकि हर बीमारी के एलोपैथी के उत्तर भारत के मशहूर डॉक्टरों से मेरे व्यक्तिगत संपर्क रहे हैं, फिर भी मैं उनसे इलाज कराने से बचता रहा हूँ।

इसलिए तीन वर्ष पहले जब मुझे पहली बार इस रोग ने हमला किया तो मैं भाग कर वृंदावन के मशहूर होमियोपैथिक डॉक्टर प्रमोद कुमार सिंह को दिखाने हवाई जहाज़ से पूना गया। क्योंकि उन दिनों वे निजी कारणों से पूना में थे। उन्होंने एक घंटे मुझ से सवाल-जवाब किए और एक पुड़िया होम्योपैथी की मीठी गोलियों की दी। जिसको खाने के चौबीस घंटों में मेरी सारी सूजन और दर्द चला गया। मैंने बड़ी श्रद्धा और विश्वास से छह महीने उनसे इलाज करवाया। हाँ उनके बताए दो काम मैं नहीं कर सका। एक तो नियमित प्राणायाम करना और दूसरा एक घंटे रोज़ धूप में बैठना।

इन छह महीनों में स्थिति काफ़ी नियंत्रण में रही। लेकिन फिर भी कभी-कभी जोड़ों की सूजन बढ़ जाती थी। तो मैंने आयुर्वेद का इलाज कराने का निश्चय किया। हालाँकि डॉ प्रमोद कुमार सिंह पर मेरा विश्वास आज भी क़ायम है और वो पिछले हफ़्ते ही मुझसे कह रहे थे कि अगर मैं एक डेढ़ साल लग कर उनका इलाज कर लूँ तो वे मुझे पूरी तरह से ठीक कर देंगे।

आयुर्वेद का इलाज कराने मैं जयपुर जा पहुँचा। वहाँ आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य रहे डॉ महेश शर्मा ने मेरा इलाज शुरू किया। छह महीने तक मैंने उनकी सभी दवाएँ नियम से लीं। साथ ही उनके बताए परहेज़ भी काफ़ी निष्ठा से किए। जिसका मतलब था कि खाने में गेहूं, चावल, मैदा, चीनी और दूध के पदार्थों का निषेध और दालों में केवल मूँग और मसूर की दाल। ग़ज़ब का फ़ायदा हुआ। मैं इतना ठीक हो गया कि चाट-पकौड़ी और दही बड़े तक खाने लगा। जब डॉक्टर साहब को उनकी प्रशंसा में यह बताया तो उनका कहना था कि, “आम वात रोग राख में दबी चिंगारी की तरह होता है, आप ज़रा सी लापरवाही करेंगे तो फिर बढ़ जाएगा।”छह महीने बाद उन्होंने मुझे दवा देना बंद कर दिया यह कह कर कि मेरी तरफ़ से इलाज पूरा हुआ। उसके बाद मैं काफ़ी समय तक ठीक रहा। परंतु शाकाहारी होते हुए कई बार ख़ान-पान का अनुशासन तोड़ देता था। परिणाम वही हुआ जो उन्होंने कहा था। बीमारी फिर बढ़ गई।

मेरे परिवेश में जितने भी लोग हैं वे मेरी मान्यताओं से इत्तिफ़ाक़ नहीं रखते। उनका कहना है कि आज के युग में जब हवा-पानी, ख़ान-पान सब अशुद्ध हैं और खाद्य पदार्थों पर कीटनाशक दवाओं और रासायनिक उर्वरकों का भारी दुष्प्रभाव है तो होम्योपैथी, आयुर्वेद या प्राकृतिक चिकित्सा के कड़े नियमों का पालन करना लगभग असंभव है। इन पद्धतियाँ में कोई कमी नहीं है।किंतु हमारी परिस्थिति, दिनचर्या और ख़ान-पान हमें इनके नियमों का पालन नहीं करने देते। इसलिए इनका पूरा व सही लाभ नहीं मिल पाता। इन सब मित्रों और परिवारजनों का आग्रह था कि मैं एलोपैथी डॉक्टर से इलाज करवाऊँ, तो मैंने दिल्ली के ‘इंडियन स्पाइनल इंजरिज़ अस्पताल’ के मशहूर डॉक्टर संजीव कपूर को दिखाया। जिन्हें मैं दो बरस पहले दिखा चुका था, पर इलाज नहीं किया था। ये उन्हें याद था। वे बोले, “आप देश के प्रबुद्ध व्यक्ति हैं। आपके विचारों और लेखों का आमजन पर प्रभाव पड़ता है। फिर आप हमारी पद्धति पर शक क्यों करते हैं? हमारे पास दुनिया का सर्वश्रेष्ठ इलाज है और रियुमोटाइड आर्थराइटिस की हर अवस्था का हम इलाज कर सकते हैं। आप आश्वस्त रहिए हम आपका कष्ट दूर कर देंगे।”अब मैंने उनका इलाज शुरू कर दिया है। उम्मीद है उनका दावा सही निकलेगा और मैं शेष जीवन इस कष्ट के बिना जी पाऊँगा जो मेरी भाग-दौड़ की सामाजिक ज़िंदगी के लिए बहुत ज़रूरी है।

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