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गुमनाम सिपाहियों को सलाम

Analysis by Rajneesh Kapoor: किसी विशिष्ट व्यक्ति को अस्पताल में आना होता है तो उसका एक प्रोटोकॉल होता है, जिसका पालन वे अपने वरिष्ठ अधिकारियों की निगरानी में करते हैं. परंतु अस्पताल में आने वाला हर व्यक्ति यदि ख़ुद को वीआईपी समझे और इन सुरक्षाकर्मियों को अपना सेवक तो यह ठीक नहीं.

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गुमनाम सिपाहियों को सलाम

एक पुरानी कहावत है, ‘लड़ती है फ़ौज और नाम कप्तान का होता है.’ यह बात काफ़ी हद्द तक सही है, क्योंकि वो फ़ौज का कप्तान ही होता है जो सारी रणनीति बनाता है. हर कप्तान को अपनी फ़ौज पर पूरा विश्वास होता है और उसी विश्वास पर वह जंग में जीत हासिल कर लेता है. यह बात हर उस जंग के लिए कही जा सकती है जहां एक टीम के साथ उसका एक कप्तान होता है. परंतु हर टीम में कुछ ऐसे गुमनाम सिपाही होते हैं जिन्हें हम नज़रअंदाज़ कर देते हैं. आज हम ऐसे ही कुछ गुमनाम सिपाहियों का ज़िक्र करेंगे जिनके योगदान के बिना देश भर की स्वास्थ्य सेवा अधूरी है. यह स्वास्थ्यकर्मी आपको हर अस्पताल या बड़े क्लिनिक में दिखाई तो देते होंगे पर आपने इनकी सेवा पर इतना गौर नहीं किया होगा.

पिछले सप्ताह मुझे कुछ दिनों के लिए दिल्ली के एक बड़े अस्पताल में परिवार के एक सदस्य की तीमारदारी के लिये रुकना पड़ा. वहाँ पर हुए कुछ अनुभव के आधार पर ऐसा लगा कि अस्पतालों में काम कर रहे स्वास्थ्यकर्मियों के बारे में पाठकों को जानकारी दी जाए. यह अस्पताल देश के कई बड़े अस्पतालों में से एक था, इसलिए वहां पर मरीज़ों और उनके रिश्तेदारों में एक विश्वास का माहौल दिखाई दे रहा था. ज़्यादातर लोगों के पास मेडिक्लेम या सीजीएचएस की सुविधा होने के कारण उनके माथे पर अस्पताल के बिल को लेकर कोई ख़ास दिक़्क़त नहीं दिखाई दी. परंतु वहीं दूसरी ओर कुछ मरीज़ों में महँगे इलाज को लेकर चिंता भी दिखाई दी. परंतु आज का विषय मेडिक्लेम और महंगे इलाज का नहीं है.

जब भी कभी आप अस्पताल गए होंगे तो आपका सामना सबसे पहले वहाँ पर तैनात सुरक्षाकर्मियों से होता है. ये सुरक्षाकर्मी व्यवस्था बनाए रखने की नीयत से अस्पताल में आने वाले हर व्यक्ति को कभी प्यार से और कभी डाँट से समझाते हुए दिखाई देते हैं. आपने अक्सर देखा होगा कि अस्पताल में आने वाले लोग प्रायः इन सुरक्षाकर्मियों से बुरा व्यवहार करते हैं. परंतु देखा जाए तो अस्पतालों में तैनात तमाम सुरक्षाकर्मी केवल अपनी ड्यूटी कर रहे होते हैं. उनके लिए अस्पतालों में आनेवाले सभी लोग एक समान हैं.

जब भी कभी किसी विशिष्ट व्यक्ति को अस्पताल में आना होता है तो उसका एक प्रोटोकॉल होता है, जिसका पालन वे अपने वरिष्ठ अधिकारियों की निगरानी में करते हैं. परंतु अस्पताल में आने वाला हर व्यक्ति यदि ख़ुद को वीआईपी समझे और इन सुरक्षाकर्मियों को अपना सेवक तो यह ठीक नहीं. यदि अस्पतालों में व्यवस्था नहीं बनी रहेगी तो क्या वहाँ पर इलाज करने वाले डॉक्टर अपना काम शांति से कर पाएँगे? ज़रा सोचिए कि आप ख़ुद को एक वरिष्ठ डॉक्टर को दिखा रहे हों और बिना किसी सुरक्षाकर्मी की तैनाती के, दरवाज़े पर दूसरे मरीज़ कोहराम मचा रहे हों. ऐसे में क्या डॉक्टर आपकी बीमारी पर ध्यान देगा या बाहर खड़ी भीड़ पर?

ठीक इसी तरह हर अस्पताल में भर्ती मरीज़ों से मिलने वालों के लिए भी नियम तय किए गए हैं. इन नियमों को सुचारू रूप से लागू किया जाए इसलिए अस्पतालों के वार्ड में जाने वाले हर मार्ग पर सुरक्षाकर्मियों की तैनाती की जाती है. इन सुरक्षाकर्मियों की यह ड्यूटी होती है कि केवल पास धारक या अधिकृत व्यक्तियों को ही प्रवेश दिया जाए. परंतु फिर भी आपने अक्सर कई लोगों को इन सुरक्षाकर्मियों से उलझते हुए देखा होगा. क्या यह सही है? अस्पताल में मरीज़ अपना इलाज करवाने और आराम करने आता है.

यदि यहाँ भी मिलने वालों का ताँता लगा रहे तो अस्पताल और घर में फ़र्क़ ही क्या रहेगा? इतना ही नहीं कुछ मरीज़ों को संक्रमण का ख़तरा भी होता है, जो आगंतुकों के आने से बढ़ भी सकता है. इसलिए अस्पतालों में कुछ विशेष वार्डों में आगंतुकों का प्रवेश पूरी तरह से वर्जित होता है. ऐसे कड़े नियम केवल मरीज़ के हित में ही होते हैं. इसलिए अगली बार यदि आपको किसी सुरक्षाकर्मी द्वारा रोका या टोका जाए तो इस बात का ध्यान दें कि वो सुरक्षाकर्मी अपनी ड्यूटी कर रहा है और इसमें आपको बुरा नहीं मानना चाहिए.

अब बात करें उन स्वास्थ्यकर्मियों की जो चुपचाप अपना काम करते हैं और इस बात को सुनिश्चित करते हैं कि अस्पताल और अस्पताल में भर्ती सभी मरीज़ एकदम स्वच्छ रहें. आप इन्हें अस्पताल के सफ़ाई कर्मियों, वार्ड बॉय, हाउसकीपर जैसे नामों से जानते हैं. इनका काम है अस्पताल के पूरे वातावरण को एकदम साफ़ सुथरा और व्यवस्थित रखना. किसी भी मरीज़ को वार्ड से किसी भी तरह की जाँच के लिए ले जाना हो. मरीज़ों के बिस्तर बदलने हों. मरीज़ों के स्नान व सफ़ाई की बात हो. मरीज़ों के ऑपरेशन से पहले की तैयारी हो.

मरीज़ों को टॉयलेट ले कर जाना हो. ये स्वास्थ्यकर्मी मरीज़ों की सेवा करने से नहीं चूकते. वे हर मरीज़ के साथ अपनों जैसा ही व्यवहार करते दिखाई देते . परंतु इसके बावजूद इन्हें मरीज़ों और उनके रिश्तेदारों से शायद ही कभी सराहा जाता होगा। ज़्यादातर स्वास्थ्यकर्मी मरीज़ों की सेवा करने के बावजूद बुरे बरताव का ही सामना करते हैं और फिर भी मुस्कुराते हुए अपना काम करते रहते हैं.

हम लोग अक्सर अस्पतालों से छुट्टी के समय केवल डॉक्टरों और नर्सों का आभार प्रकट कर वहाँ से चल देते हैं. जबकि यह बात उल्लेखनीय है कि अस्पतालों में तैनात हर वो व्यक्ति स्वास्थ्यकर्मी है जो पूरी व्यवस्था बनाए रखने में सहयोग देता है. फिर वो चाहे सुरक्षाकर्मी हो, वार्ड बॉय हो या सफ़ाई कर्मचारी। सभी का योगदान प्रशंसनीय होता है. आख़िरकार वे भी इंसान हैं और उनके साथ न तो बुरा व्यवहार होना चाहिए और न ही उनकी उपेक्षा की जानी चाहिए.

-लेखक दिल्ली स्थित कालचक्र समाचार ब्यूरो के प्रबंध संपादक हैं.

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