जानें क्यों दुकान बंद करने पर मजबूर हुई वायरल गर्ल ‘Russian Chaiwali’
Digital Personal Data Protection: आए दिन हमें डिजिटल धोखाधड़ी के मामलों के बारे में पता चलता है। कैसे कुछ शातिर लोगों का गैंग एक योजनाबद्ध तरीक़े से भोले-भले लोगों को ठगने की मंशा से उन्हें अपना शिकार बनाते हैं। उनकी मेहनत की कमाई को कुछ ही पल में फुर्र कर देते हैं। उसके बाद ऐसे फ्रॉड का शिकार व्यक्ति अपनी शिकायत लेकर दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हो जाता है। परंतु सरकार ने इस फ्रॉड को रोकने और ज़रूरी निजी जानकारी की सुरक्षा की दृष्टि से ‘डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल’ को संसद में पेश किया है जो अब क़ानून बन गया है।
हाल ही में केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने संसद में डिजिटल पर्सनल डाटा प्रोटेक्शन बिल, 2023 पेश किया। इस विधेयक के तहत नागरिकों के व्यक्तिगत डाटा की सुरक्षा के अधिकार व्यवस्था करता है। यहाँ सवाल उठता है कि यदि यह बिल नागरिकों की निजी जानकारी सुरक्षा कि दृष्टि से लाया गया है तो इसका इतना विरोध क्यों किया गया? क्या विरोध केवल विरोध के लिए ही है या इसका कोई वाजिब कारण भी है?
संसद के दोनों सदनों में यह बिल पास हो गया। ग़ौरतलब है कि नागरिकों के पर्सनल डेटा की सुरक्षा को लेकर देश भर में पहले से ही काफ़ी बहस चल रही है। परंतु इस बहस को गति देने की पहल देश की सर्वोच्च अदालत ने 24 अगस्त 2017 को अपने फ़ैसले से की। इस फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि “निजता का अधिकार लोगों का मूलभूत अधिकार है।” नौ जजों वाली सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार बताया है। पीठ ने कहा कि “निजता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दिए गए जीने के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हिस्सा है।”
यहाँ यह समझना ज़रूरी है कि इस बिल के तहत हमारे किस डेटा की सुरक्षा की बात हो रही है। ‘डिजिटल पर्सनल डेटा’ वो होता है जो आप किसी भी ई-कॉमर्स की वेबसाइट पर प्रदान करते हैं। ये डेटा वो होता है जिससे आपकी और आप जैसे करोड़ों उपभोक्ताओं की विभिन्न ई-कॉमर्स वेबसाइट पर पहचान बनती है। उदाहरण के तौर पर आप किसी वेबसाइट से रोज़मर्रा का सामान मँगवाते हैं तो आपका ‘यूज़र नेम’, ‘पासवर्ड’, आपकी जन्मतिथि, आपके घर या ऑफिस का पता, आपका मोबाइल नंबर, पैन नंबर, आधार नम्बर आदि। इसके साथ ही आपके द्वारा मंगाए जाने वाले सामान या भोजन आदि भी आपके प्रोफाइल में अंकित हो जाते हैं। इसके साथ ही आपकी वो निजी जानकारी जो आपके प्रोफाइल में दर्ज हो जाती है, वो है आपके द्वारा कि गई ख़रीदारी का मूल्य। सोशल मीडिया साईट पर आप किस से क्या बात कर रहे हैं। आपकी लोकेशन क्या है। आप किस लोकेशन पर ज़्यादा समय बिताते हैं। ऐसी सभी जानकारियों को ‘डिजिटल पर्सनल डेटा’ कहा जाता है।
‘डिजिटल पर्सनल डेटा’ का दुरुपयोग करना बहुत आसान है। सोशल मीडिया वेबसाइट्स व ई-कॉमर्स वेबसाइट्स या मोबाइल ऐप्स आपके इस डेटा को, बिना आपकी जानकारी के, अन्य कंपनियों को बेच देते हैं। इस ‘डिजिटल पर्सनल डेटा’ के आधार पर विभिन्न वेबसाइट्स आपके कंप्यूटर या फ़ोन पर आपको तरह-तरह के विज्ञापन आदि दिखाते हैं और ग्राहकों को आकर्षित करते हैं। ज़ाहिर सी बात है कि इन विज्ञापनों से इन वेबसाइट्स को मुनाफ़ा होता है। मिसाल के तौर पर अमेरिका में 2016 के राष्ट्रपति चुनाव के दौरान मतदाताओं को प्रभावित करने की मंशा से सोशल मीडिया प्लेटफार्म फ़ेसबुक पर आरोप लगा था और उस पर हज़ारों करोड़ का जुर्माना लगाया था।
ऐसा नहीं है कि निजता के बचाव की मंशा से यह पहली बार हो रहा है। इससे पहले साल 2012 में सुप्रीम कोर्ट के जज, न्यायमूर्ति ए पी शाह की अध्यक्षता में एक प्राइवेसी कमेटी बनी थी जिसने प्राइवेसी क़ानून बनाने की सिफ़ारिश भी की थी। लेकिन मामला ठंडे बस्ते में पड़ा रहा। उसके बाद से अब तक कई बार इस मामले पर कमेटी बनीं और विधेयक भी प्रस्तावित किए गए। परंतु ‘डिजिटल पर्सनल डेटा’ की उचित सुरक्षा न हो पाने के कारण विपक्ष और जानकारों ने इसे क़ानून बनने नहीं दिया। विपक्ष ने आरोप लगाया था कि यह बिल निजी डेटा की सुरक्षा के नाम पर, सरकार ने अपने पास मनमानी शक्तियाँ इकट्ठा कर ली हैं। इसके बाद इस विधेयक को संसद की संयुक्त समिति यानी ‘जेपीसी’ के पास भेजा गया। जेपीसी की रिपोर्ट में इस विधेयक को लेकर कई संशोधन और सुझाव दिये गये। सरकार ने इन सुझावों व संशोधनों के ना मानकर अगस्त 2022 में विधेयक को वापिस ले लिया। इस सबके बाद इस सत्र में इस विधेयक को दोबारा पेश किया गया। परंतु इस बार भी सरकार ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि पिछले विधेयक के मुक़ाबले इस विधेयक में क्या बदलाव किये गये हैं।
उल्लेखनीय है कि इस विधेयक में ‘जैसा कि निर्धारित किया जाएगा’ वाक्य को 26 बार प्रयोग किया गया है। विपक्ष के अनुसार इसका सीधा मतलब यह है कि काफ़ी कुछ अंधेरे में है और नियमों को बंद दरवाज़े से लाया जाएगा। विपक्ष का आरोप है कि यह बिल निजता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है और इससे सूचना का अधिकार (आरटीआई) क़ानून भी कमजोर होगा। जबकि सत्ता पक्ष की तरफ़ से लगातार इस बात पर जोर दिया गया कि बिल सिर्फ़ व्यक्तिगत डेटा को सुरक्षा देगा और आरटीआई पर इससे कोई असर नहीं पड़ेगा। देखना यह है कि क्या इस क़ानून का उल्लंघन करने वालों को कड़ी सज़ा या जुर्माना लगेगा या सरकार इस क़ानून का दुरुपयोग करेगी। यह तो आने वाला समय ही बताएगा की यह क़ानून बनने निजता की सुरक्षा को लेकर कितना खरा उतरता है?
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