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नॉमिनी या बेनिफ़िशियरी, कौन है असली उत्तराधिकारी?

बैंक खातों में हमारी जमा पूँजी, शेयर मार्केट या म्यूचुअल फंड में निवेश, बीमा की राशि या अन्य किसी भी तरह का निवेश हो तो हमारी मृत्यु के बाद उसका नॉमिनी ही उसका उत्तराधिकारी बने यह बात क़ानूनी रूप से सही नहीं है.

Who is the real heir Nominee or beneficiary

कौन है असली उत्तराधिकारी?

जब भी आप किसी बैंक में अपना खाता खुलवाते हैं, किसी निवेश योजना में निवेश करते हैं या अपना जीवन बीमा करवाते हैं तो बैंक या बीमा कंपनी आपसे यह अवश्य पूछती है कि आपका नॉमिनी कौन होगा? आप उसी व्यक्ति को अपना नॉमिनी बनाते हैं जिसे आप चाहते हैं कि आपकी मृत्यु के बाद वह राशि मिले. परंतु क्या क़ानून के हिसाब से नॉमिनी को ही वह राशि मिलती है? क्या नॉमिनी ही आपके बाद आपकी राशि का उत्तराधिकारी बन सकता है? इसका जवाब है ‘नहीं’। क़ानूनी भाषा में नॉमिनी का मतलब उत्तराधिकारी नहीं होता. नॉमिनी वह व्यक्ति होता है जिसे आप अपनी मृत्यु के बाद आपकी राशि की देखभाल करने के लिए मनोनीत करते हैं. परंतु ज़्यादातर लोगों को इस बात की जानकारी नहीं है कि नॉमिनी असली उत्तराधिकारी नहीं होता.

बैंक खातों में हमारी जमा पूँजी, शेयर मार्केट या म्यूचुअल फंड में निवेश, बीमा की राशि या अन्य किसी भी तरह का निवेश हो तो हमारी मृत्यु के बाद उसका नॉमिनी ही उसका उत्तराधिकारी बने यह बात क़ानूनी रूप से सही नहीं है. असली उत्तराधिकारी वह व्यक्ति होता है जो इस राशि का ‘बेनिफ़िशियरी’ यानी लाभार्थी हो. ऐसे में किसी भी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसके द्वारा नामित नॉमिनी को मृत व्यक्ति की राशि मिलती तो ज़रूर है परंतु वह नॉमिनी उस राशि का इस्तेमाल नहीं कर सकता. वह केवल उस राशि की देखभाल कर सकता, वह भी तब तक जब तक उस राशि का लाभार्थी उस पर अपना दावा न करे. ऐसे में भारत के क़ानून काफ़ी स्पष्ट हैं कि किसी की मृत्यु के बाद, उसके धर्म के अनुसार, उस पर उत्तराधिकारी क़ानून की धाराओं के तहत ही उत्तराधिकारी तय किया जाता है.

जानें क्या कहता है हिंदू विवाह एक्ट

मिसाल के तौर पर, हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 8 के तहत किसी भी पुरुष की मृत्यु के बाद प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारी, उस पुरुष की पत्नी, बच्चे और माँ के बीच पूरी जायदाद व जमा पूँजी बटेगी. इसका सीधा मतलब यह हुआ कि किसी की मृत्यु के बाद उसकी जमा पूँजी पर उसके नॉमिनी का हक़ नहीं होता, बल्कि उसके असली उत्तराधिकारियों का ही हक़ होता होता है. यदि उसका नॉमिनी भी इसी श्रेणी में आता हो, तो भी वह उस जमा पूँजी का संपूर्ण उत्तराधिकारी नहीं हो सकता. जब भी किसी की मृत्यु होती है और उसका नॉमिनी बैंक या बीमा कंपनी के पास मृत व्यक्ति के पैसे का दावा करने जाते हैं तो बैंक या बीमा कंपनी उनसे कोर्ट द्वारा दिये गये उत्तराधिकार प्रमाणपत्र की माँग करता है. बिना इस प्रमाणपत्र के कोई भी बैंक या बीमा कंपनी यह राशि किसी को भी नहीं देती.

लाभार्थी ही असली उत्तराधिकारी

इससे यह बात तो स्पष्ट है कि नॉमिनी नहीं बल्कि बेनिफ़िशियरी (लाभार्थी) ही असली उत्तराधिकारी होता है. परंतु कुछ मामलों में यह भी देखा गया है कि नॉमिनी ही बेनिफ़िशियरी होता है. इसलिए आप जब भी अपनी जमा पूँजी के लिए किसी को नॉमिनी बनाएँ तो इस बात को सुनिश्चित कर लें कि आप सोच समझ कर ही ऐसा निर्णय ले रहे हैं. क्योंकि ऐसे कई कोर्ट केस सामने आए हैं जहां नॉमिनी और बेनिफ़िशियरी के बीच विवाद हुए हैं. बेनिफ़िशियरी को नॉमिनी से अपने हक़ का पैसा निकलवाने में काफ़ी दिक़्क़तों का सामना करना पड़ा है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या ऐसा कोई अपवाद है कि जहां नॉमिनी को ही लाभार्थी मान लिया जाए? बीमा कानून (संशोधन) अधिनियम, 2015 के तहत धारा 39(7) को जोड़ा गया. इस धारा के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए जहां अपने ही जीवन पर बीमा पालिसी का धारक अपने माता-पिता या अपने पति या अपनी पत्नी या अपने बच्चों या अपने पति याअपनी पत्नी और बच्चों या उनमें से किसी को नामनिर्देशित करता है वहां नामनिर्देशिती बीमाकर्ताद्वारा उपधारा (6) के अधीन उसे या उनको संदेय रकम के फायदा पाने का हकदार होगा या होंगे. यह नियम केवल बीमा स्कीम में ही लागू होगा अन्य किसी भी वित्तीय योजना पर नहीं.

वसीयत ही अंतिम इच्छा

इसके साथ इस पूरे मामले में एक अपवाद और भी है, वह है आपकी वसीयत. आपकी वसीयत या ‘विल’ को ही आपकी अंतिम इच्छा माना जाता है. इसमें आप अपने जीवन में कमाई तमाम पूँजी व जायदाद का ज़िक्र करते हैं. इसमें आप अपनी मृत्यु के पश्चात, अपनी इच्छा अनुसार अपनी संपत्ति को जिसे चाहें दे सकते हैं. यदि आप अपनी वसीयत में ही यह बात स्पष्ट कर दें कि जहां-जहां आपने जिस-जिस व्यक्ति को जमा पूँजी का नॉमिनी बनाया हुआ है वही उस पूँजी का लाभार्थी भी हो तो इसमें किसी भी तरह का कोई विवाद नहीं उठ सकता. भारत के क़ानून के अनुसार यदि किसी व्यक्ति की वसीयत है तो उसे ही उसकी अंतिम इच्छा मान कर बटवारा किया जाएगा. यदि किसी की कोई वसीयत न हो, तो उसी स्थिति में उत्तराधिकार अधिनियम लागू होगा.

सोच समझकर लिखें वसीयत

इसलिए यदि आप चाहते हैं कि आप अपने प्रियजनों को अपनी इच्छा अनुसार अपनी कमाई पूँजी अपनी मृत्यु के बाद बाँटे तो अपने जीवन काल में ही अपनी वसीयत को सोच समझ कर लिख दें. वसीयत के गवाह भी किसी ऐसे व्यक्ति को बनाएँ जो आपके द्वारा इंगित लाभार्थीयों को स्वीकार्य हों। हर परिवार में घर के मुखिया की मृत्यु के बाद ही पूँजी और जायदाद को लेकर विवाद होते हैं। परंतु यदि किसी ने सही समय पर उचित बटवारा किया हो और उसे अपनी वसीयत में लिख दिया हो तो ऐसे में इस तरह के विवाद नहीं होते। इसलिए सही उत्तराधिकारी को ही चुनें और सही समय पर ही अपनी वसीयत करें.



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