26 अक्टूबर को तबीयत बिगड़ने पर शारदा दिल्ली एम्स में भर्ती हुई थीं. छठ के पहले दिन निधन हुआ.
आर.के. सिन्हा
सूर्य आस्था के पञ्चदिवसीय महापर्व छठ के श्रीगणेश के साथ जब सभी छठ पर्व में आस्था रखने वालों का मन उत्साह और आनंद के वातावरण में रमा हुआ था, बस तब ही लोक गायिका पद्मश्री शारदा सिन्हा के निधन का समाचार मानो सारी दुनिया के भोजपुरी भाषियों और प्रेमियों के ऊपर वज्रपात के समान था. हालांकि शारदा जी अब हमारे बीच नहीं रहीं, पर आस्था के महापर्व छठ से जुड़े उनके सुमधुर गीतों की गूंज सदियों तक सदैव बनी रहेगी.
भोजपुरी संगीत में शारदा सिन्हा का नाम एक ऐसा नाम है, जो केवल गायिका से ज़्यादा है, एक समृद्ध भोजपुरी संस्कृति का प्रतीक है. उनकी आवाज में न केवल भोजपुरी लोकगीतों की परंपरा झलकती है बल्कि छठ महापर्व पर्व की पवित्रता भी. उनके छठ गीत न केवल भावनाओं को छूते हैं, बल्कि सुनने वालों के दिलों में छठ पर्व की गहराई को भी उकेर देते हैं. अपनी वेशभूषा रहन सहन और बोलचाल में अपनी संस्कृति की गंध लिए शारदा एक आम स्त्री बनी रहीं. उन्होंने बताया कि किस तरह एक स्त्री अपनी सफलता की सीढ़ियां अपनी संस्कृति के साथ चढ़ सकती हैं.
शारदा सिन्हा का निधन संगीत जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है. प्रधानमंत्री मोदी ने ‘एक्स’ पर अपने पोस्ट में कहा, ‘सुप्रसिद्ध लोक गायिका शारदा सिन्हा के निधन से अत्यंत दुख हुआ है. उनके गाए मैथिली और भोजपुरी के लोकगीत पिछले कई दशकों से बेहद लोकप्रिय रहे हैं.’
शारदा सिन्हा पिछले कुछ दिनों से अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में भर्ती थीं और सोमवार से उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था.
शारदा सिन्हा ने छठ पर्व के गीतों को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया. उनके द्वारा गाए गए ‘सूर्य देवता, ओ सतवां दिन’… ‘छठी मइया के घाट, घाट, घाट’ जैसे गीत आने वाली सदियों तक लोकप्रिय रहने वाले हैं और छठ पूजा के दौरान घर-घर सदियों तक गूंजते ही रहेंगे .उनकी आवाज़ में छठ महापर्व के प्रति श्रद्धा और भक्ति का ऐसा मिश्रण था जिसने लाखों लोगों को छठ पूजा से जोड़ दिया.
जिस शारदा सिन्हा ने भोजपुरी लोक गीतों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय बनाया, वह अब हमारे बीच नहीं रही हैं.
शारदा जी अपने चाँद से मिंलने चली गईं. उनके पति का भी कुछ माह पूर्व ही निधन हो गया था. बिहार में भिखारी ठाकुर , महेंद्र मिसिर, रघुवीर नारायण , मनोरंजन सिन्हा, विंध्यवासिनी देवी की परंपरा को आगे बढानेवाली शारदा जी स्त्री सशक्तिकरण की एक प्रतीक थी. लोक गायक अपनी जनता में किस तरह अमर हो जाता है, इसका एक ताजा उदाहरण थी.उनके गीतों से एक बार सिद्ध हुआ कि भारतीय स्त्रियों ने ही लोकगीतों को बचाये रखा है.
भोजपुर अंचल में स्त्री की वेदना विरह प्रेम वात्सल्य विवाह गीत छठ गीत की आवाज़ शारदा जी के गीतों में गहरी पीड़ा व्यक्त होती थी. भोजपुर अंचल से बाहर की स्त्रियों ने भी उनकी आवाज़ में अपनी अभिव्यक्ति पाई थी. शारदा जी ने विशुद्ध पवित्र और सात्विक गीत गाये और बताया कि यही सच्चाई है यही उनके लोकगायकी में शिखर पर पहुँचने का कारण बने.
भोजपुरी भाषी और भोजपुरी प्रेमी होने के नाते मेरा उनसे आत्मीय संबंध रहा है. वे मुझे बड़ा भाई मानती थीं और मैं भी उन्हें अनेकों कार्यक्रमों में बुलाता रहता था. यह कम ही लोगों को पता होगा कि शारदा जी भोजपुरी भाषी न होकर उत्तर बिहार के मिथिलांचल से थीं. लेकिन, उन्होंने लोकगायकी के लिये भोजपुरी सीखी.
साठ के दशक में कुमकुम पर फिल्माए गये भोजपुर गीतों की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए शारदा जी ने गीत गाये थे.
‘हे गंगा मैया तोहे पियरी चढ़इबो,लागी नाही छूटे रामा..’, जैसे गीतों की फिर से याद शारदा जी के गीतों ने दिलाई थी.
शारदा सिन्हा के छठ गीतों की लोकप्रियता का एक कारण उनका गीतों में भावनाओं को सिलसिलेवार ढंग से पिरोना था. वो गीतों के हर शब्द को उस भावना के साथ गातीं, जो छठ पर्व के आस्था और भक्ति के साथ जुड़ी है. उनके गीतों में छठी मइया की कृपा पाने की आस, सूर्य देवता के प्रति आस्था, और परिवार की खुशहाली के लिए प्रार्थना स्पष्ट रूप से झलकती है.
शारदा सिन्हा के छठ गीतों का एक और महत्वपूर्ण पहलू उनकी भाषा और शैली है. उनकी आवाज में भोजपुरी भाषा की सरलता, लयबद्धता और भावपूर्णता का अद्भुत समन्वय था. उन्होंने छठ गीतों को अपनी आवाज से इतना प्रभावी बनाया कि ये गीत अब भोजपुरी संस्कृति का अभिन्न अंग बन चुके हैं.
शारदा सिन्हा जी के गीतों को नौजवान पीढ़ी भी उतनी ही शिद्दत से सुनती है, जितनी उनके समय में सुनती थी. उनके गीतों को अनेक कलाकारों ने अपने अंदाज में गाया है.
शारदा जी के छठ गीत केवल गीत नहीं हैं, वे भोजपुरी संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं. वे छठ पर्व के प्रति श्रद्धा और भक्ति को प्रोत्साहित करते हैं और हमारी सांस्कृतिक विरासत को संजो कर रखते हैं.
शारदा सिन्हा, भोजपुरी संगीत की एक ऐसी रानी हैं जिनके प्रशंसक सिर्फ़ भारत ही नहीं, बल्कि सारे संसार में हैं. उनकी लोकप्रियता के पीछे कई कारण रहे. उनकी गायन शैली बेहद अलग और ज़िंदादिल है. वो अपनी आवाज़ से हर किरदार को जीवंत कर देती हैं, चाहे वो प्यार की बात हो, दर्द की बात हो या फिर सामाजिक मुद्दों की.
उनका संगीत जनता से सीधा जुड़ता है. उनके गाने अक्सर जीवन के आम अनुभवों, प्रेम, पारिवारिक संबंधों और सामाजिक मुद्दों को दर्शाते हैं.
शारदा सिन्हा के गाने सिर्फ़ मनोरंजन ही नहीं, बल्कि सामाजिक संदेश भी देते हैं. वो महिलाओं की ताकत और स्वतंत्रता के लिए आवाज़ उठाती हैं, और सामाजिक बुराइयों के खिलाफ भी मुखर हैं.
शायद ही कोई भोजपुरी भाषी या प्रेमी हो, जिसकी जुबान पर शारदा सिन्हा के गाने ना जुबान पर ना चढ़े हुए हैं. उनकी आवाज़ और गाने भोजपुरी संगीत के इतिहास में हमेशा अमर रहेंगे. महत्वपूर्ण है कि उनकी लोकप्रियता सिर्फ़ एक गायिका के तौर पर ही नहीं, बल्कि एक शख्सियत के तौर पर भी है. उनके गाने लोगों को भावनात्मक तौर पर जोड़ते हैं, और उन्हें जीवन के मुश्किल समय में भी हिम्मत देते हैं. उन्होंने अपने गीतों से सिद्ध किया कि लोक की शक्ति ही कला को लोकप्रिय बनाती है. लोकप्रियता में गुणवत्ता भी होती है. उन्होंने भोजपुरी गीतों की लोकप्रियता और गुणवत्ता दोनों को बचाये रखा.
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)
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