प्रतीकात्मक तस्वीर
Go First Crisis : वाडिया ग्रुप की एयरलाइन गोफर्स्ट के इनसॉल्वेंसी केस पर नेशनल कंपनी लॉ ट्राइब्यूनल (NCLT) में सुनवाई शुरू हो गई है. कंपनी ने अपने वित्तीय दायित्वों के बोझ को उठाने में असमर्थता दिखाते हुए वोलंट्री इंसॉल्वेंसी रेजोल्यूशन की अर्जी डाली थी. कंपनी ने अपनी एयलरलाइन का ऑपरेसन भी बमद कर दिया है. 3-5 मई तक एयरलाइन कोई भी उड़ान नहीं भरेगी. 2019 तक कंपनी प्रॉफिट में थी. ऐसे में कंपनी के रिवाइवल प्लान पर काम हो रहा है.
कोर्ट में पेश हुआ रिवाइवल प्लान –
एयरलाइन को बचाने की कवायद तेज हो गई है. nclt में इसी बात पर विचार किया जा रहा है. दरअसल एयरलाइन के पास 6 मई तक कंपनी के साथ 1.9 मिलियन यात्रियों ने बुकिंग की है. साथ ही कंपनी के फंडामेंटल्स भी सही हैं, वहीं 8 फीसदी शेयर अभी भी कंपनी के पास है. ये बाते सुनवाई के दौरान वकील की तरफ से बताई गई . इसके साथ ही सुनवाई के दौरान वकील ने बताया कि अप्रैल में प्रोमोटर्स ने कंपनी में 290 करोड़ रुपए की पूंजी डाली है. Pratt & Whitney ने फॉल्टी इंजन सप्लाई किए थे. सबस् बड़ी बात ये है कि ये सिर्फ गो फर्स्ट नहीं बल्कि बाकी एयरलाइंस को भी सप्लाई दी गई. इससे दिक्कतें बढ़ी हैं.
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बैंकों का कर्ज –
गो फर्स्ट एयरलाइन पर 6521 करोड़ रुपए का कर्ज बकाया है. बैंक ऑफ बड़ौदा, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, IDBI बैंक, एक्सिस बैंक और डोएश बैंक ने गो फर्स्ट को कर्ज दिया है. सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ बड़ौदा और Deutsche Bank ने तत्काल अतिरिक्त वित्त प्रदान करने की पेशकश की है ताकि कर्ज को कम कर दिया है, लेकिन ये कर्ज पुनर्गठन के लिए ओपन है और इसके रिपेमेंट की लंबी अवधि शामिल है. अगर कंपनी दिवालिया घोषित हो जाती है तो ऐसे में बैंको के लिए लोन रिकवरी करना मुश्किल हो जाएगा.
आपको मालूम हो कि भले ही कंपनी मुश्किल हालातों से गुजर रही है, लेकिन प्रमोटर्स कंपनी को बेचना नहीं चाहते हैं. एयरलाइन का प्रमोटर वाडिया ग्रुप कारोबार से बाहर ने के लिए तैयार नहीं है. इसीलए कंपनी को बचाने की कोशिशें तेज की जा रही है.
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