(प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
India Inc या भारतीय कॉरपोरेट जगत साल 2025 में प्रवेश कर गया है. इस साल इसे वैश्विक टैरिफ युद्ध और घरेलू स्तर पर कमजोर होती मांग जैसी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा. हालांकि इसकी मजबूत बैलेंस शीट इन चुनौतियों से निपटने के लिए इसे मजबूत स्थिति में लाएगी.
ACE Equities के आंकड़ों के अनुसार, 30 सितंबर 2024 को BSE 500 कंपनियों (BFSI और तेल एवं गैस को छोड़कर) का नकद भंडार 7.68 लाख करोड़ रुपये था. आंकड़ों से पता चलता है कि कोविड (वित्त वर्ष 2020 के अंत) से ठीक पहले जब इसका नकद भंडार लगभग 5.06 लाख करोड़ रुपये था, तब से India Inc का नकद भंडार 51 प्रतिशत से अधिक बढ़ गया है.विश्लेषक इस वृद्धि का श्रेय तेजी से बढ़ते शेयर बाजार, योग्य संस्थागत प्लेसमेंट (QIP) और IPO के माध्यम से इक्विटी फंड जुटाने, प्रीमियमीकरण और डिजिटलीकरण जैसे रुझानों के कारण उच्च मार्जिन, उद्योग समेकन और परिचालन विवेक को देते हैं.
प्राथमिकता में महत्वपूर्ण बदलाव
विश्लेषकों के अनुसार, महामारी के बाद के वर्षों में भारतीय कॉरपोरेट्स की प्राथमिकता में महत्वपूर्ण बदलाव आया, जिसमें कंपनियों ने अपनी बैलेंस शीट को कम करने पर बहुत ज्यादा ध्यान दिया. विशेषज्ञों ने कहा कि महामारी के बाद मांग में उछाल से भी बैलेंस शीट को बेहतर बनाने की कोशिशों को बढ़ावा मिला.
Equirus के प्रबंध निदेशक और निवेश बैंकिंग के प्रमुख भावेश शाह ने कहा, ‘कोविड महामारी ने कॉरपोरेट्स के बीच अप्रत्याशित चुनौतियों के लिए उच्च तरलता बनाए रखने का एहसास जगाया. साथ ही महामारी के बाद बदला लेने वाली खरीददारी सहित उपभोक्ता व्यवहार ने कंपनी के प्रदर्शन को बढ़ावा दिया और नकदी भंडार में वृद्धि की.’
शाह ने बैलेंस शीट को मजबूत करने में मजबूत शेयर बाजार की भूमिका पर भी प्रकाश डाला. उन्होंने कहा, ‘IPO और QIP की तेजी ने कंपनियों को कर्ज से मुक्ति पाने में सक्षम बनाया. कर्ज चुकाना IPO फंड के उपयोग का एक प्रमुख उद्देश्य बन गया है, क्योंकि बाजार कर्ज मुक्त संचालन वाली कंपनियों को पुरस्कृत करता है.’
ये भी पढ़ें: म्यूचुअल फंड्स की इक्विटी खरीद में रिकॉर्ड बढ़ोतरी, पहली बार 4 लाख करोड़ रुपये के पार
कंपनियों की बैलेंस शीट
डिजिटलीकरण के कारण उत्पादकता में वृद्धि और विनियामक परिवर्तनों जैसे कई अन्य कारकों ने भी भारतीय कंपनियों को अपनी बैलेंस शीट को बेहतर ढंग से प्रबंधित करने में मदद की.
आनंद राठी वेल्थ लिमिटेड के डिप्टी सीईओ फिरोज अजीज ने कहा, ‘डिजिटलीकरण ने दक्षता को बढ़ाया है, सख्त लागत नियंत्रण ने उत्पादकता में सुधार किया है और दिवाला संहिता जैसे विनियामक परिवर्तनों ने परिचालन को सुव्यवस्थित किया है. इसके अतिरिक्त कंपनियों ने अनिश्चितताओं के खिलाफ बफर के रूप में तरलता को प्राथमिकता दी.’ उन्होंने कहा कि इक्विटी की लागत ऋण से अधिक है, लेकिन कंपनियों द्वारा वित्तीय रणनीतियों को अनुकूलित करने के लिए संतुलित मिश्रण बनाए रखने की संभावना है.
विशेषज्ञों ने कहा कि महामारी के बाद की अवधि में निर्यात-आधारित व्यवसायों के लिए मजबूत आय के साथ-साथ छोटे पूंजीगत व्यय चक्रों ने भी मदद की.
नकदी संचय में मिला योगदान
नुवामा प्रोफेशनल क्लाइंट्स ग्रुप के अध्यक्ष और प्रमुख संतोष पांडेय ने कहा, ‘कोविड के बाद आईटी और फार्मा जैसे निर्यात-संचालित क्षेत्रों ने सुपर-अर्निंग चक्रों का अनुभव किया. नवीकरणीय और 5G अपग्रेड जैसे क्षेत्रों में लघु-चक्र पूंजीगत व्यय ने भी बेहतर IRR को जन्म दिया, जिससे नकदी संचय में योगदान मिला. आज India Inc की बैलेंस शीट वर्षों में सबसे मजबूत है, जिसमें लीवरेज काफी कम हो गया है.’
पांडेय ने कहा, ‘मार्च 2024 तक BSE 500 कंपनियों का ऋण-से-EBITDA अनुपात कोविड से पहले 4.5x की तुलना में 2.5x-2.7x है. इसका मतलब है कि कंपनियां 2.5-3 साल की कमाई में अपना कर्ज चुका सकती हैं, जो एक स्वस्थ स्थिति है.
-भारत एक्सप्रेस
इस तरह की अन्य खबरें पढ़ने के लिए भारत एक्सप्रेस न्यूज़ ऐप डाउनलोड करें.