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भारत में लैब-ग्रोन डायमंड स्टार्टअप्स की तेजी से बढ़ती मांग, ब्रांड पहचान बनाने की होड़ तेज

भारत में लेब-ग्रोन डायमंड स्टार्टअप्स तेजी से विस्तार कर रहे हैं. टिकाऊ और किफायती डायमंड के बढ़ते क्रेज के बीच ये कंपनियां अपनी ब्रांड पहचान बनाने की होड़ में हैं.

Lab Grown Diamond
Prashant Rai Edited by Prashant Rai

भारत में लैब-ग्रोन डायमंड्स के प्रति उपभोक्ताओं की रुचि बढ़ रही है. लोग अब प्राकृतिक हीरों के बजाय किफायती और पर्यावरण के अनुकूल विकल्पों की ओर रुख कर रहे हैं. इसी को देखते हुए, कई स्टार्टअप्स इस बाजार में अपनी पहचान बनाने के लिए तेज़ी से विस्तार कर रहे हैं.

हालांकि कुछ स्थापित ज्वेलरी ब्रांड इस सेक्टर में पहले से मौजूद हैं, लेकिन अब तक कोई भी कंपनी भारतीय लैब-ग्रोन डायमंड बाजार में सबसे आगे नहीं आई है. इस स्थिति ने नए स्टार्टअप्स के लिए बड़ा अवसर पैदा किया है, जो अपने रिटेल नेटवर्क को बढ़ाकर बढ़ती मांग का लाभ उठाना चाहते हैं.

लैब-ग्रोन डायमंड स्टार्टअप ज्वेलबॉक्स की को-फाउंडर विदिता कोचर ने बताया कि यह बाजार अभी शुरुआती दौर में है और लोग इसे समझने की प्रक्रिया में हैं. ज्वेलबॉक्स को शार्क टैंक इंडिया के जजों, जैसे अमन गुप्ता (boAt), विनीता सिंह (Sugar Cosmetics), पीयूष बंसल (Lenskart) और रितेश अग्रवाल (Oyo) से निवेश मिल चुका है, जिससे यह स्टार्टअप काफी चर्चा में रहा.

कोचर का मानना है कि इस क्षेत्र में अभी तक कोई कंपनी राष्ट्रीय स्तर पर प्रमुख ब्रांड के रूप में नहीं उभरी है. लेकिन उन्हें इस बाजार की बड़ी संभावनाओं पर पूरा भरोसा है. उन्होंने कहा, “हमारी कंपनी केवल ढाई साल पुरानी है, लेकिन हम अपने रिटेल नेटवर्क को तेज़ी से बढ़ाने की योजना बना रहे हैं. भारत एक ऐसा बाजार है जहां कई ब्रांड एक साथ आगे बढ़ सकते हैं.”

कोलकाता स्थित ज्वेलबॉक्स फिलहाल दिल्ली, बेंगलुरु और चेन्नई सहित छह शहरों में आठ स्टोर चला रही है. कंपनी की योजना वित्तीय वर्ष के अंत तक 25 नए स्टोर खोलने की है, खासकर उन शहरों में जहां लोगों में जागरूकता अधिक है. हालांकि, कंपनी का ऑनलाइन कारोबार भी मजबूत है और कुल ऑर्डर का 40% ऑनलाइन माध्यम से आता है.

लैब-ग्रोन डायमंड्स उन उपभोक्ताओं के बीच लोकप्रिय हो रहे हैं, जो हमेशा से डायमंड ज्वेलरी खरीदना चाहते थे लेकिन प्राकृतिक हीरों की ऊंची कीमतों के कारण ऐसा नहीं कर पाते थे. कोचर का कहना है, “यह एक नया बाजार बन रहा है, जहां वे लोग भी हीरे खरीद रहे हैं, जिन्होंने पहले कभी हीरे नहीं पहने थे.”

लैब-ग्रोन डायमंड सेक्टर में नई कंपनियों की एंट्री

ज्वेलबॉक्स के अलावा, मुंबई की लिमलाइट और फियोना डायमंड्स, वॉन्डर डायमंड्स, टाइटन कैपिटल समर्थित ट्रूकेरेट डायमंड्स, औपुलेंट ज्वेलरी और अल्टेरिया कैपिटल समर्थित ऑकेरा ज्वेलरी जैसे स्टार्टअप्स भी इस क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं. Tracxn के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में फिलहाल 37 लैब-ग्रोन डायमंड स्टार्टअप्स हैं, जो दुनिया में सबसे अधिक हैं.

इसके अलावा, पारंपरिक आभूषण कंपनियां भी इस बाजार में निवेश कर रही हैं. हाल ही में गोल्ड ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म ऑगमोंट ने 100 करोड़ रुपये का निवेश कर अपनी लैब-ग्रोन डायमंड ब्रांड अकॉइरा लॉन्च की है.

कीमतों में गिरावट और बढ़ती प्रतिस्पर्धा

प्राकृतिक हीरों की कीमतें रैपोर्पोर्ट प्राइस लिस्ट से तय होती हैं, जबकि लैब-ग्रोन डायमंड्स की कीमत उत्पादन लागत और खुदरा विक्रेता के मूल्य निर्धारण पर निर्भर करती है. पहले ये हीरे प्राकृतिक हीरों की तुलना में कम कीमत पर बेचे जाते थे, जिससे आपूर्तिकर्ताओं को अधिक मुनाफा होता था. लेकिन कोचर के अनुसार, अब सप्लाई चेन में असामान्य मुनाफा कम हो गया है.

पिछले एक साल में, अधिक उत्पादन के कारण लैब-ग्रोन डायमंड्स की कीमतें 25-30% तक गिर चुकी हैं. चूंकि इनका उत्पादन सस्ता होता जा रहा है, इसलिए भविष्य में कीमतें और कम हो सकती हैं. हालांकि, इससे कंपनियों का मुनाफा कम होगा, लेकिन यह हीरे आम लोगों के लिए अधिक सुलभ बन जाएंगे.

चूंकि लैब-ग्रोन डायमंड्स को प्राकृतिक संसाधनों की सीमाओं का सामना नहीं करना पड़ता, इसलिए कंपनियों को टिके रहने के लिए बड़े पैमाने पर विस्तार करना होगा. एक निवेशक के अनुसार, “स्टार्टअप्स को अपनी बिक्री में 7-8 गुना वृद्धि करनी होगी ताकि उनका औसत ऑर्डर मूल्य संतुलित बना रहे. इस क्षेत्र में सफलता अंततः ब्रांडिंग पर निर्भर करेगी.”


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-भारत एक्सप्रेस



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