अखिलेश यादव और राहुल गांधी
Lok Sabha Election Results-2024: लोकसभा चुनाव-2024 का परिणाम सभी के सामने है. हालांकि NDA को बहुमत मिला है, लेकिन बीजेपी सीटों के लिए जो उम्मीद जता रही थी वह उसे हासिल नहीं हुआ और अपने बूते 272 का जादुई आंकड़ा पार करने में भी वह पीछे रह गई. तो वहीं सबसे चिंताजनक बात यूपी के लिए रही. क्योंकि यहीं पर भाजपा का पूरा प्रदर्शन गड़बड़ हो गया और राम मंदिर के भरोसे जो नारा भाजपा ने हिंदुत्व का दिया था उस पर कांग्रेस-सपा की सोशल इंजीनियरिंग भारी पड़ गई. भाजपा के लिए सबसे चौंकाने वाली बात तो ये रही कि वह अयोध्या की ही सीट हार गई.
दो लोकसभा चुनाव में भाजपा को मिली थी एकतरफा जीत
जहां बीजेपी को पिछले दो लोकसभा चुनावों में एक तरफ़ा जीत मिली थी तो वहीं इस बार महज 33 सीट पर ही जीत मिल सकी और 37 सीटें जीतकर सपा ने खुद को फिर से यूपी में स्थापित कर लिया है. 2019 में सपा को महज 5 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था तो वहीं कांग्रेस को एक ही सीट मिली थी लेकिन इस बार कांग्रेस ने 6 सीटों पर जीत दर्ज की है. इस रिजल्ट ने यूपी के राजनीतिक जानकारों की भी गणित बिगाड़ दी है.
कहीं 2027 का बिगड़ न जाए खेल?
तो वहीं अब राजनीतिक जानकार ये कयास लगा रहे हैं कि कहीं इंडिया गठबंधन की सोशल इंजीनियरिंग 2027 में आने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा का पूरा खेल ही न बिगाड़ दें. क्योंकि जिस तरह से भाजपा यूपी में केवल हिंदुत्व और राम मंदिर के मुद्दे को लेकर आगे बढ़ रही थी वहीं इंडिया गठबंधन ने महंगाई, पेपरलीक और बेरोजगारी के मुद्दे को लगातार हवा दी. अग्निवीर योजना को लेकर भी कांग्रेस और सपा ने भाजपा की जमकर बखिया उधेड़ी थी.
राजनीतिक पंडितों का मानना है कि इंडिया गठबंधन के ये वो मुद्दे थे जिससे युवा भाजपा से छिटक गए. यानी जो युवा 2019 तक भाजपा के साथ थे वो सपा-कांग्रेस में चला गया. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अग्निवीर योजना को लेकर जिस तरह अखिलेश यादव और राहुल गांधी हमलावर रहे, उसका असर युवाओं पर पड़ा.ऐसे में लगातार ये एक सवाल है कि क्या 2027 के विधानसभा चुनाव में भी इसका असर देखने को मिलेगा?
1993 में भी बिगड़ा था भाजपा का खेल
बता दें कि ये पहला मौका नहीं है जब हिंदुत्व के नाम लेने के बावजूद भाजपा का खेल बिगड़ा है. इससे पहले 1992 में बाबरी विध्वंस के बाद भाजपा को चार राज्यों में हार का मुंह देखना पड़ा था और सरकारें बर्खास्त कर दी गई थीं. इसके बाद 1993 में हुए विधानसभा चुनाव में भी राम मंदिर आंदोलन का मुद्दा मुलायम सिंह और कांशीराम के गठबंधन के सामने नहीं टिक पाया था. तो वहीं इस बार भी भाजपा जनता के रुख को नहीं भांप पाई.
जानकारों का मानना है कि जनवरी में जब राम मंदिर का उद्घाटन हुआ था तब यही लग रहा था कि इस बार भाजपा यूपी की सभी सीटें अपने नाम कर लेगी, लेकिन मंदिर उद्घाटन के तीन महीने बाद हुए चुनाव में पूरा नजारा ही बदला दिखा है. इस चुनाव में बड़ी संख्या में दलित और ओबीसी वोट, जिसमें बीजेपी के लाभार्थी वोटर में शामिल थे वो चुपचाप इंडिया गठबंधन की ओर खिसक गए. इसके अलावा समाजवादी पार्टी का PDA फार्मूला भी हिट रहा. उन्होंने बीजेपी के मुकाबले काफी समझदारी से टिकटों का बंटवारा किया. तो वहीं मुस्लिम मतदाताओं में भी इस बात का डर बैठ गया था कि अगर बीजेपी 400 पार गई तो UCC और जनसंख्या नियंत्रण जैसे कानून भी ला सकती है.
जनता को बीजेपी नहीं समझा सकी ये बात
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो भाजपा वहीं पर फेल हो गई जब उसने यूपी में सभी 80 सीटों और देश भर में 400 सीटें जीतने का नारा दिया. क्योंकि इसी नारे तो सपा और कांग्रेस ने जमकर भुनाया और जनता के बीच खासतौर पर दलित व ओबीसी मतदाताओं के बीच ये बात फैला दी अगर बीजेपी 400 पार हो गई तो संविधान बदल देगी और आरक्षण खत्म हो जाएगा. तो वहीं भाजपा इस बात को जनता को समझा ही नहीं सकी कि संविधान और आरक्षण का कोई खतरा नहीं है. दूसरी ओर बसपा का प्रमुख वोटर कांग्रेस और सपा की ओर चुपके से निकल गया. इसका फायदा कांग्रेस और सपा दोनों को मिला. ताकि बाबा साहेब का संविधान और आरक्षण बचा रहे. अब सवाल ये है कि 2024 का ये जनादेश 2027 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए कहीं खतरा न बन जाए?
-भारत एक्सप्रेस
इस तरह की अन्य खबरें पढ़ने के लिए भारत एक्सप्रेस न्यूज़ ऐप डाउनलोड करें.