By-election 2024: राजस्थान विधानसभा उपचुनाव 2024 (Rajasthan Assembly By-election 2024) के परिणाम आ चुके हैं. प्रदेश की सात विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने शानदार प्रदर्शन करते हुए पांच सीटों पर बड़े अंतर से जीत दर्ज की. वहीं कांग्रेस को एक मात्र दौसा सीट पर जीत मिली, वो भी केवल 2300 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की. जबकि एक सीट बाप पार्टी के पास ही रही. प्रदेश में उपचुनाव की स्थिति पांच विधायकों के लोकसभा चुनाव में सांसद बनने और दो विधायकों के निधन के कारण हुई. आइए राजस्थान उपचुनाव की कुछ प्रमुख बातों को जानें.
किन-किन सीटों पर हुए उपचुनाव
खींवसर विधानसभा सीट पर का उपचुनाव हनुमान बेनीवाल के सांसद बनने के कारण, चौरासी का चुनाव राजकुमार रोत के सांसद बनने के कारण, झुंझुनू का चुनाव कांग्रेस विधायक बृजेंद्र ओला के सांसद बनने के कारण देवली उनियारा का चुनाव कांग्रेस विधायक हरीश मीणा के सांसद बनने के कारण, दौसा का चुनाव कांग्रेस विधायक मुरारी मीणा के सांसद बनने के कारण हुआ. वहीं सलूंबर का चुनाव भाजपा विधायक अमृतलाल मीणा के निधन के कारण और रामगढ़ का चुनाव कांग्रेस विधायक जुबैर खान के निधन के कारण हुआ. इन सात विधासभाओं में से चार सीट कांग्रेस पार्टी के पास थी. वहीं एक-एक सीट भाजपा, बाप और आरएलपी के पास थी. उपचुनाव परिणामों में सात में से पांच सीटे भाजपा ने बड़े अंतर से जीती. वहीं दौसा की एक मात्र सीट 2300 वोटों से कांग्रेस ने जीती. चौरासी की सीट यथावत बाप पार्टी के पास ही रही.
भजनलाल शर्मा के इर्द गिर्द घूमता रहा उपचुनाव
राजस्थान विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस की ओर से जहां पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, सचिन पायलट, गोविंद डोटासरा, टीकाराम जूली, भंवर जितेन्द्र सिंह जैसे दिग्गज नेता सक्रीय रहे. वहीं भाजपा का चुनाव मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के इर्द गिर्द घूमता रहा. मुख्यमंत्री ने इन चुनावों में 14 सभाएं की और 44 सामाजिक संगठनों के साथ बैठकें की. सातों सीटों पर अपने प्रमुख मंत्रियों को लगाया, जिसका परिणाम था कि भाजपा की सीटें एक से बढ़कर पांच हो गई और कांग्रेस चार से एक पर आ गई. यहां तक की चार सीटों पर तो कांग्रेस तीसरे नम्बर पर चली गई और तीन सीटों पर कांग्रेस की जमानत जब्त हो गई. ये चुनाव भले ही सात सीटों पर था लेकिन राजस्थान के अलग-अलग क्षेत्रों में था, जिसके परिणाम ने बता दिया की राजस्थान की जनता पूरे तरीके से नरेंद्र मोदी और भजन लाल शर्मा के साथ है.
पहली बार हुई इतनी सीटों पर उप-चुनाव
राजस्थान में एक साथ सात सीटों का उप-चुनाव संभवतया पहली बार हुआ और पहली बार भाजपा ने इतना शानदार प्रदर्शन किया. इस चुनाव से राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की लोकप्रियता सर्वसमाज में साबित हो गई, क्योकि झुंझुनू और खींवसर जहां जाट बहुल क्षेत्र है, वहीं दौसा और देवली-उनियारा मीणा गुर्जर बहुल क्षेत्र है. वहीं सलूंबर और चौरासी पूर्णतया आदिवासी बहुल क्षेत्र है. तो रामगढ़ में एक तरफ जहां मेव है. वहीं दूसरी तरफ हिंदू समाज के लगभग सारी जातियां है.
2018 से 2023 के बीच हुए उप-चुनाव में भाजपा केवल राजसमंद सीट 5000 वोट से जीत पाई थी वहीं बाकी की सारी सीटें कांग्रेस ने जीती थी. वहीं 2013 से 2018 के बीच भाजपा शासन के समय 6 विधानसभा और दो लोकसभा के उपचुनाव हुए जिनमें भाजपा विधानसभा की केवल 2 सीट जीत पाई थी. 4 सीटें विधानसभा की और दो लोक सभा की सीटें कांग्रेस ने जीती थी. इन चुनावों में भाजपा की बड़ी विजय का कारण 11 महीनें की भजनलाल शर्मा की सरकार के काम रहें. इन चुनावों में भजन लाल शर्मा सरकार के कामों खास तौर पर पेपर लीक के खिलाफ कार्रवाई, साईबर ठगों के खिलाफ कार्यवाही, ईआरसीपी परियोजना का एमओयू, यमुना जल समझौता, पेट्रोल-डीजल की कीमतें कम करना, एक लाख से ज्यादा भर्तियों की घोषणा करना, दो लाख 24000 करोड़ के बिजली कंपनियों के साथ एमओयू करना. राइजिंग राजस्थान से पहले ही 20 लाख करोड रुपए से अधिक के एमआईयू करना प्रमुख है.
मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा का मिलनसार व्यक्तित्व आम जन से जुड़ाव चुनाव में उनका माइक्रो मैंनजमेंट लगातार निगरानी और संगठन और संघ के साथ बेहतर तालमेल, कार्यकर्ताओं से सीधा संवाद भाजपा को विजय श्री की ओर ले गया. भाजपा प्रदेशाध्यक्ष मदन राठौड को साथ लेकर उन्होंने हर क्षेत्र का दौरा किया और जनता में मैसेज दिया की भाजपा में सत्ता और संगठन एक होकर कार्य कर रहे है. चुनाव में शानदार विजय श्री के बाद मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने जीत का श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के कार्यकर्ताओं को दिया.
सकारात्मक प्रचार से जीत मिली
देवली-उनियारा में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के सकारात्मक प्रचार और चुनावी मैनेजमेंट से जीत मिली. देवली-उनियारा वो सीट है, जहां बीजेपी लगातार दो बार से चुनाव हार रही थी. पिछला 2023 का विधानसभा चुनाव भाजपा प्रत्याशी दिग्गज गुर्जर नेता कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला के पुत्र विजय बैंसला 19175 वोटों के भारी अंतर से हार गए थे. मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने इस सीट को चुनौती के रूप में लिया था. साधारण चेहरे पूर्व एमएलए राजेन्द्र गुर्जर को यहां से प्रत्याशी बनाया. मुख्यमंत्री ने विजय बैंसला को समझाकर चुनाव प्रचार में लगाया. मीणा गुर्जर बहुल क्षेत्र में मुख्यमंत्री ने दो बड़ी सभाएं की. कैबिनेट मंत्री कन्हैया लाल चौधरी और हीरालाल नागर को यहां लगातार कैंप करवाए. ईआरपीसी की घोषणा का भी इस क्षेत्र में बड़ा लाभ मिला. सकारात्मक तरीके से मुख्यमंत्री ने अपनी सरकार की उपलब्धियां को जनता के बीच रखा. परिणाम स्वरुप भाजपा रिकॉर्ड 41121 वोटो से जीती. यहां भाजपा को 1 लाख से भी अधिक वोट मिले.
तीसरे नंबर पर रही कांग्रेस
मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की शानदार रणनीति ने झुंझुनू में ओला परिवार का किला ढहाया. कद्दावर कांग्रेस नेता पूर्व केन्द्रीय मंत्री शीशराम ओला झुंझुनू से आठ बार विधायक 2 बार जिला प्रमुख और लगातार 5 बार सांसद चुने गये थे. 2008 में परिसीमन के बाद लगातार चार बार उनके पुत्र बृजेन्द्र ओला यहां से विधायक चुने गये और पिछली गहलोत सरकार में मंत्री भी रहे. इस बीच उनकी पत्नी राजबाला ओला झुंझुनू की जिला प्रमुख बनी. 2013 में जब राजस्थान में भाजपा की आंधी चली थी और 163 सीटे जीती तब भी भाजपा जाट बहुल झुंझुनू से चुनाव नहीं जीत पाई थी. 2024 के उप-चुनाव में कांग्रेस ने जहां दिग्गज नेता ओला के पोते और बृजेन्द्र ओला के बेटे अमित ओलाको यहाँ से प्रत्याशी बनाया तो भाजपा ने यहां से एक साधारण कार्यकर्ता राजेन्द्र भांभू को उम्मीदवार बनाया.
मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने अपने दो मंत्रियों अविनाश गहलोत और सुमित गोदारा को नामांकन के साथ ही इस विधानसभा में बैठा दिया. यहां से 2023 के प्रत्याशी निषित चौधरी ने बगावत कर दी. मुख्यमंत्री ने तुरंत अपने मंत्रियों को भेज कर उसे जयपुर बुलाया, उसे मनाया और राजेन्द्र भांभू के साथ लगा दिया. मुख्यमंत्री ने पूरी पार्टी को एकजुट किया तथा शानदार रणनीति बनाई. कांग्रेस और ओला परिवार के किले को 43 हजार के बड़े अंतर से ढहा दिया.
खींवसर सीट जीतकर तोड़ा हनुमान बेनीवाल का अहंकार
2008 में बनी खींवसर विधानसभा से हनुमान बेनीवाल लगातार विधायक चुने गये थे. 2024 के आम चुनावों में उनके सांसद चुने जाने से यह उप-चुनाव हुआ था, जहां से उनकी पत्नी कनिका बेनीवाल आरएलपी की प्रत्याशी थी. 2019 में भी हनुमान बेनीवाल एनडीए के प्रत्याशी के रूप में सांसद चुने गये थे. तब हुए विधानसभा के उप-चुनाव में बेनीवाल ने इस सीट से अपने भाई नारायण बेनीवाल को विधायक बना दिया था. जाट बहुल ये सीट जीतना भाजपा के लिए चुनौती थी. मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने इस सीट को चुनौती के रूप में लिया, क्योंकि बेनीवाल का अहंकार इतना बढ़ गया था कि वो सार्वजनिक मंचों से कांग्रेस, भाजपा के दिग्गजनेताओं का अपमान करते थे. खुद मुख्यमंत्री के लिए भी उन्होंने चुनाव प्रचार में स्तरहीन बयान दिए थे.
भाजपा ने यहां से रेवत राम डांगा जैसे साधारण पृष्ठभूमि वाले नेता को प्रत्याशी बनाया. मुख्यमंत्री ने अपने मंत्रियों सुरेश रावत तथा झाबर खर्रा को सीट पर लगाया. सुरेश रावत पल-पल की खबर मुख्यमंत्री को दे रहे थे. मुख्यमंत्री ने यहां दो सभाएं की, सभी जातियों को एक जगह लेकर आए. इस सीट पर प्रमुख राजपूत नेता दूर्ग सिंह हर बार चुनाव लड़कर राजपूत वोटों में सेंधमारी करते थे. जिसका सीधा नुकसान भाजपा को होता था. मुख्यमंत्री दुर्गसिंह को अपने पाले में ले आये उन्हें भाजपा ज्वाइन करवाई. दूर्गसिंह अपने कार्यकर्ताओं के साथ मुख्यमंत्री से जयपुर में मिले और सीएम ने उन्हें खींवसर जीतने के काम पर लगाया. परिणाम ये रहा कि जो सेट जितना बीजेपी के लिए सपना था. उसे 13901 जीत लिया. कांग्रेस की तो इस सीट पर जमानत जब्त हुई.
कांग्रेस को उसके ही गढ़ में दी शिकस्त
मेव मुस्लिम बहुल इस इलाके से कांग्रेस के राष्ट्रीय नेता जुबैर खान विधायक थे. 2018 में इस सीट से उनकी पत्नी विधायक थी. जुबेर गांधी परिवार के काफी करीबी थे, 2023 के विधानसभा चुनावों में भाजपा प्रत्याशी जय आहुजा इस सीट पर तीसरे नम्बर पर थे. जुबैर और जय आहुजा के बीच 70 हजार वोटों का बड़ा अंतर था. जुबैर के निधन से खाली हुई सीट पर सहानुभूति लेने के लिए कांग्रेस ने जुबैर के पुत्र आर्यन खान को प्रत्याशी बनाया. भाजपा ने यहां से सुखवंत सिंह को टिकट दिया. मुख्यमंत्री ने इस सीट पर अपने मंत्रियों गौतम दक और जवाहर सिंह बेढम को लगाया. यह चुनाव पूरी तरह ध्रुवीकरण का चुनाव था.
मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने यहां दो सभाएं की और दोनों सभाओं में उन्होंने गौतस्करी, कांग्रेस राज में हिंदुओ पर हुए अत्याचार, लव जिहाद की घटनाएं, कांग्रेस राज में हिंदुओं की लिंचिंग की घटनाओं को प्रमुखता से उठाकर हिन्दू वोटों को एक कर दिया. यह क्षेत्र नेता प्रतिपक्ष टीका राम जूली और कांग्रेस के दिग्गज नेता भंवर जितेंद्र सिंह का है. टीका राम जूली और सांसद संजना जाटव ने दलितो के घर-घर जाकर कांग्रेस के लिए वोट मांगे लेकिन मुख्यमंत्री शर्मा के हिदुत्व के कार्ड ने उनकी रणनीति को फेल कर दिया और जिस रामगढ़ से भाजपा लगातार चुनाव हार रही थी, वहां से इस बार भाजपा प्रत्याशी सुखवंत सिंह 13 हजार 606 वोटों से जीत गये.
सलूंबर विधानसभा उप-चुनाव
आदिवासी बहुल सलूम्बर सीट भाजपा विधायक अमृतलाल मीणा के असामयिक निधन के कारण खाली हुई थी. इस सीट को बीजेपी लगातार तीन बार से जीत रही थी. इस सीट पर मुख्यमंत्री ने दो सभाएं की. यहां चुनाव प्रचार में सरकार के 11 माह के काम को सामने रखा. पूरा चुनाव मुख्यमंत्री के माइक्रो मैनेजमेंट पर लड़ा गया और लगातार चौथी बार सलूम्बर सीट पर भाजपा का परचम फहराया. दूसरे स्थान पर बाप रही और कांग्रेस की यहां जमानत जब्त हुई.
चौरासी विधानसभा उप-चुनाव
डूंगरपुर जिले की चौरासी विधानसभा सीट का चुनाव भारतीय आदिवासी पार्टी (बाप) के विधायक राजकुमार रोत के सांसद बनने के कारण हुआ था. यह सीट एस.टी. रिजर्व है और आदिवासी बहुल है. 2023 के चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी सुशील कटारा यहां से लगभग 70 हजार से अधिक वोटों से चुनाव हार गए थे. बावजूद इसके मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने इस सीट को जीतने के लिए पूरी ताकत लगाई. यहां मुख्यमंत्री ने दो सभाएं की चुनाव प्रचार के अंतिम दिन की सभा में उमड़ी भीड़ ने सबकों चौंका दिया. परिणाम यह रहा कि 11 माह पहले जिस सीट पर भाजपा 70 हजार वोटों हारी थी वहां पर अंतर घटकर मात्र 23 हजार का हो गया. कांग्रेस यहां जमानत तक नहीं बचा पाई.
दौसा विधानसभा में करीबी मुकाबले में हारी बीजेपी
पिछले दो चुनावों में दौसा से कांग्रेस चुनाव जीतती आई. यहां के एमएलए मुरारी लाल मीणा कांग्रेस सरकार में मंत्री थे और सचिन पायलट के बेहद करीबी है. 2023 का विधानसभा चुनाव जहां भाजपा 31204 वोटों के भारी अंतर से हारी थी वही इस उपचुनाव में बिल्कुल करीबी मुकाबले में मात्र 2300 वोटों से चुनाव हारी. इस क्षेत्र में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने एक सभा के साथ ही चुनाव प्रचार के अंतिम दिन बड़ा रोड शो कर महोल बनाया. मुख्यमंत्री ने इस सीट पर समाजों के प्रतिनिधिमण्डलों से लगातार मुलाकातें की. यहां मंत्री डॉ. किरोडी लाल मीणा के भाई जगमोहन मीणा भाजपा प्रत्याशी थे. डॉ. किरोड़ी लाल मीणा लगातार इस सीट पर डटे हुए थे. मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने दौसा के उपचुनाव में सरकार की सकारात्मक उपलब्धियों को सामने रखा और इस वजह से पिछली दो बार से जिस सीट पर कांग्रेस को 50 प्रतिशत से अधिक वोट मिलते थे इस बार मुकाबला कांटे का हो गया.
-भारत एक्सप्रेस
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