मनोरंजन

Mission Majnu: सिद्धार्थ मल्होत्रा की फिल्म मिशन मजनू नेटफ्लिक्स पर हुई रिलीज, रॉ एजेंट के किरदार में आए नजर

Mission Majnu:  जनवरी के महीने में अमूमन बॉलीवुड इंडस्ट्री की ओर से दर्शकों के लिए पेट्रियोटिज्म बेस्ड फिल्मों की सौगात होती है. इस महीने में शाहरुख खान की पठान, राजकुमार संतोषी की गांधी-गोडसे एक युद्ध जैसी फिल्में थिएटर पर रिलीज को तैयार हैं. वहीं सिद्धार्थ मल्होत्रा की इसी जॉनर में बनी फिल्म मिशन मजनू भी ओटीटी पर रिलीज हो रही है. सिद्धार्थ की यह फिल्म आपके अंदर के देशभक्त को कितना झकझोर पाती है. आईए जानते हैं.

कहानी

पाकिस्तान के रावलपिंडी में भारतीय जासूस अमनदीप अजितपाल सिंह(सिद्धार्थ मल्होत्रा) वहां तारिक अली नाम से दर्जी बनकर अपने मिशन में है. पंजाब के अमनदीप के पिता पर देशद्रोही का दाग लगा है, जिसकी सजा वो और उसका परिवार भुगत रहा है. ऐसे में अमनदीप अपने परिवार से दाग हटाने के मकसद से अपनी भारत के लिए कुछ भी करने को तैयार है. अमनदीप को यह मौका रॉ के सीनियर काव(परमित शेट्ठी) देते हैं. अमनदीप को मिशन मजनू के तहत पाकिस्तान में रहकर वहां की न्यूक्लियर स्ट्रैटेजी का पता लगाकर उससे जुड़ी इंफोर्मेशन भारत को देना है. हालांकि इसी बीच अमनदीप नसरीन(रश्मिका मंदाना) के प्यार में पड़कर उससे निकाह कर लेता है. पाकिस्तान में दोहरी जिंदगी जी रहे अमनदीप अपने मिशन को लेकर भी दृढ़ है और इसमें उसकी मुलाकात दो और इंडियन रॉ एजेंट से होती है. क्या अमनदीप अपने मिशन मजनू में कामयाब हो पाता है? न्यूक्लियर टेस्ट को रोकने में उनका क्या रोल है? इन सब सवालों को जानने के लिए फिल्म देखें.

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डायरेक्शन

अपने डायरेक्शन के जरिए शांतनु बागची एक ऐसे अनसंग हीरो की कहानी को पेश रहे हैं, जिन्हें कभी उनका ड्यू नहीं मिला है. सच्ची घटनाओं के आधार पर बुनी गई इस कहानी पर रोमांच की कमी खलती है. दरअसल इंडियन ऐजेंट्स पर आज से पहले भी कई कहानियां बनती रही हैं, जिन्हें दर्शकों द्वारा काफी सराहा भी गया है.बागची की मिशन मजनू भी इसी प्रयास का हिस्सा है, थ्रिलर की कमी देखकर निराशा होती है. जासूसों पर आधारित फिल्म में थ्रिल्स हमेशा अहम कड़ी रही है, जबतक फिल्म देखते हुए आपके अंदर उत्सुकता न जगे, तो फिल्म से आपका कनेक्शन टूटता जाता है. ओवरऑल फिल्म की कहानी पुरानी सी लगती है. फिल्म का मजबूत पक्ष एक्टर्स की दमदार परफॉर्मेंस और इसका एक्शन है. भारत-पाकिस्तान के बीच की नोंक-झोंक को जबरदस्ती भुनाने की कोशिश भी साफ नजर आती है. फिल्म देखते वक्त आप इमोशनली कनेक्ट नहीं हो पाते हैं लेकिन हां, आखिर के आधे घंटे फिल्म आपको बांधे रखती है.

-भारत एक्सप्रेस

Sonali Thakur

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