
दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि मार्फ़िंग तमांग की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि रिमांड अर्जी पर सुनवाई से लगभग एक घंटे पहले गिरफ्तार व्यक्ति को लिखित में गिरफ्तारी का आधार बताना सीआरपीसी की धारा 50 की मूल भावनाओं के तहत उचित या पर्याप्त अनुपालन नही है.
जस्टिस जयराम भंभानी ने कहा कि उस व्यक्ति को आधार बताने के बाद उसे पर्याप्त समय दिया जाना चाहिए, जिससे वह वकील से परामर्श कर सके. उसे उतना समय जरूर मिलना चाहिए, जिससे वह पुलिस या न्यायिक हिरासत में भेजे जाने का सही रूप से विरोध कर सके. अदालत ने यह टिप्पणी तमांग की ओर से दायर अर्जी पर सुनवाई के दौरान की है.
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हाई कोर्ट ने मजिस्ट्रेट के हिरासत में भेजे जाने के आदेश को खारिज कर दिया है. साथ ही कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 50 एवं संविधान के अनुच्छेद 22 (1)का पालन न करने के आधार पर उसकी गिरफ्तारी को भी खारिज कर दिया. उसने कहा कि तमांग को प्राथमिकी से जुड़े कार्यवाही में भाग लेना जारी रखे. उसे न्यायिक हिरासत से रिहा करने का निर्देश भी दिया है.
तमांग को पुलिस ने पिछले साल आईपीसी व अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया था. तमांग पर आरोप है कि वे उस प्रतिष्ठान का प्रबंधक था, जो पीड़ितों के यौन शोषण में लिप्त था. पुलिस के अनुसार तमांग ऐसी गतिविधियों से होने वाले लाभ से जीवन यापन कर रहा था. तमांग ने अपने को पुलिस हिरासत में भेजे जाने को चुनौती दी थी. बाद में उसे 14 दिनों के लिए न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था.
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