नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने जेलों और सुधार गृहों में जाति आधारित भेदभाव पर पूरी तरह रोक लगाने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं. ‘जेल मैनुअल, 2016’ और ‘मॉडल प्रिज़न एंड करेक्शनल सर्विसेज एक्ट, 2023’ के तहत दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं, जिनका उद्देश्य सुधार गृहों में समानता और मानवाधिकार सुनिश्चित करना है.
जाति आधारित भेदभाव पर सख्त निर्देश:
– यह सुनिश्चित किया जाएगा कि कैदियों को उनकी जाति के आधार पर वर्गीकृत या अलग-थलग न किया जाए.
– कैदियों को उनकी जाति के आधार पर किसी भी प्रकार की ड्यूटी या कार्य का आवंटन नहीं किया जाएगा.
– जेलों और सुधार गृहों में ‘मैनुअल स्कैवेंजिंग’ या खतरनाक कार्य, जैसे सीवर या सेप्टिक टैंक की सफाई, पूरी तरह प्रतिबंधित होगी.
आदतन अपराधियों की परिभाषा में बदलाव:
सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन करते हुए ‘आदतन अपराधियों’ (Habitual Offenders) की परिभाषा को भी संशोधित किया है. अब आदतन अपराधी उस व्यक्ति को माना जाएगा, जिसने लगातार पांच वर्षों में विभिन्न अपराधों के लिए दो या उससे अधिक बार सजा पाई हो. हालांकि, इस परिभाषा में जेल में बिताए गए समय को शामिल नहीं किया जाएगा.
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आईसुप्रीम कोर्ट के निर्देश:
सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि यदि किसी राज्य में आदतन अपराधियों पर कानून नहीं है, तो राज्य सरकारें तीन महीने के भीतर अपने जेल मैनुअल में आवश्यक बदलाव करें. कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को अपने क्षेत्राधिकार में आदतन अपराधियों से संबंधित कानून लागू करने होंगे.
मानवाधिकारों की सुरक्षा पर बल:
इन सुधारों का उद्देश्य कैदियों के बीच समानता सुनिश्चित करना और उनके मौलिक अधिकारों की रक्षा करना है. सरकार का मानना है कि जेलें केवल सज़ा देने का स्थान नहीं हैं, बल्कि सुधार का माध्यम भी हैं. सरकार के इन कदमों से सुधार गृहों में बेहतर माहौल बनेगा और यह मानवाधिकारों की रक्षा में एक महत्वपूर्ण प्रयास साबित होगा.
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