प्रतीकात्मक तस्वीर
Fake Encounter: उत्तर प्रदेश के बरेली जिले की एक अदालत ने 31 साल पहले पुलिस मुठभेड़ में एक युवक को आत्मरक्षार्थ मार गिराने का दावा करने वाले तत्कालीन दारोगा को शुक्रवार को हत्या का दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई. अदालत ने दोषी पूर्व दारोगा पर 30 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया. शासकीय अधिवक्ता आशुतोष दुबे ने बताया कि अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश पशुपतिनाथ मिश्र की अदालत ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद पूर्व दारोगा युधिष्ठिर सिंह को हत्या का दोषी करार देते हुए उम्रकैद सजा सुनाई. कोर्ट ने साथ ही दोषी पर 30 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया. जुर्माने की राशि मृतक के परिजनों को दी जाएगी.
वकील के मुताबिक, 23 जुलाई 1992 की शाम बरेली के बड़ा बाजार में साहूकारा निवासी स्नातक द्वितीय वर्ष के छात्र मुकेश जौहरी उर्फ लाली (21) को तत्कालीन दारोगा युधिष्ठिर सिंह ने गोली मार दी थी. दारोगा ने कोतवाली में जौहरी के खिलाफ पिंक सिटी वाइन शॉप लूटने का आरोप लगाते हुए मामला दर्ज कराया था. इस मामले में लाली की मां चंद्रा जौहरी ने दारोगा की कहानी को झूठा बताते हुए पुलिस अधिकारियों से हत्या का मुकदमा दर्ज कराने की मांग की थी, लेकिन मुकदमा दर्ज नहीं किया गया.
महिला ने अपने बेटे की मौत को लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में अपील दायर की, जिसके बाद यह मामला सीबीसीआईडी को सौंपा गया. दुबे के मुताबिक, सीबीसीआईडी जांच में पता चला कि घटना के वक्त उक्त दारोगा ड्यूटी पर नहीं था और उसने सरकारी रिवाल्वर का दुरुपयोग किया था. उन्होंने बताया कि दारोगा ने लाली पर सामने से गोली चलाने की बात कही थी, जबकि पोस्टमार्टम में गोली पीठ में लगने की बात सामने आई थी.
1997 में दर्ज हुआ था हत्या का मामला
वकील दुबे के अनुसार, सीबीसीआईडी के निरीक्षक शीशपाल सिंह के शिकायती पत्र पर 20 नवंबर 1997 को दारोगा युधिष्ठिर सिंह के खिलाफ हत्या के आरोप में प्राथमिकी दर्ज की गई थी. सीबीसीआईडी ने आरोप पत्र के साथ 19 गवाहों की सूची अदालत में पेश की. आशुतोष दुबे और वादी पक्ष के अधिवक्ता अरविंद श्रीवास्तव ने मुकदमे में बहस की. अपर सत्र न्यायाधीश पशुपति नाथ मिश्रा ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद आरोपी दारोगा को हत्या का दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई और उस पर 30 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया.
-भारत एक्सप्रेस