
बिहार की राजनीति एक बार फिर गरमाई हुई है. जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, राजनीतिक गतिविधियों में तेजी आती जा रही है. एक तरफ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जदयू-बीजेपी सरकार है, तो दूसरी ओर विपक्षी महागठबंधन है, जो इस बार पूरी तैयारी और आक्रामक रणनीति के साथ मैदान में उतरने को आतुर दिख रहा है.
SIR प्रक्रिया बनी विवाद का केंद्र
इस सियासी संघर्ष का ताज़ा केंद्र बना है चुनाव आयोग द्वारा शुरू की गई मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR)। महागठबंधन के नेताओं का आरोप है कि यह प्रक्रिया निष्पक्ष नहीं है और इसका इस्तेमाल सत्ता पक्ष के हित में मतदाता सूची में हेरफेर करने के लिए किया जा सकता है.
महागठबंधन के प्रमुख घटक – राष्ट्रीय जनता दल , कांग्रेस, वाम दल और INDIA गठबंधन की अन्य पार्टियां – इस मुद्दे पर एकजुट हैं. उन्होंने चुनाव आयोग के खिलाफ आवाज बुलंद की है और इस प्रक्रिया को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की तैयारी कर ली है. इसके साथ ही, सड़कों पर उतरने की भी रणनीति तैयार है – नुक्कड़ सभाएं, संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस और राज्यव्यापी रैलियों की योजना बन चुकी है.
संयुक्त घोषणापत्र: महागठबंधन का ‘जन वादा’
चुनाव से पहले जनता का ध्यान खींचने के लिए महागठबंधन एक संयुक्त घोषणापत्र (कॉमन मिनीफेस्टो) तैयार कर रहा है. यह घोषणापत्र 15 जुलाई तक तैयार कर तेजस्वी यादव की अध्यक्षता वाली समिति को सौंपा जाएगा, जो इसे अंतिम रूप देगी.
घोषणापत्र में जो प्रमुख वादे शामिल हैं, वे हैं:
“माई बहन योजना”: महिलाओं को ₹2500 मासिक आर्थिक सहायता.
छात्रावास योजना: 101 सब डिविजन में पिछड़े, अति पिछड़े, दलित छात्रों (लड़के व लड़कियां) के लिए छात्रावास.
डिग्री कॉलेज: जिन क्षेत्रों में कॉलेज नहीं हैं, वहां नए डिग्री कॉलेज स्थापित किए जाएंगे.
बेरोजगारी भत्ता: युवाओं को आर्थिक सहायता, राशि पर विचार जारी.
विधवा पेंशन में वृद्धि: मौजूदा राशि में बढ़ोतरी का प्रस्ताव.
इन वादों के ज़रिए गठबंधन युवाओं, महिलाओं, पिछड़े वर्गों और गरीब तबकों को अपने पाले में लाने की कोशिश कर रहा है.
संयुक्त रैली और प्रचार की रणनीति
महागठबंधन ने इस बार प्रचार अभियान में भी समन्वय की रणनीति अपनाई है. एकजुटता का प्रदर्शन करते हुए बड़े नेताओं की संयुक्त रैलियां और मीडिया कैंपेन की रूपरेखा तय की जा रही है. इसका उद्देश्य मतदाताओं में यह संदेश देना है कि महागठबंधन अब केवल एक “चुनावी समझौता” नहीं, बल्कि एक राजनीतिक विकल्प है.
क्या एकजुटता टिकेगी?
हालांकि, इस एकजुटता की असली परीक्षा सीटों के बंटवारे के समय होगी. फिलहाल सभी दलों ने साथ चलने का दावा किया है, लेकिन बिहार की राजनीति में सीट शेयरिंग ही वह बिंदु होता है जहां गठबंधन अक्सर दरकते हैं. छोटे दलों की अपेक्षाएं, क्षेत्रीय समीकरण और जातिगत संतुलन – इन सबके बीच संतुलन बनाना तेजस्वी यादव और उनके सहयोगियों के लिए आसान नहीं होगा.
चुनाव आयोग का कदम, महागठबंधन को ऊर्जा
चुनाव आयोग की SIR प्रक्रिया ने भले ही विवाद को जन्म दिया हो, लेकिन यह भी सच है कि इसी मुद्दे ने महागठबंधन को एकजुट होने और जनता के बीच सक्रिय रूप से जाने का नया मौका दे दिया है. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह जोश और समन्वय चुनाव तक टिक पाएगा, और क्या यह बीजेपी-जदयू के संगठित चुनावी तंत्र को टक्कर दे सकेगा.
बिहार चुनाव की राजनीतिक पटकथा अभी पूरी नहीं लिखी गई है, लेकिन शुरुआती दृश्य साफ हैं — यह मुकाबला सिर्फ दो गठबंधनों का नहीं, दो विचारों और दो राजनीतिक धाराओं का होगा.
-भारत एक्सप्रेस
इस तरह की अन्य खबरें पढ़ने के लिए भारत एक्सप्रेस न्यूज़ ऐप डाउनलोड करें.