Same Sex Marriage Verdict: LGBTQ समुदाय को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है. शीर्ष अदालत ने समलैंगिक विवाह को मान्यता देने से इनकार कर दिया है. बेंच में 5 जज शामिल थे. सभी ने माना कि समलैंगिक जोड़ों को विवाह करने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है. हालांकि फैसले से पहले न्यायाधिश डीवाई चंद्रचूड़ ने बड़ी टिप्पणी की. उन्होंने कहा कि अपना साथी चुनने का अधिकार सबको है. इसके साथ ही अनुच्छेद 21 के तहत सम्मान के साथ जीवन एक मौलिक अधिकार है. सरकार को खुद नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए. सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, “किसी व्यक्ति को उसके जेंडर के आधार पर शादी करने से नहीं रोक सकते हैं. ट्रांसजेंडरों को भी मौजूदा कानून के मुताबिक, विवाह करने का अधिकार है. समलैंगिक कपल के साथ-साथ सिंगल व्यक्ति भी एक बच्चे को गोद ले सकते हैं.” हालांकि, जस्टिस एस रवींद्र भट, हिमा कोहली और पीएस नरसिम्हा ने इस पर असहमति जताई और CARA नियमों को बरकरार रखा, जिसमें समलैंगिक और अविवाहित जोड़ों को शामिल नहीं किया गया है.
विवाह को कानूनी दर्जा जरूर है, लेकिन यह कोई मौलिक अधिकार नहीं है. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि यह कहना गलत है कि शादी एक अपरिवर्तनशील संस्थान है. अगर स्पेशल मैरिज एक्ट को खत्म कर दिया जाता है तो यह देश को आजादी से पहले वाले समय में ले जाएगा. हालांकि, स्पेशल मैरिज एक्ट को बदलना या न बदलना सरकार के हाथ में है. कोर्ट को विधायी मामलों में हस्तक्षेप से सावधान रहना चाहिए.
जस्टिस कौल भी गैर-विषमलैंगिक जोड़ों के लिए नागरिक संघों की वकालत करने में सीजेआई के साथ शामिल हुए. उन्होंने कहा कि समलैंगिकता प्राचीन काल से ही मौजूद है. ऐसे जोडों को कानूनी अधिकार मिलने चाहिए. सरकार इसके लिए कमिटी बनाए. हालांकि, मैं इस विचार से सहमत नहीं हूं कि स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत ऐसी शादियों को मान्यता नहीं मिल सकती.
बता दें कि समलैंगिक विवाह की कानूनी मान्यता पर सुप्रीम कोर्ट आज यानी आज अपना फैसला सुना सकता है. शीर्ष अदालत ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग करने वाली याचिकाओं पर 11 मई को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. याचिकाओं पर सुनवाई करने वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ में मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एसके कौल, एसआर भट्ट, हेमा कोहली और पीएस नरसिम्हा शामिल थे. सुनवाई के दौरान, याचिकाकर्ताओं ने कहा कि “भारत एक विवाह-आधारित संस्कृति है” और एलजीबीटी (समलैंगिक, समलैंगिक, उभयलिंगी और ट्रांसजेंडर) जोड़ों को वही अधिकार दिए जाने चाहिए जो किसी भी विषमलैंगिक जोड़ों के पास हैं, जैसे कि “की स्थिति” जीवनसाथी” वित्त और बीमा मामलों में; औसत दर्जे, विरासत और उत्तराधिकार के फैसले, और यहां तक कि गोद लेने और सरोगेसी के मामलों में भी.
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