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शराब नीति मामले में Arvind Kejriwal को मिली अंतरिम जमानत, जानें क्या जेल से आएंगे बाहर?

शराब ​नीति मामले में जेल में बंद अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी की वैधता पर सुप्रीम कोर्ट की लार्जर बेंच सुनवाई करेगी. अदालत ने पद पर बने रहने का फैसला केजरीवाल पर छोड़ दिया है.

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल. (फोटो: X/@AamAadmiParty)

दिल्ली शराब नीति घोटाला मामले में आरोपी मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम जमानत मिल गई है. अब उनकी गिरफ्तारी की वैधता पर सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बेंच सुनवाई करेगी. कोर्ट में मामले को लार्जर बेंच को रेफर कर दिया है.

फिलहाल सीबीआई के मामले में भी केजरीवाल गिरफ्तार हैं, ऐसे में जेल में ही रहेंगे. ईडी मामले में अरविंद केजरीवाल को अंतरिम जमानत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से हटने का फैसला उन पर छोड़ दिया है.

मुख्यमंत्री पद पर बने रहने का फैसला

कोर्ट ने कहा कि हम जानते हैं कि केजरीवाल एक निर्वाचित नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं. यह एक ऐसा पद है, जिसका महत्व और प्रभाव है. हालांकि हम कोई निर्देश नहीं देते, क्योंकि हमें संदेह है कि क्या कोई अदालत किसी निर्वाचित नेता को पद छोड़ने का निर्देश दे सकती है या नहीं. मुख्यमंत्री या मंत्री के रूप में कार्य करने या न करने का यह निर्णय हम अरविंद केजरीवाल पर छोड़ते हैं.

जमानत के लिए आवेदन

जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्त की पीठ ने यह फैसला सुनाया है. कोर्ट ने दोनों पक्षों की जिरह पूरी होने के बाद 17 मई को फैसला सुरक्षित रख लिया था. मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने ईडी से पूछा था कि ऐसा कौन सा नया सबूत सामने आया है, जिसके आधार पर केजरीवाल को गिरफ्तार किया गया. तब कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि केजरीवाल जमानत के लिए आवेदन करने के लिए स्वतंत्र होंगे.

सिसोदिया भी आरोपी

सुप्रीम कोर्ट ने मामले की फाइल और 30 अक्टूबर 2023 के बाद दर्ज किए गए गवाहों और आरोपी के बयानों पर गौर किया था. उसी दिन आम आदमी पार्टी के नेता मनीष सिसोदिया की जमानत याचिका खारिज कर दी गई थी. सिसोदिया भ्रष्टाचार एवं मनी लॉन्ड्रिंग मामले में आरोपी हैं.

मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने ईडी से फाइलें जमा करने के निर्देश दिए थे और कहा था कि हम मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी के बाद सीएम अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी से पहले दर्ज किए गए गवाहों के बयानों को भी ध्यान से देखना चाहते है.

इतना ही नहीं कोर्ट ने एएसजी एसवी राजू से पूछा था कि क्या इन सब बातों को लिखित रूप में दर्ज किया गया है और दिल्ली के मुख्यमंत्री को दिए गए गिरफ्तारी के आधार में किया गया था. इसके जवाब में राजू ने कहा था कि जांच एजेंसी को आरोपी के साथ सब कुछ शेयर नहीं करना चाहिए. जिस पर कोर्ट ने कहा था कि आप विश्वास करने के लिए कारण कैसे नहीं देंगे? वह उन कारणों को कैसे चुनौती देंगे?

21 मार्च को ​हुई थी केजरीवाल की गिरफ्तारी

बता दें कि सीएम अरविंद केजरीवाल को मनी लॉन्ड्रिंग मामले में 21 मार्च को गिरफ्तार किया गया था. मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार करने के लिए 10 मई से एक जून तक अंतरिम जमानत दी थी. बाद में उन्होंने कोर्ट के आदेश के अनुसार 2 जून को आत्मसमर्पण कर दिया था. इससे पहले 20 जून को केजरीवाल को दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट ने 1 लाख रुपये की निजी मुचलके पर जमानत दे दी थी.

ईडी ने अगले ही दिन दिल्ली हाईकोर्ट का रुख किया और दलील दी थी कि ट्रायल कोर्ट का आदेश विकृत एकतरफा और गलत था. अदालत ने जो निष्कर्ष निकाला वो प्रासंगिक तथ्यों पर आधारित नहीं थे. इसके बाद 21 जून को दिल्ली हाईकोर्ट ने केजरीवाल को निचली अदालत के जमानत के आदेश पर रोक लगा दिया था. इसके कुछ ही दिन बाद 26 जून को सीबीआई ने सीएम केजरीवाल को गिरफ्तार कर लिया.

केजरीवाल साजिश में शामिल!

गौरतलब है कि दिल्ली हाईकोर्ट की जस्टिस स्वर्णकांता शर्मा ने अरविंद केजरीवाल की ओर से दायर याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि केजरीवाल न सिर्फ इस पूरी साजिश में शामिल थे, बल्कि रिश्वत लेने और इस अपराध को लेकर जो चीजें हुईं, वो उसमें भी शामिल थे.

कोर्ट ने कहा था की गवाहों के बयान अदालत के समक्ष दर्ज किए गए थे. अप्रूवल के बयानों और माफी देने पर सवाल उठाना न्यायिक प्रक्रिया पर सवाल उठाने जैसा होगा. जांच किसी व्यक्ति के सुविधा के अनुसार नहीं चल सकती है.

अदालत ने कहा था

कोर्ट ने कहा था कि ईडी के पास बहुत सारे सबूत हैं. इसमें हवाला डीलरों के बयान, गवाहों के बयान, इसके अलावा आम आदमी पार्टी के सदस्यों के बयान भी मौजूद हैं, जिन्होंने कहा है कि उसे गोवा चुनाव में खर्च के लिए पैसे दिए गए थे. यह गोवा चुनाव के संबंध में मनी ट्रेल को पूरा करता है.

अदालत ने कहा था कि जरीवाल की गिरफ्तारी कानून का उल्लंघन नहीं है और उनके रिमांड को अवैध नहीं कहा जा सकता है. यह मामला 2021-22 के लिए दिल्ली सरकार की शराब नीति बनाने और उसके क्रियान्वयन में कथित भ्रष्टाचार तथा मनी लॉन्ड्रिंग से संबद्ध है. यह नीति अब रद्द की जा चुकी है.

-भारत एक्सप्रेस

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