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पॉक्सो मामले में सात साल की देरी: दिल्ली कोर्ट ने जांच अधिकारी को फटकारा, पुलिस आयुक्त को दिए जांच के आदेश

दिल्ली कोर्ट ने पॉक्सो मामले में 7 साल की देरी पर जांच अधिकारी को फटकारा. पुलिस आयुक्त को जिम्मेदारों की जांच के आदेश. पीड़ित के अधिकार कमजोर हुए.

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दिल्ली की एक अदालत ने पॉक्सो मामले में चार्जशीट दाखिल करने में हुई सात साल की देरी को लेकर जांच अधिकारी (IO) की कड़ी निंदा की है. अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अनु अग्रवाल ने दिल्ली पुलिस आयुक्त को निर्देश दिया है कि इस देरी के लिए जिम्मेदार अधिकारियों की जांच की जाए और भविष्य में ऐसी लापरवाही रोकने के उपाय सुझाए जाएं. यह आदेश उस याचिका की सुनवाई के दौरान आया, जिसमें देरी को माफ करने की मांग की गई थी. कोर्ट ने इस लापरवाही को पीड़ित के अधिकारों का हनन करार दिया.

सात साल बाद दाखिल हुई चार्जशीट

25 जनवरी 2025 को दिए अपने आदेश में कोर्ट ने बताया कि अप्रैल 2017 में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 377 (अप्राकृतिक कृत्य), धारा 506 (आपराधिक धमकी) और पॉक्सो अधिनियम की धारा 6 (गंभीर यौन उत्पीड़न) के तहत FIR दर्ज की गई थी. लेकिन चार्जशीट 24 दिसंबर 2024 को, यानी सात साल बाद दाखिल की गई. कोर्ट ने इस देरी को गंभीर लापरवाही माना और जांच अधिकारी के रवैये पर सवाल उठाए.

देरी के कारणों को कोर्ट ने ठुकराया

जांच अधिकारी ने देरी के लिए तबादला, काम का दबाव, व्यक्तिगत समस्याएं और केस फाइल का गायब होना जैसे कारण गिनाए. हालांकि, कोर्ट ने इन कारणों को अस्वीकार करते हुए कहा कि कोई दस्तावेज नहीं पेश किया गया, जो यह साबित करे कि चार्जशीट को ट्रांसफर के बाद थाने के रिकॉर्ड रूम में जमा किया गया था. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि चार्जशीट जांच अधिकारी के पास ही थी और देरी के बताए गए कारण “मात्र बहाने” हैं. कोर्ट ने कहा कि इतने गंभीर अपराध में छह साल तक चार्जशीट दबाए रखना अस्वीकार्य है.

पीड़ित के अधिकारों का हनन

न्यायाधीश अनु अग्रवाल ने कहा कि अपराध के समय पीड़ित बच्चा सात साल का था और अब वह 13-14 साल का है. उन्होंने चिंता जताई कि सात साल बाद बच्चे की घटना से जुड़ी यादें धुंधली हो सकती हैं, खासकर छोटे बच्चों में. कोर्ट ने जांच अधिकारी पर आरोपी का पक्ष लेने और पीड़ित के त्वरित सुनवाई के अधिकार को कमजोर करने का आरोप लगाया. कोर्ट ने दंड प्रक्रिया संहिता के उन प्रावधानों का भी उल्लेख किया, जिनका उल्लंघन चार्जशीट दाखिल करने में हुआ.

पुलिस व्यवस्था में खामियां उजागर

कोर्ट ने पुलिस व्यवस्था में जवाबदेही की कमी पर सवाल उठाए. अदालत ने कहा कि कई मामलों में जांच अधिकारी बिना सूचना दिए फाइल को वर्षों तक अपने पास रखते हैं, खासकर जब आरोपी जमानत पर हो या गिरफ्तार न हुआ हो. कोर्ट ने इसे गंभीर खामी बताते हुए कहा कि पुलिस स्टेशनों में जांच और संतुलन की कोई व्यवस्था नहीं है, जिससे चार्जशीट समय पर दाखिल हो. कोर्ट ने पुलिस आयुक्त को 27 फरवरी 2025 तक जांच पूरी कर रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश दिया.

कोर्ट ने लिया अपराध का संज्ञान

अदालत ने आरोपी को तलब करते हुए कहा कि उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर वह अपराध का संज्ञान ले रही है. कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जांच अधिकारी की लापरवाही ने न केवल न्याय प्रक्रिया को प्रभावित किया, बल्कि पीड़ित के हक को भी कमजोर किया.

दिल्ली कोर्ट का यह फैसला पॉक्सो जैसे संवेदनशील मामलों में समयबद्ध कार्रवाई की जरूरत को रेखांकित करता है. जांच अधिकारी की लापरवाही ने पीड़ित के न्याय के अधिकार को कमजोर किया और पुलिस व्यवस्था की खामियों को उजागर किया. कोर्ट के निर्देश से उम्मीद है कि भविष्य में ऐसी देरी को रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाए जाएंगे.

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-भारत एक्सप्रेस



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