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केजरीवाल को CM पद से हटाने की मांग करने वाले ‘आप’ के पूर्व MLA संदीप कुमार को हाईकोर्ट ने लगाई फटकार

दिल्ली हाईकोर्ट की पीठ ने हाल ही में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से जुड़े सभी मामलों को एक साथ सुनवाई करने का निर्देश देते हुए अपने पास याचिकाएं स्थानांतरित कर ली थीं. केजरीवाल को सीएम पद से हटाने की तीसरी याचिका आई तो कोर्ट ने फटकार लगाई.

Arvind Kejriwal

सीएम अरविंद केजरीवाल.

दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को आबकारी मामले में आरोपी मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को पद से हटाने की मांग करने वाले आम आदमी पार्टी (आप) के एक पूर्व विधायक संदीप कुमार को कड़ी फटकार लगाई. अदालत ने कहा इसी मुद्दे पर पहले ही दो याचिकाएं खारिज की गई हैं और यह मात्र प्रचार पाने के लिए है. ऐसे में उन पर भारी जुर्माना लगाया जाना चाहिए.

जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने याचिकाकर्ता संदीप कुमार की आलोचना करते हुए कहा कि इसी तरह के मामलों को कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन की पीठ ने सुना और खारिज कर दिया था और वर्तमान याचिका एक प्रचार हित याचिका के अलावा कुछ नहीं है. उन्होंने याचिका को कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश की पीठ को स्थानांतरित करते हुए कहा कि उस पीठ ने पहले भी इसी तरह की याचिकाओं पर सुनवाई की थी.

केजरीवाल को CM पद से हटाने की मांग वाली तीसरी याचिका

हाल ही में पीठ ने इसी तरह के सभी मामलों को एक साथ सुनवाई करने का निर्देश देते हुए अपने पास याचिकाएं स्थानांतरित कर ली थीं. केजरीवाल को सीएम पद से हटाने की यह तीसरी याचिका है. इससे पहले बीते 28 मार्च को हाईकोर्ट ने सुरजीत सिंह यादव नामक व्यक्ति द्वारा दायर एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया था. हाईकोर्ट ने तब कहा था कि इस मुद्दे की जांच करना कार्यपालिका और राष्ट्रपति का काम है और कोर्ट इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता.

इसके बाद 4 अप्रैल को कोर्ट ने विष्णु गुप्ता, जो हिंदू सेना के अध्यक्ष हैं, की एक अन्य जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया. कोर्ट ने कहा था कि यह केजरीवाल का निजी फैसला होगा कि वह सीएम बने रहेंगे या नहीं. पीठ ने टिप्पणी की थी कि कभी-कभी, व्यक्तिगत हित को राष्ट्रीय हित के अधीन करना पड़ता है, लेकिन यह उनका (केजरीवाल का) निजी फैसला है.

तीसरी रिट याचिका संदीप कुमार द्वारा दायर की गई थी, जिसमें कहा गया था कि केजरीवाल अक्षम होने के बावजूद दिल्ली के मुख्यमंत्री के पद पर बने हुए हैं, जो न केवल कई संवैधानिक जटिलताओं को जन्म देता है बल्कि लोगों के जीवन के अधिकार की गारंटी का भी उल्लंघन करता है.

-भारत एक्सप्रेस



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