दिल्ली हाईकोर्ट
गुजरात के पारंपरिक कारीगर परिवार से आने वाले छात्र को ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में सार्वजनिक नीति में स्नातकोत्तर की पढ़ाई के लिए राष्ट्रीय विदेशी छात्रवृत्ति देने का दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है. जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा कि छात्र मोहित जितेंद्र कुकड़िया को छोटी उम्र से ही वित्तीय अस्थिरता का सामना करना पड़ा होगा और कठिनाइयों के बावजूद उसने कानून की डिग्री हासिल करके और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर की पढ़ाई करने का प्रस्ताव प्राप्त करके अकादमिक रूप से उत्कृष्ट प्रदर्शन किया.
अदालत ने कहा गहरी असमानताओं और निरंतर गरीबी से चिह्नित पीढ़ीगत संघर्ष आपस में घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए हैं. गरीबी का चक्र तब तक जारी रहता है जब तक कि प्रत्येक पीढ़ी समान सामाजिक-आर्थिक बाधाओं से जूझती है. इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए राष्ट्रीय विदेशी छात्रवृत्ति जैसे लक्षित हस्तक्षेप की आवश्यकता है, जो अगली पीढ़ी को इस चक्र को तोड़ने के लिए आवश्यक शिक्षा और कौशल प्रदान करके गरीबी से बाहर निकलने का मार्ग प्रदान करती है.
अदालत ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह शैक्षणिक वर्ष 2024-25 के लिए राष्ट्रीय विदेशी छात्रवृत्ति योजना के तहत छात्रवृत्ति के लिए छात्र के आवेदन पर कार्रवाई करे और उसे दो सप्ताह के भीतर छात्रवृत्ति प्रदान करे.
उसके आवेदन को केवल एक टिप्पणी आईटीआर स्वीकृति दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किया गया के साथ खारिज कर दिया गया था. बाद में उसे पता चला कि उसने गलती से आईटीआर स्वीकृति फॉर्म के बजाय अपना आयकर रिटर्न (आईटीआर) गणना अपलोड कर दी थी.
अदालत ने कहा इस न्यायालय की राय है कि आयकर गणना और अन्य प्रासंगिक दस्तावेजों को दाखिल करने में केवल एक विसंगति, विशेष रूप से एक मान्यता प्राप्त सरकारी प्राधिकरण द्वारा जारी किए गए, जब दोनों दस्तावेज आयकर पावती दस्तावेज के बजाय एक ही आय मापदंडों को प्रमाणित करते हैं, तो एक योग्य और मेधावी उम्मीदवार को छात्रवृत्ति से वंचित नहीं किया जाना चाहिए.
अदालत ने नोट किया कि केंद्र के जवाबी हलफनामे ने छात्र द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों की प्रामाणिकता या उसकी पात्रता पर कोई संदेह नहीं जताया. इस बात पर गौर करते हुए कि ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय ने छात्र की योग्यता की पुष्टि की है. उन्होंने कहा यह न्यायालय इस बात पर गौर करता है कि पारंपरिक कारीगर, जिनके कौशल और शिल्प पीढ़ियों से चले आ रहे हैं, अक्सर खुद को गरीबी के चक्र में फंसा हुआ पाते हैं, अगर उन्हें विकास के अवसर न दिए जाएं. शिक्षा और वित्तीय सहायता तक पहुंच के बिना, वे अपने शिल्प के माध्यम से मामूली आय अर्जित करने तक ही सीमित हैं, और उनके पास अपनी सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार करने का बहुत कम मौका है.
अदालत ने कहा कि राष्ट्रीय विदेशी छात्रवृत्ति जैसी योजनाएं आवश्यक हैं क्योंकि वे कारीगरों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने और इन बाधाओं से मुक्त होने के लिए आवश्यक सहायता प्रदान करती हैं.
-भारत एक्सप्रेस