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फर्जी मुठभेड़ मामले में दिल्ली हाईकोर्ट में सुनवाई, कहा— किसी व्यक्ति की मौत होने पर FIR दर्ज करना अनिवार्य

हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा ने निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखते हुए कई फैसलों पर भरोसा किया और दोहराया कि कानून द्वारा शासित समाज में न्यायेतर हत्याओं की उचित और स्वतंत्र रूप से जांच की जानी चाहिए ताकि न्याय हो सके.

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दिल्ली हाईकोर्ट

Delhi News: फर्जी मुठभेड़ मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने एक बार फिर कहा कि किसी व्यक्ति की मौत होने पर एफआईआर दर्ज करना अनिवार्य है. अदालत ने 2013 में पुलिस मुठभेड़ में राकेश नामक व्यक्ति की मौत के संबंध में पुलिस छापेमारी दल के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के निर्देश देने वाले निचली अदालत के आदेश के खिलाफ दिल्ली पुलिस की याचिका खारिज करते हुए टिप्पणी की.

न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा ने निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखते हुए कई फैसलों पर भरोसा किया और दोहराया कि कानून द्वारा शासित समाज में न्यायेतर हत्याओं की उचित और स्वतंत्र रूप से जांच की जानी चाहिए ताकि न्याय हो सके. यह देखते हुए कि यह हत्या का मामला था या मुठभेड़ का यह पता लगाने के लिए जांच की आवश्यकता है. इसके अलावा निरीक्षण रिपोर्ट के अनुसार वाहन के टायरों की हवा नहीं निकली थी. बल्कि गोलीबारी कार की खिड़की के शीशे पर हुई थी. अगर गोलीबारी टायरों पर लक्षित होती तो उनकी हवा निकल जाती और कार रुक जाती जिसके बाद आरोपी व्यक्तियों को पकड़ा जा सकता था. अदालत ने कहा प्रासंगिक रूप से कोई भी पुलिस अधिकारी घायल नहीं हुआ, जबकि दावा किया गया था कि व्यक्तियों ने उन पर भी गोली चलाई थी। राकेश की मौत के लिए जिम्मेदार परिस्थितियों को स्पष्ट करने की आवश्यकता है.

पुलिस के इस तर्क पर कि धारा 197 सीआरपीसी के तहत मंजूरी दिए बिना लोक अधिकारी के खिलाफ कोई आपराधिक जांच नहीं की जा सकती अदालत ने कहा कि प्रावधान सेवा में लोक सेवक द्वारा किए गए हर कार्य या चूक को अपना सुरक्षा कवच नहीं देता है. अदालत ने कहा कि संबंधित प्रावधान अपने संचालन के दायरे को केवल उन कार्यों या चूक तक सीमित करता है जो किसी लोक सेवक द्वारा आधिकारिक कर्तव्य के निर्वहन में किए जाते हैं.

उपराज्यपाल ने घटना की मजिस्ट्रेट जांच का आदेश दिया था जिसमें निष्कर्ष निकाला गया था कि मृतक के पिता की ओर से गवाहों द्वारा आरोपित कोई अवैधानिक कार्य पुलिस दल के सदस्यों द्वारा नहीं किया गया था. इसके बाद पिता ने आईपीसी की धारा 302 और 34 तथा शस्त्र अधिनियम की धारा 27 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए एफआईआर दर्ज कराई. उनका कहना था कि उनके बेटे की पुलिस ने जानबूझकर हत्या की है.

उन्होंने आरोप लगाया कि घटना के समय कार से भागने के लिए कथित तौर पर भाग रहे तीन आरोपियों में से किसी ने भी पुलिस की ओर गोली नहीं चलाई और किसी भी पुलिस अधिकारी को कोई चोट नहीं आई. उन्होंने आगे आरोप लगाया कि मृतक को पुलिस अधिकारियों ने किसी कुंद वस्तु से कथित तौर पर बेरहमी से पीटा था और उसके बाद उन्होंने खुद को अपराध करने से बचाने के लिए कार पर गोली चलाई.

पुलिस का कहना था कि घटना की एसडीएम ने गहन जांच की थी जिन्होंने निष्कर्ष निकाला था कि पुलिस अधिकारियों ने खुद को कार में बैठे व्यक्ति से बचाने के लिए आत्मरक्षा में गोलियां चलाई थीं, जिसने उन पर गोली चलाई थी.

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