सर्वोच्च न्यायालय
Godhra Case: 2002 के गोधरा कांड मामले में गुजरात सरकार की आपत्तियों के बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने उम्रकैद की सजा काट रहे एक दोषी की जमानत मंजूर कर ली. कोर्ट ने कहा कि दोषी ट्रेन पर पत्थर फेंकने के मामले में 17 साल जेल में रह चुका है, ऐसे में उसे जमानत पर रिहा किया जा सकता है. इस मामले की सुनवाई के दौरान, गुजरात सरकार ने दोषी की जमानत का कड़ा विरोध किया. वहीं, अन्य 17 दोषियों की याचिका पर छुट्टियों के बाद सुनवाई होगी.
इस मामले की सुनवाई के दौरान, दोषी फारूक की जमानत का विरोध करते हुए गुजरात सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि ये केवल पत्थरबाजी का मामला नहीं था बल्कि यह जघन्य अपराध था क्योंकि जलती ट्रेन से लोगों को बाहर नहीं निकलने दिया गया. लोगों को बोगी में बंद करके जिंदा जलाया गया था.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील देते हुए कहा कि पत्थरबाजों की मंशा यह थी कि बोगी से कोई बाहर न निकल पाए और बाहर से कोई उन लोगों को बचाने के लिए न जा सके. पिछली सुनवाई के दौरान भी गुजरात सरकार ने दोषियों की रिहाई के विरोध किया था. वहीं, गुजरात सरकार की दलीलों पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दोषी की भूमिका ट्रेन में पथराव करने की थी और जेल में 17 साल सजा काट चुका है. ऐसे में उसे जमानत पर रिहा किया जा सकता है.
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सुप्रीम कोर्ट ने जमानत की अर्जी मंजूर की
इस मामले की सुनवाई के बाद आदेश पढ़ते हुए जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, “दोषी नंबर चार फारूक द्वारा दायर जमानत की अर्जी को मंजूर किया जाता है. याचिकाकर्ता को आईपीसी की धारा 302 के तहत दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी. हाई कोर्ट ने 9 अक्टूबर 2017 को उसकी अपील खारिज कर दी. याचिकाकर्ता ने इस आधार पर जमानत मांगी है कि वह 2004 से कस्टडी में है और लगभग 17 साल तक जेल में रहा है. हम याचिकाकर्ता को ऐसे नियमों और शर्तों के अधीन जमानत देने का निर्देश देते हैं जो सत्र न्यायालय द्वारा लगाई जा सकती हैं.”