
देश में कानून व्यवस्था पर एक बार फिर सवालिया निशान खड़े हो गए हैं. दो-दो हत्या और बलात्कार के मामलों में दोषी ठहराए गए डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह एक बार फिर जेल से बाहर आ गए हैं. 20-20 साल की दो उम्रकैद की सजा पाने के बावजूद अगर कोई व्यक्ति हर दो महीने में जेल से बाहर आकर छुट्टियां मना सकता है, तो फिर सजा और कानून का क्या अर्थ रह जाता है?
गुरमीत राम रहीम को मिली इस फर्लो ने एक बार फिर से साबित कर दिया कि अगर सरकार और सिस्टम मेहरबान हो जाएं तो कानून के मायने ही बदल जाते हैं.
ऐसा लगता है जैसे जेल अब सराय बन गई हो और सजा एक दिखावा मात्र. जब किसी रेपिस्ट और कातिल को इतनी बार और इतनी आसानी से जेल से रिहाई मिलती रहे, तो आम जनता के भरोसे को गहरी चोट पहुंचती है. कानून सबके लिए बराबर है, इस धारणा को भी राम रहीम जैसे मामलों ने खोखला कर दिया है.
किसकी मेहरबानी पर बार-बार मिल रही आजादी
इस साल जनवरी में ही राम रहीम को 30 दिनों के पैरोल पर रिहा किया गया था. वे 28 जनवरी 2025 को जेल से बाहर आए और 28 फरवरी को वापस लौटे. लेकिन महज 40 दिनों के भीतर यानी 9 अप्रैल 2025 को उन्हें फिर से 21 दिनों की फर्लो मिल गई.
यह भी ध्यान देने योग्य है कि इस बार कोई चुनाव भी नहीं हो रहे हैं. इससे पहले राम रहीम अक्सर चुनावों के समय जेल से बाहर आते थे. इस बार बहाना है डेरा सच्चा सौदा का स्थापना दिवस, जो 29 अप्रैल को मनाया जाता है.
सरकार और अदालत दोनों की मेहरबानी से राम रहीम अब 21 दिन डेरा सच्चा सौदा में रहेंगे. वहां उनके प्रभाव का अंदाजा किसी से छुपा नहीं है. जेल से बाहर आते ही उन्होंने एक नया वीडियो भी जारी कर दिया है, जिसमें उनका वही पुराना रॉकस्टार अवतार दिखा.
रिहाई की लंबी लिस्ट
गुरमीत राम रहीम की रिहाई की लिस्ट देखकर कोई भी हैरान हो सकता है. 2020 से अब तक उन्हें 13 बार पैरोल और फर्लो दी जा चुकी है.
रिहाई की लिस्ट कुछ इस तरह है-
- 20 अक्टूबर 2020- मां से मिलने के लिए एक दिन की पेरोल
- 12 मई 2021- बीपी चेक कराने के लिए एक दिन की पेरोल
- 17 मई 2021- मां से दोबारा मिलने के लिए एक दिन की पेरोल
- 3 जून 2021- पेट दर्द उठा, तो सात दिन की पेरोल
- 13 जुलाई 2021- एम्स में दिखाने के लिए पेरोल
- 7 फरवरी 2022- 21 दिन की फरलो
- 17 जून 2022- 30 दिन की पेरोल
- अक्टूबर 2022- 40 दिन की पेरोल
- 21 जनवरी 2023- 40 दिन की पेरोल
- 20 जुलाई 2023- 30 दिन की पेरोल
- 20 नवंबर 2023- 21 दिन की पेरोल
- 19 जनवरी 2024- पूरे 50 दिन की पेरोल
- 13 अगस्त 2024- 21 दिन की फरलो
- 1 अक्टूबर 2024 – 20 दिन की फरलो
- 28 जनवरी 2025- 30 दिन की पैरोल
- 9 अप्रैल 2025- 21 दिन की फरलो (डेरा सच्चा सौदा के स्थापना दिवस के लिए)
कुल मिलाकर, राम रहीम अब तक 326 दिन जेल के बाहर रह चुके हैं, यानी लगभग पूरा एक साल.
कानून का दोहरा मापदंड
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार इस वक्त देश भर की जेलों में लगभग छह लाख कैदी हैं, जिनमें से पौने दो लाख सजायाफ्ता हैं. इनमें से कोई भी कैदी राम रहीम जैसा विशेष व्यवहार नहीं पा रहा.
सवाल यही उठता है कि राम रहीम को ही इतनी बार और इतने लंबे समय के लिए रिहा क्यों किया जाता है? क्या सिर्फ इसलिए कि उनके प्रभावशाली समर्थक हैं?
फिल्मी दुनिया के उदाहरण भी फीके
राम रहीम की पैरोल की तुलना अगर बॉलीवुड एक्टर संजय दत्त से की जाए, तो पता चलता है कि संजय दत्त अपनी पूरी सजा के दौरान महज 160 दिनों की पैरोल या फर्लो पर बाहर रहे. उनकी रिहाई पर जब सवाल उठे तो मीडिया के दबाव में सरकार को संजय दत्त की रिहाई पर ब्रेक लगानी पड़ी थी.
दिल्ली के चर्चित जेसिका लाल मर्डर केस के दोषी मनु शर्मा को भी बार-बार पैरोल मिलने पर भारी विरोध हुआ था. एक बार तो उन्हें पैरोल के दौरान क्लब में पार्टी करते पाया गया था, जिसके बाद उनकी रिहाई पर भी रोक लगा दी गई थी.
लेकिन राम रहीम का मामला बिल्कुल अलग है. इतने बड़े अपराधों के बावजूद उन पर कोई रोक नहीं लग रही.
सरकार का बचाव
हरियाणा सरकार ने अपने फैसले का बचाव करते हुए कहा है कि पेरोल हर कैदी का अधिकार है और राम रहीम भी अन्य कैदियों की तरह ही हैं. लेकिन यह तर्क आम जनता के गले नहीं उतर रहा.
जब आम कैदी सजा पूरी करने के बाद भी जेल से नहीं निकल पाते, तब एक बलात्कारी और हत्यारे को इतनी आसानी से बार-बार जेल से बाहर भेजना निश्चित ही सवाल खड़े करता है.
जनता में गुस्सा
राम रहीम की बार-बार हो रही रिहाई ने सोशल मीडिया से लेकर आम जनमानस में गुस्सा भर दिया है. लोग पूछ रहे हैं कि आखिर एक अपराधी को इतनी बार क्यों मौका दिया जा रहा है कि वह अपनी ताकत और प्रभाव बढ़ा सके?
सरकार का रुख साफ नहीं है. कोई भी ठोस जवाब नहीं दिया गया है कि आखिर इस विशेष व्यवहार का कारण क्या है.
न्याय व्यवस्था के लिए एक खतरे की घंटी
राम रहीम को बार-बार पैरोल और फर्लो देना भारतीय न्याय व्यवस्था और लोकतंत्र के लिए एक खतरे की घंटी है. कानून को यदि आम जनता का विश्वास जीतना है तो उसे ऐसे मामलों में पूरी पारदर्शिता दिखानी होगी और सभी कैदियों के साथ समान व्यवहार करना होगा.
वरना जल्द ही यह धारणा बन जाएगी कि भारत में कानून केवल आम आदमी के लिए है, रसूखदारों के लिए नहीं.
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-भारत एक्सप्रेस
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