उद्योगपति संजीव मेहता.
ईस्ट इंडिया कंपनी का नाम हर कोई जानता होगा. ये वही कंपनी है, जिसने भारत को सैकड़ों सालों तक गुलाम बनाकर रखा था. 1857 तक इसी ईस्ट इंडिया कंपनी का भारत पर राज था, जिसे कंपनी राज की संज्ञा दी गई. व्यापार करने के नाम पर भारत में कदम रखने के बाद इसने बड़ी ही चालाकी से भारत पर राज करना शुरू कर दिया था, लेकिन आपको जानकर खुशी होगी कि सदियों तक हिंदुस्तान को गुलाम बनाकर रखने वाली इस कंपनी पर अब एक भारतीय राज कर रहा है.
भारतीय मसालों की यूरोप में बढ़ी मांग
गौरतलब है कि 17वीं शताब्दी में व्यापार और साम्राज्यवाद के मामले में दुनिया में स्पेन और पुर्तगाल सबसे आगे थे, बाद में धीरे-धीरे ब्रिटेन और फ्रांस की इस फेहरिस्त में एंट्री हो गई. हालांकि देर से उतरने के बाद भी इन देशों ने तेजी के साथ अपना दबदबा बना लिया. पुर्तगाली नाविक वास्को डी गामा जब भारत आया तो यहां से वापस लौटते समय जहाज में भारतीय मसालों को साथ लेकर गया. जिसे यूरोप में बेचकर उसने काफी पैसा कमाया, भारतीय मसालों की महक और स्वाद ने यूरोप के लोगों को दीवाना बना दिया. जिसके बाद इन मसालों की मांग तेजी के साथ बढ़ने लगी. इन मसालों के चर्चे ऐसे बढ़े कि यूरोपीय साम्राज्यवादी देश भी इन्हें लेकर लालायित होने लगे.
व्यापार के लिए हुई थी कंपनी की शुरुआत
ब्रिटेन ने साम्राज्यवाद और औपनिवेशीकरण को बढ़ावा देने के वास्ते ईस्ट इंडिया कंपनी की शुरुआत की थी. ईस्ट इंडिया कंपनी ने ब्रिटेन के साम्राज्यवाद को बढ़ाने में अहम रोल निभाया. ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना भले ही व्यापार के लिए किया गया था, लेकिन इस कंपनी में ब्रिटिश शासन के तमाम अधिकारी भी शामिल थे. इस कंपनी को युद्ध करने के लिए विशेषाधिकार भी दिए गए, जिसके लिए इसने एक ताकतवर सेना भी बनाई थी.
सूरत में स्थापित की पहली फैक्ट्री
कंपनी को भारत में स्थापित करने के लिए सर थॉमस रो ने तत्कालीन मुगल बादशाह से व्यापार का अधिकार प्राप्त किया. जिसके बाद कंपनी ने अपने कारोबार की शुरुआत कोलकाता से की. इसके बाद इसने चेन्नई से लेकर मुंबई तक अपना कारोबार फैला दिया. कंपनी ने अपनी पहली फैक्ट्री 1613 में सूरत में स्थापित की. 1764 में हुए बक्सर के युद्ध ने ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए निर्णायक साबित हुआ. कंपनी ने इसके बाद धीरे-धीरे पूरे भारत पर अपना अधिकार जमा लिया और उसके बाद सदियों तक देश को गुलामी की जंजीरों में जकड़ कर रखा. हालांकि 1857 के विद्रोह ने ईस्ट इंडिया कंपनी को हिलाकर कर रख दिया. जिसके बाद ब्रिटिश साम्राज्य ने शासन की बागडोर अपने हाथ में ले ली.
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2010 में संजीव मेहता ने कंपनी खरीदी
ईस्ट इंडिया कंपनी का राज खत्म हो गया, लेकिन ये कंपनी कारोबार में अब भी अपने कदम जमाए हुए है. हालांकि समय का पहिया ऐसा घूमा कि जिस कंपनी ने कभी भारत पर राज किया, अब उसी ईस्ट इंडिया कंपनी पर एक भारतीय राज कर रहा है. साल 2010 में भारतीय मूल के संजीव मेहता ने कंपनी को 15 मिलियन डॉलर में उस समय खरीद लिया था. ये कंपनी अब पूरी तरह से ई-कॉमर्स कंपनी में तब्दील हो चुकी है. जो चाय, कॉफी और चॉकलेट जैसे प्रोडक्ट बेच रही है.
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-भारत एक्सप्रेस
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