जोशीमठ की सैटेलाइट तस्वीरें (फोटो- IANS)
Joshimath Sinking: उत्तराखंड के जोशीमठ में स्थिति बहुत भयावह हो गई है. यहां 700 से अधिक घरों में दरारें बढ़ गई हैं. शहर में भू-धंसाव के कारण लोगों में भय का माहौल है और इस कारण वे सुरक्षित ठिकानों की तरफ प्रस्थान कर रहे हैं. जोशीमठ में जिन इलाकों में ज्यादा खतरा है, वहां के लोगों को सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट भी किया जा रहा है. वहीं भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर ने पहली बार जोशीमठ भू-धंसाव की सैटेलाइट तस्वीरें जारी की हैं, जिसमें दिखाया गया है कि जोशीमठ शहर किस तेजी से धंसा रहा है.
ये तस्वीरें काटरेसैट-2एस सैटेलाइट से ली गई हैं. जोशीमठ में भू-धंसाव के बाद घरों और सड़कों में जो दरारें पड़ी हैं, उन पर देश के तमाम वैज्ञानिक अध्ययन कर रहे हैं. जोशीमठ भू-धंसाव से जुड़ी हुई कुछ सैटेलाइट तस्वीरें पहली बार इसरो के हैदराबाद स्थित नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर ने जारी की हैं.
सैटेलाइट इमेज बयां कर रहीं शहर के हालात
सैटेलाइट तस्वीरों में बताया गया है कि जोशीमठ का कौन सा इलाका धंस रहा है. इसरो से जारी हुई जोशीमठ की सैटेलाइट तस्वीरें में साफ-साफ देखा जा सकता है कि जोशीमठ का कौन सा हिस्सा धंसने वाला है. यह सभी तस्वीरें काटरेसैट-2एस सैटेलाइट से ली गई हैं. इसरो ने अपने सैटेलाइट से जोशीमठ की आपदा का जायजा लिया है, जिसकी तस्वीरें काफी डराने वाली हैं. इसरो ने सैटेलाइट तस्वीरें जारी की है, उसके अनुसार जोशीमठ शहर का अस्तित्व खतरे में नजर आ रहा है.
12 दिनों में जोशीमठ को सबसे ज्यादा नुकसान
इसरो ने तस्वीरों पर जो पीले कलर का मार्क किया है, वो सेंसेटिव जोन है. इस पीले घेरे में पूरा शहर आता है. इससे देखकर ऐसा लग रहा है, जैसे ये पूरा शहर धंसने वाला है. इसरो ने आर्मी का हेलीपैड और नृसिंह मंदिर को भी मार्क किया है. ये रिपोर्ट इसरो के हैदराबाद स्थित नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर ने जारी की है. एनआरएससी की रिपोर्ट में बताया गया है कि अप्रैल से नवंबर 2022 तक जमीन धंसने का मामला धीमा था. इस सात महीनों में जोशीमठ 8.9 सेंटीमीटर धंसा है। लेकिन 27 दिसंबर 2022 से लेकर 8 जनवरी 2023 तक यानी 12 दिनों जमीन धंसने की तीव्रता 5.4 सेंटीमीटर हो गई. यानी की 12 दिनों में जोशीमठ को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा.
सैटेलाइट तस्वीरों में जो लाल रंग की धारियां दिख रहीं है, वो सड़कें हैं. वहीं नीले रंग का जो बैकग्राउंड है, वह जोशीमठ शहर के नीचे का ड्रेनेज सिस्टम है. इस भू-धंसाव का ऊपर हिस्सा जोशीमठ औली रोड पर मौजूद है. शहर के मध्य में हुए धंसाव को वैज्ञानिक भाषा में क्राउन कहा जाता है। यानी औली रोड भी धंसने वाली है.