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मोबाइल फोन में चाइल्ड पोर्न रखना और देखना दोनों अपराध, Child Pornography पर आया सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

मद्रास हाईकोर्ट ने चेन्नई के एक व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दी थी, जिस पर अपने मोबाइल फोन में बच्चों से संबंधित अश्लील सामग्री डाउनलोड करने का आरोप लगाया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया.

New Delhi: A view of the Supreme Court complex on the day of the court's verdict on a batch of petitions challenging the abrogation of Article 370 of the Constitution, in New Delhi, Monday, Dec. 11, 2023.(IANS/Anupam Gautam)

सुप्रीम कोर्ट. (फोटो: IANS)

Supreme Court decision on Child Pornography: सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में सोमवार (23 सितंबर) को मद्रास हाईकोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि बिना किसी इरादे के चाइल्ड पोर्नोग्राफिक कंटेंट रखना, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम के तहत अपराध नहीं माना जाएगा.

सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी डाउनलोड करना, उसे अपने पास रखना करना और देखना POCSO अधिनियम के तहत अपराध है. इस साल जनवरी में मद्रास हाईकोर्ट ने चेन्नई के एस. हरीश (28 वर्ष) नामक एक व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दी थी, जिस पर अपने मोबाइल फोन में बच्चों से संबंधित अश्लील सामग्री डाउनलोड करने का आरोप लगाया गया था. हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि फोन में पोर्न वीडियो को सिर्फ रखने से किसी को पॉक्सो एक्ट और आईटी कानून की धारा 67B के तहत आरोपी नहीं बनाया जा सकता.

केंद्र सरकार को दिया ये निर्देश

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने सोमवार को कहा कि मद्रास हाईकोर्ट ने फैसला सुनाते हुए गंभीर गलती की है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि मोबाइल फोन में पॉर्न रखना और देखना दोनों अपराध है. कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर किसी से गलती से डाउनलोड हो जाता है और वह डिलीट कर देता है तो वह अपराध नहीं होगा, लेकिन अगर संबंधित व्यक्ति अपने मोबाइल से बच्चों से जुड़ी अश्लील सामग्री डिलीट नहीं करता है तो वह अपराध है.

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से चाइल्ड पोर्नोग्राफी शब्द को बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार सामग्री से बदलने के लिए अध्यादेश जारी करने का सुझाव दिया है. कोर्ट ने देश की सभी अदालतों को भी निर्देश दिया है कि वे चाइल्ड पोर्नोग्राफी शब्द का उपयोग न करें.

इस एनजीओ ने दायर की थी याचिका

बता दें कि मद्रास हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन अलायंस सहित की ओर से दायर की गई है. यह एनजीओ बेसहारा बच्चों के कल्याण के लिए काम करता है. पिछली सुनवाई में याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील एचएस फुल्का ने कहा था कि पॉक्सो एक्ट कहता है कि अगर ऐसा कोई वीडियो या फोटो है भी तो उसे तुरंत डिलीट किया जाना चाहिए, लेकिन इस मामले में आरोपी लगातार उस वीडियो को देख रहा था. उसके पास दो साल से ये वीडियो था.

मद्रास हाईकोर्ट ने जनवरी में दिया था विवादित फैसला

गौरतलब है कि मद्रास हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि पॉक्सो एक्ट और सूचना तकनीकी कानून के तहत महज चाइल्ड पोर्नोग्राफी को देखना या डाउनलोड करना अपराध नहीं है. विगत 11 जनवरी को हाईकोर्ट ने 28 वर्षीय एक आरोपी को आपराधिक मामले से बरी भी कर दिया था. उस पर अपने मोबाइल फोन में बच्चों से जुड़ी अश्लील सामग्री डाउनलोड करने का आरोप था.

मद्रास हाईकोर्ट ने कहा था कि आजकल बच्चे अश्लील सामग्रियां देखने की गंभीर समस्या से जूझ रहे हैं और समाज को वैसे बच्चों को दंडित करने के बजाय शिक्षित करने को लेकर पर्याप्त परिपक्वता दिखानी चाहिए. अदालत ने कहा था कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 ऐसी सामग्री को केवल देखने को अपराध नहीं बनता है.

-भारत एक्सप्रेस

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