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वकील महमूद प्राचा को सुप्रीम कोर्ट से राहत, 1 लाख रुपये के जुर्माने पर लगी रोक

Lawyer Mehmood Pracha: वकील महमूद प्राचा को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिल गई है. सुप्रीम कोर्ट ने महमूद प्राचा पर इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा लगाए गए 1 लाख रुपये के जुर्माने पर रोक लगा दिया है.

Supreme Court

सुप्रीम कोर्ट.

Lawyer Mehmood Pracha: वकील महमूद प्राचा को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिल गई है. सुप्रीम कोर्ट ने महमूद प्राचा पर इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा लगाए गए 1 लाख रुपये के जुर्माने पर रोक लगा दिया है. जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली बेंच ने सभी पक्षों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. महमूद प्राचा ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. हाई कोर्ट ने प्राचा की ओर से दायर याचिका को खारिज करते हुए कहा कि प्राचा ने कोर्ट का बहुमूल्य समय को बर्बाद किया है. लिहाजा एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया है. प्राचा की यह याचिका चुनावी प्रक्रिया की वीडियोग्राफी के सत्यापन और सुरक्षा संबंधित मुद्दों पर थी.

क्या है मामला?

हाई कोर्ट ने प्राचा की ओर से दायर याचिका को खारिज करते हुए कहा कि प्राचा ने इसी मामले में दिल्ली हाई कोर्ट में दो याचिका दायर की थी, दिल्ली हाई कोर्ट ने उनकी इच्छा अनुसार निर्देश भी दे चुका है और प्राचा हाई कोर्ट के इस फैसले से संतुष्ट भी थे इसके बावजूद प्राचा ने इसी मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी. वकील प्राचा के कोर्ट और बैंड पहनकर व्यक्तिगत रूप से दाखिल मामले पर बहस करने के उनके आचरण के संबंध में कोर्ट ने आश्चर्य व्यक्त किया. यह देखते हुए वकील प्राचा बहस करने से पहले बैंड नहीं उतारा था.

प्राचा को भविष्य में सतर्क रहने के लिए निर्देश

कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया था कि यह व्यवहार बार के एक वरिष्ठ सदस्य के लिए अनुचित था. जिसे व्यक्तिगत रूप से बेंच को सम्बोधित करते समय आवश्यक बुनियादी शिष्टाचार के बारे में पता चलना चाहिए. प्राचा को भविष्य में सतर्क रहने और यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया जाता है कि वह न्यायालय की मर्यादा और गरिमा बनाए रखें.

कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा था कि यह अदालत याचिकाकर्ता द्वारा किए जा रहे इस बदलाव को समझ नहीं पा रही, जब याचिकाकर्ता ने दिल्ली हाई कोर्ट के समक्ष रिकॉर्ड में कहा था कि उसकी चिंता का समाधान हो चुका है. याचिकाकर्ता बीच रास्ते में नहीं कूद सकता है और ना ही अपना मन बदल सकता है, वह अपने मन से अपनी पसंद का मंच नहीं चुन सकता. अगर उन्हें समस्या थी तो वह एक बार फिर दिल्ली हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते थे क्योंकि मामला वही है.

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