
बीते कुछ दिनों से उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ जैसे भव्य और जटिल आयोजन के सफल प्रबंधन को लेकर मीडिया में खबरों की भरमार थी. सोशल मीडिया में भी तमाम विशिष्ट व्यक्तियों और जानीमानी हस्तियों के वीडियो भी वायरल हो रहे थे. राज्य सरकार भी इस आयोजन को लेकर बड़े-बड़े दावे कर रही थी. इतने बड़े आयोजन का बिना किसी हादसे के सफल होना न केवल गर्व की बात है बल्कि इससे राज्य सरकार की प्रबंधन क्षमता का प्रमाण भी मिलता है. परंतु महा कुंभ में मौनी अमावस्या को हुई भगदड़ ने इस कार्यक्रम की कई कमियों की पोल खोल दी. राज्य में सरकार किसी भी दल की क्यों न हो यदि इतने बड़े स्तर पर होने वाले आयोजन किए जाएँ तो इससे प्रदेश सरकार की संगठनात्मक दक्षता, प्रशासनिक क्षमता और आपातकालीन स्थितियों से निपटने की तत्परता की परीक्षा भी होती है. यदि कोई भी अप्रिय घटना न घटे तो यह निःसंदेह प्रशंसनीय कार्य होता है. वहीं यदि कोई छुट-पुट घटना भी घट जाए तो हर कोई आयोजकों की बुराई करने में कोई कसर नहीं छोड़ता. करोड़ों श्रद्धालुओं की उपस्थिति, बुनियादी सुविधाओं का प्रबंधन, स्वास्थ्य सेवाओं का संचालन, यातायात नियंत्रण, और सुरक्षा प्रबंध, प्रदेश के प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती होती है.
ऐसे में इतने बड़े स्तर पर होने वाले कार्यक्रम में ‘वीआईपीयों’ को झेलना प्रशासन के लिये एक बड़ी समस्या बन जाता है.परंतु सोचने वाली बात यह है कि जो सरकारी तंत्र आम जनता के लिए इतने बड़े स्तर पर आयोजन करती है, उसी तनाव के बीच यदि उसे वीआईपी बंदोबस्त भी करना पड़े तो उनके हाथ-पाँव फूलना असाधारण नहीं माना जाएगा. ठीक इसी तरह यदि वही सरकारी ढाँचा उसी दक्षता और इच्छाशक्ति से आम जनता की सेवा में भी उत्साहित दिखाई दे तो शायद किसी भी वीआईपी को भीड़ को चीरते हुए आगे निकलने की ज़रूरत ही न पड़े. लेकिन क्या ऐसा होता है? क्या यही तत्परता और तेज़ी जनता की समस्याओं, जैसे भ्रष्टाचार, गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी, महंगाई, और असमानता को हल करने में उपयोग की जाती है? यदि ऐसा हो तो देश का हर राज्य वहाँ के विकास में अग्रणी भूमिका निभा सकता है.
कुंभ में हुई भगदड़ की गहराई से जाँच होने पर ही असल कारण का पता चलेगा. परंतु यहाँ सवाल उठता है कि यदि इतने बड़े स्तर पर आयोजन किए गए तो क्या प्रशासन को इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि मेले में इतनी ज़्यादा भीड़ आएगी? यदि शुरुआती दौर में इस बात का अंदाज़ा नहीं था तो जब कुंभ में इतनी ज़्यादा भीड़ आने लगी तो प्रशासन ने इस दिशा में क्या कदम उठाए? विपक्षी पार्टियों का प्रश्न है कि क्या पूरा प्रशासन केवल वीआईपी बंदोबस्त में ही लगा था? यदि प्रशासन को यह पता था कि इस ऐतिहासिक आयोजन में करोड़ों श्रद्धालुओं के अलावा सैंकड़ों वीआईपी भी आएँगे तो इस स्थिति से निपटने के लिए क्या इंतज़ाम किए गए? इन सभी बिंदुओं पर जवाबदेही को तय करना भी अनिवार्य होना चाहिए. ये सब तभी कामयाब होंगे जब इनमें जन भागीदारी भी बढ़ेगी.
जिस तरह कुंभ जैसे आयोजन में सीमित समय और संसाधनों का कुशल उपयोग किया गया. यही मॉडल देश में गरीबी और बेरोजगारी के समाधान में भी लागू किया जा सकता है. इसके लिए कौशल विकास केंद्र बनाए जाएँ जहां युवाओं को रोजगारपरक प्रशिक्षण देकर स्वरोजगार के अवसर प्रदान किए जाएँ. स्थानीय उद्योगों का विकास करके प्रदेश के हर जिले में स्थानीय कुटीर उद्योग और कृषि आधारित व्यवसायों को बढ़ावा देना चाहिए. रोजगार सृजन योजनाएं लागू करके सार्वजनिक और निजी क्षेत्र में रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए विशेष योजनाएं शुरू की जाएँ. केवल चुनावी घोषणाओं से जनता प्रभावित नहीं होती.
कुंभ के आयोजन में जिस प्रकार जागरूकता अभियान चलाए गए, उसी तरह अशिक्षा के खिलाफ भी आंदोलन चलाया जा सकता है. इसके लिए प्रत्येक गांव और क़स्बे में ऐसे स्कूल खुलें जो प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करें. इसके साथ ही ग्रामीण इलाक़ों में डिजिटल शिक्षा को भी बढ़ावा दिया जाए.
कुंभ के दौरान सीमित बजट में बड़े आयोजन को सफलतापूर्वक पूरा किया गया. यही रणनीति महंगाई और आर्थिक असमानता को दूर करने में उपयोगी हो सकती है. इसके लिए सरकार को मूलभूत वस्तुओं की सस्ती उपलब्धता पर ज़ोर देना चाहिए और सार्वजनिक वितरण प्रणाली को और मजबूत करना चाहिए. आज के दौर में आम जनता बढ़ती हुई महंगाई से काफ़ी त्रस्त है. सरकारों को चाहिए कि वे मुफ़्त की रेवड़ी के बजाए आर्थिक समानता पर ज़ोर दे जिससे कि आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों को नई योजनाओं से सहारा मिलेगा. इसके साथ ही कृषि नियमों में सुधार लाकर किसानों को सशक्त बनाया जाए और कृषि उत्पादकता और उनकी आय बढ़ावा भी मिले.
आशावादी होना अच्छा है. महाकुंभ के प्रबंधन ने यह साबित कर दिया है कि उत्तर प्रदेश का प्रशासन किसी भी बड़ी चुनौती से निपटने की क्षमता रखता है. अगर यही इच्छाशक्ति और कुशलता भ्रष्टाचार, गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी, महंगाई, और असमानता जैसी जन समस्याओं को हल करने में लगाई जाए, तो उत्तर प्रदेश एक नए युग की शुरुआत कर सकता है. यह समय है कि कुंभ प्रबंधन से सीखे गए सबकों को जनहित में लागू किया जाए और एक ऐसा समाज बनाया जाए, जहां हर व्यक्ति को समान अवसर और सुविधाएं प्राप्त हों. प्रदेश के तेजस्वी मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में यह संभव है, बशर्ते सरकार इस दिशा में ठोस और स्थायी कदम उठाए. जन समस्याओं का समाधान केवल एक प्रशासनिक जिम्मेदारी नहीं, बल्कि एक सामाजिक कर्तव्य है. इसके लिए सरकार को जनता का और बदले में जनता को सरकार का पूर्ण सहयोग प्राप्त हो तभी एक नया उदाहरण स्थापित होगा. यदि एक प्रदेश में ऐसा हो सकता है तो संपूर्ण भारत में ऐसा होने में देर नहीं लगेगी.
-भारत एक्सप्रेस
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