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मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण संस्थान अदालत के रिट क्षेत्राधिकार में- दिल्ली हाईकोर्ट

उच्च न्यायालय ने संस्थान को चार सप्ताह के भीतर याचिकाओं पर अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया और कहा कि मामले की सुनवाई 3 सितंबर को योग्यता के आधार पर की जाएगी.

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दिल्ली हाई कोर्ट

Delhi High Court: हाईकोर्ट ने माना है कि मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण संस्थान (एमपीआईडीएसए) राज्य का एक अंग है और वह अदालत के रिट क्षेत्राधिकार में आता है. न्यायमूर्ति चंद्र धारी सिंह ने कहा कि रक्षा मंत्रालय का इस संस्थान के वित्त, भर्ती और कामकाज पर व्यापक नियंत्रण है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि सरकार का उसपर नियंत्रण है. यह सरकारी निकाय है.
न्यायमूर्ति सिंह ने कहा यह व्यवस्था संस्था के प्रशासनिक एवं तकनीकी कर्मचारियों की याचिकाओं पर दिया गया है जो वर्ष 1998 से 2010 के बीच संस्थान में कार्यरत थे . और कम से कम 10 साल की सेवा पूरी कर ली थी. उन्होंने अपनी सेवाओं की नियमितीकरण की मांग करते हुए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की है. कर्मचारियों ने वर्ष 2021 में संस्थान को पहले अपनी नियमितीकरण की मांग करते हुए एक कानूनी नोटिस दिया, लेकिन संस्थान ने इसका जवाब नहीं दिया था. जिसके बाद से कर्मचारियों ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.

चार सप्ताह के अंदर जवाब देने को कहा

संस्थान ने कोर्ट के समक्ष अपने खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर आपत्ति किया था और कहा था कि उसके खिलाफ याचिका स्वीकार्य नहीं है, क्योंकि वह सरकार का अंग नहीं है. कोर्ट ने उसके उस तर्क को खारिज कर दिया. साथ ही कर्मचारियों के नियमितीकरण के मुद्दे पर संस्थान से चार सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा है और सुनवाई 3 सितंबर के लिए स्थगित कर दी है.

सरकार का संस्था पर नियंत्रण

कोर्ट ने इस संस्था को सरकारी अंग मानते हुए कहा कि उसके कार्यकारी परिषद में सरकार के कई प्रतिनिधि हैं. यह इस बात का प्रमाण है कि कार्यकारी परिषद में लिए गए निर्णय सरकारी नियंत्रण से स्वतंत्र नहीं है. इसके अलावा संस्थान केवल सरकार के लिए अनुसंधान करता है, किसी अन्य निजी एजेंसी के लिए नहीं. उसने यह भी कहा कि संस्थान के महानिदेशक की नियुक्ति कैबिनेट की नियुक्ति समिति (एसीसी) को सौंपी जाती है, जो सरकार के पास निहित है. साथ ही संस्थान में सरकारी अधिकारियों की सेवाओं की नियुक्ति, पदोन्नति व प्रतिनियुक्ति के बारे में निर्णय भी रक्षा मंत्रालय के आधिकारिक राजपत्रों के माध्यम से होते हैं. इसलिए यह अदालत मानता है कि इस संस्था पर सरकार का प्रशासन पर व्यापक नियंत्रण है.

-भारत एक्सप्रेस