नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोटोपिक सब्सटेंस (NDPS) एक्ट 1985 के तहत फंसाये गए एक टैक्सी ड्राइवर को सुप्रीम कोर्ट ने बरी कर दिया है. ड्राइवर को सिर्फ इसलिए फंसाया गया था, क्योंकि उनसे अपनी टैक्सी में प्रतिबंधित समान ले जाने वाले यात्रियों के बारे में जानकारी नहीं दे पाया था.
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने माना कि एक टैक्सी ड्राइवर द्वारा प्रतिबंधित सामान ले जाने वाले यात्रियों की जानकारी न देने से उसे एनडीपीएस एक्ट के तहत फंसाने या दोषी ठहराने के औचित्य नहीं दे सकती, क्योंकि ड्राइवरों से ऐसी जानकारी जानने की अपेक्षा करना सही नहीं है. जस्टिस पंकज मिथल और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने यह आदेश दिया है.
20 किलो गांजा ले जाने और रखने का आरोप
कोर्ट कर्नाटक हाई कोर्ट के उस फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें अपीलकर्ता को 20 किलोग्राम गांजा ले जाने और रखने के लिए दोषी ठहराते हुए निचली अदालत के फैसले को सही ठहराते हुए 10 साल की सजा और एक लाख रुपए का जुर्माना लगाया था. अपीलकर्ता टैक्सी चालक ने अज्ञानता का दावा करते हुए कहा कि प्रतिबंधित सामान उन यात्रियों का था, जो उनके टैक्सी में यात्रा कर रहे थे.
अभियोजन पक्ष आरोप साबित करने में नाकाम
कोर्ट ने दोषसिद्धि को दरकिनार करते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में नाकाम रहा है कि प्रतिबंधित सामना अपीलकर्ता का था. इसके अलावे जांच एजेंसी ने पुलिस को देखकर भागे हुए यात्रियों का पता लगाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया, साथ ही कोर्ट ने यह भी देखा कि अपीलकर्ता का टैक्सी से भागना नहीं और टैक्सी में पड़ा प्रतिबंधित सामान बक बैग यह साबित करता है कि अपीलकर्ता का प्रतिबंधित सामान से कोई संबंध नहीं था.
कोर्ट ने यह भी कहा कि अपीलकर्ता ड्राइवर को उक्त प्रतिबंधित सामान से जोड़ने के लिए रिकॉर्ड पर कोई सामग्री नहीं मिली ताकि एनडीपीएस एक्ट के तहत किसी भी अपराध के लिए उस पर मुकदमा चलाया जा सके और उसे दोषी ठहराया जा सके. बता दें कि निचली अदालत ने अपीलकर्ता को केवल इसलिए दोषी ठहराया था कि अपीलकर्ता यात्रियों का जानकारी नहीं दे पाया था.
ये भी पढ़ें: दिल्ली हाई कोर्ट ने आयकर विभाग को CBI द्वारा गौतम थडानी नामक व्यक्ति से जब्त 98 लाख रुपये लौटाने का दिया निर्देश
-भारत एक्सप्रेस
इस तरह की अन्य खबरें पढ़ने के लिए भारत एक्सप्रेस न्यूज़ ऐप डाउनलोड करें.