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Sadhguru की अपनी बेटी जब विवाहित हैं तो वह अन्य युवतियों को संन्यासी बनने के लिए क्यों प्रोत्साहित कर रहे हैं: मद्रास हाईकोर्ट

Sadhguru Isha Foundation: मद्रास हाईकोर्ट में एक रिटायर प्रोफेसर ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर कर ईशा फाउंडेशन पर अपनी दो बेटियों को बंदी बनाकर रखने का आरोप लगाया है.

ईशा फाउंडेशन के प्रमुख सदगुरु जग्गी वासुदेव.

तमिलनाडु में कोयंबटूर के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक रैंक के अधिकारी के नेतृत्व में 150 पुलिस अधिकारियों की एक बटालियन ने मंगलवार (1 अक्टूबर) को थोंडामुथुर में ईशा फाउंडेशन (Isha Foundation) के आश्रम में तलाशी अभियान शुरू किया. यह कार्रवाई मद्रास हाईकोर्ट (Madras High Court) द्वारा फाउंडेशन के खिलाफ दर्ज सभी आपराधिक मामलों पर रिपोर्ट मांगे जाने के एक दिन बाद की गई.

पुलिस द्वारा की गई तलाशी में तीन डीएसपी भी शामिल हैं. एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा कि अभियान में कथित तौर पर बंधक बनाए गए लोगों की गहन जांच और फाउंडेशन के कमरों की तलाशी पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है.

ईशा योग केंद्र ने क्या कहा

इस घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया देते हुए ईशा योग केंद्र (Isha Yoga Centre) ने कहा कि जो कुछ हो रहा है, वह केवल एक जांच है. बयान में कहा गया, ‘अदालत के आदेश के अनुसार, एसपी सहित पुलिस सामान्य जांच के लिए ईशा योग केंद्र में आई है. वे यहां के निवासियों और स्वयंसेवकों से पूछताछ कर रहे हैं, उनकी जीवनशैली को समझ रहे हैं, यह समझ रहे हैं कि वे कैसे आते हैं और कैसे रहते हैं, आदि.’

अदालत ने सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. एस. कामराज (S. Kamaraj) द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका (Habeas Corpus Petition) पर सुनवाई करते हुए कोयंबटूर ग्रामीण पुलिस को जांच कर रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश दिया था.

डॉ. एस. कामराज ने दावा किया था कि उनकी दो बेटियों गीता कामराज (42 वर्ष) और लता कामराज (39 वर्ष) को कोयंबटूर स्थित ईशा फाउंडेशन में बंदी बनाकर रखा गया है. उन्होंने आरोप लगाया कि संगठन लोगों का ब्रेनवॉश कर रहा है, उन्हें साधु बना रहा है और उनके परिवारों से उनका संपर्क सीमित कर रहा है.

अदालत ने उठाए गंभीर सवाल

अदालत ने ईशा फाउंडेशन के संस्थापक जग्गी वासुदेव (Jaggi Vasudev) के जीवन में स्पष्ट विरोधाभासों पर सवाल उठाया. जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम और वी. शिवगनम ने पूछा कि सद्गुरु (Sadhguru), जैसा कि जग्गी अपने अनुयायियों के बीच जाने जाते हैं, जिनकी अपनी बेटी विवाहित है और अच्छी तरह से सेटल हैं, अन्य युवतियों को अपने सिर मुंडवाने, सांसारिक जीवन त्यागने और अपने योग केंद्रों में संन्यासी की तरह रहने के लिए क्यों प्रोत्साहित कर रहे हैं.

कामराज की याचिका में कहा गया है कि उनकी दो बेटियों को कोयंबटूर के वेल्लियांगिरी की तलहटी में स्थित संगठन के योग केंद्र में उनकी इच्छा के विरुद्ध रखा गया है, तो अदालत में मौजूद दोनों महिलाओं ने कहा कि वे अपनी इच्छा से वहां रह रही हैं और उन्होंने किसी भी तरह की मजबूरी या हिरासत से इनकार किया.


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बेटियों को दवाइयां देने का आरोप

कामराज की याचिका में फाउंडेशन में शामिल होने से पहले उनकी बेटियों की पेशेवर उपलब्धियों का ब्योरा दिया गया है. याचिका में कहा गया है कि उनकी बड़ी बेटी, जो ब्रिटेन के एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय से मेक्ट्रोनिक्स में एमए हैं, 2008 में अपने पति से तलाक लेने से पहले अच्छी खासी तनख्वाह पर नौकरी रही थी. तलाक के बाद उसने फाउंडेशन में योग कक्षाओं में भाग लेना शुरू कर दिया.

याचिका में कहा गया है कि छोटी बेटी, जो एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर है, ने भी अपनी बहन की तरह स्थायी रूप से केंद्र में रहने का फैसला किया. याचिका में आरोप लगाया गया है कि फाउंडेशन ने उनकी बेटियों को ऐसा खाना और दवाइयां दीं, जिससे उनकी संज्ञानात्मक क्षमताएं कमजोर हो गईं और उन्हें अपने परिवार से सभी संबंध तोड़ने पड़े.

अदालत के आदेश में कहा गया है, ‘अब याचिकाकर्ता की शिकायत यह है कि संस्था कुछ लोगों का दुरुपयोग कर रही है, उनका ब्रेनवॉश कर उन्हें भिक्षु बना रही है और यहां तक ​​कि उनके माता-पिता और रिश्तेदारों को भी भिक्षुओं से मिलने की अनुमति नहीं दे रही है. संस्था के अंदर की स्थिति की भी याचिकाकर्ता ने वर्तमान याचिका में व्यापक रूप से आलोचना की है.’

POCSO मामले के बारे में जानकारी मांगी

याचिका में फाउंडेशन में काम करने वाले एक डॉक्टर के खिलाफ POCSO मामले के बारे में भी बताया गया है. अदालत ने कहा, ‘याचिकाकर्ता व्यक्तिगत रूप से प्रस्तुत करेंगे कि हाल ही में एक डॉक्टर के खिलाफ POCSO के तहत आपराधिक मामला दर्ज किया गया है, जो उसी संस्थान में काम कर रहा है. उक्त व्यक्ति के खिलाफ आरोप यह था कि उसने आदिवासी सरकारी स्कूल में पढ़ने वाली 12 लड़कियों के साथ छेड़छाड़ की थी.’

हालांकि कामराज की बेटियों ने जोर देकर कहा कि उनका ईशा फाउंडेशन में रहना स्वैच्छिक था, लेकिन जस्टिस सुब्रमण्यम और शिवगनम पूरी तरह से आश्वस्त नहीं थे.

-भारत एक्सप्रेस

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